गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

आत्म साक्षातकार







जैसे - जैसे हमारा बौद्धिक विकास होता जाता है | हम सही या गलत का निर्णय लेने के साथ ही तर्क द्वारा अपनी बात को सिद्ध करना चाहते हैं | कहीं न कहीं जीतने का भाव होता है | जैसे - जैसे आत्मिक विकास होता जाता है वैसे - वैसे लगने लगता है गलत कुछ है ही नहीं , सब ठीक है ... अपनी तरह से | समन्यवादी दृष्टिकोण विकसित होता है | ठीक वैसे ही जैसे जब एक नन्हा बच्चा शरारत करता है तो माँ झुनझुलाती है | चपत भी लगा देती है और दादी मुस्कुराती है | अरे मारने की क्या बात है बच्चे तो शरारत  करते ही हैं |अनुभव ही परिपक्वता देता है |चाहे यह अनुभव उम्र के कारण आया हो या आत्म साक्षातकार के कारण |