शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

कब तक होगा गुडिया पर अत्याचार





आज मैं जिस विषय पर लिखने जा रही हूँ उस पर लिखते हुए मेरे हाथ थरथरा रहे हैं। अगर आप एक संवेदनशील पुरुष हैं तो इसे पढ़कर आपका दिल भर आएगा, अगर आप एक स्त्री हैं तो आपका मन विचलित हो जायेगा । अगर आप एक बेटी की माँ हैं तो निश्चित तौर पर आपकी रातों की नींद उड़ जाएगी ।
बड़े भरी मन से मैं बात कह रही हूँ दिल्ली गुडिया रेप केस की । अभी निर्भया की चिता ठंडी भी नहीं हुई थी कि एक और घिनौना अति अमानवीय कांड हो गया जिसने न सिर्फ भारत वर्ष अपितु पूरे विश्व को झकझोड़ दिया।बहुत बात उठती है महिलायों के वस्त्रों की , बहुत बात उठती है स्त्रियों के रात में अकेले घूमने की । निर्भया कांड में तो यहाँ तक कहा गया था की अगर वह उन आतताइयों को भईया कहती तो शायद उनका हृदय परिवर्तित हो जाता ।
पर अब एक पांच साल की बच्ची जो भईया, चाचा , अंकल के अलावा पुरुष को किसी और रूप में पहचानती ही नहीं, वस्त्रों के शील या अश्लील होने का कोई सवाल ही नहीं है । उस मासूम बच्ची के साथ ऐसा घिनौना कृत्य, और तो और पुलिस द्वारा उसके माँ बाप को रिपोर्ट न लिखवाने के ऐवज में दो हज़ार
रुपये की पेशकश हमारी चेतना को झकझोर देती है ।
अगर ऐसी घटनाएँ नहीं रोकी गयीं तो शायद हम सब अपने घर की स्त्रियों को घर में कैद करने को विवश हो जायेंगे । ऐसी घटनाएँ जो हो रही हैं उसके विरुद्ध आज देश की सारी स्त्रियाँ और पुरुष एक स्वर में आवाज उठा रहे हैं । कैंडल मार्च न केवल दिखाने के लिए बल्कि ये एक आवाहन है कि अब हम एक जुट हो कर ऐसी घटनाओं को रोकने का प्रयास करेंगे, और प्रयत्नशील रहेंगे ऐसे कानूनों और समाज सुधारों के लिए जिससे आगे ऐसी घटनाएँ न हो सकें ।
पहली आवश्यकता कठोर कानून की है ।
कहावत है कि “लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं ” जब कानून का जोर होगा तो कोई “मनोज” ऐसा कृत्य करते हुए डरेगा । मुझे गीता में श्री कृष्ण की ये बात याद आती है कि
” हे अर्जुन, अगर कौरवों की सभा मैं द्रौपदी का, जो पांडवों की पत्नी व एक राजा की बेटी है , अपमान हो सकता है , तो सामान्य नारी की अस्मिता कैसे बचेगी” । इसलिए ये युद्ध एक धर्मं युद्ध है ।
इसी आधार पर महाभारत का युद्ध हुआ । आज लाखों करोड़ों द्रौपदी अपमानित हो रही हैं , पर प्रशासन चुप बैठा है । ऐसे मैं सवाल ये उठता है की हमें और कितने महाभारत के लिए तैयार रहना चाहिए ।
चीन में या सऊदी अरब में ऐसा कांड हुआ होता तो अपराधी को अवश्य ही फांसी की सजा होती । आज भारत में भी ऐसे ही सख्त कानून की जरूरत है जिससे दंड के भय से अपराधी अपराध करने से बाज आयें ।
दूसरी आवश्यकता समाज सुधार की है ।
कानून बन जाए तो बहुत अच्छा है पर जितने क़ानून हैं उतने उसे तोड़ने वाले भी हैं । प्रश्न ये उठता है कि ऐसे अपराधी पैदा क्यों हो रहे हैं । क्या इसके लिए हम , आप , और सारा समाज जिम्मेदार नहीं है । केवल कानून बनाओ कह कर हम अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते हैं । हमे सोंचना होगा की गलती कहाँ हो रही है ।
मुझे जो समझ में आ रहा है, वो इस प्रकार है…………
१) फीचर फिल्म टीवी आदि में कामुकता का अतिशय प्रयोग । अगर हीरोइन गंदे कपडे पहनकर कामुक नृत्य करती है तो वह तो सुरक्षित घर पहुँच जाती है पर उसको देखकर पगलाए पुरुष का शिकार निरपराध निर्दोष स्त्री होती है ।
2) बेरोजगारी की वजह से मजदूर अपने बीवी बच्चों से कई कई दिनों तक दूर रहते हैं । ऐसे मैं आप कितने दिन उनसे संयम की उम्मीद रख सकते हैं ।
३) शहर का युवक भले ही समझ जाये कि विज्ञापन में दिखाया जाने वाला द्रश्य काल्पनिक है पर गाँव व अनपढ़ युवक इसमें भेद नहीं कर पाता कि अमुक ब्लेड से दाढ़ी काटने से लड़कियां पीछे भागती हैं । और उसमे एक अतृप्त इच्छा जाग्रत होती है ।
४) आज कल कंप्यूटर पर ऐसा “पोर्न” मसाला बस एक क्लिक पर मौजूद है । मनोज और प्रदीप ने भी ऐसी ही कोई फिल्म घटना करने से पहले देखी थी ।
५) एक ऐसा समाज जहाँ बड़ों का आदर और कर्म का भय न हो पतनोंन्मुखी होता है । मेरी बात का प्रतिवाद करने वाले अवश्य ही यह कहेंगे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूरी है । पर मैं यही कहना चाहूंगी कि अनुशासन जरूरी है क्योंकि तट तोडती नदी विनाश का कारण बनती है ।
कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि अगर बच्चों को इस विषय की शिक्षा दे दी जाये तो ऐसा नहीं होगा । अब कहा जा रहा है कि ४ -५ साल के बच्चों को सिखाओ की उन्हें किस नीयत से छुआ जा रहा है ।
आगे कहा जायेगा कि जब बच्चा गर्भ में हो तभी उसे सारा ज्ञान दे दो ।
मेरे विचार से अगर कुछ करना है तो हमें अपने परिवार में अच्छे संस्कार देने होंगे ताकि बच्चे भ्रमित न हों और कोई लाडली ऐसी घटना का शिकार न बने । लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाये जाएँ और कठोर कानून बने जिससे ये अपराधी इस प्रकार का साहस न कर सकें ।
अगर यह सब सम्मिलित प्रयास से होगा तो वह दिन दूर नहीं जब भारत में महिलाएं सुरक्षा व सम्मान के साथ जी सकेंगी ।
पूर्व प्रकाशित
वंदना बाजपेयी

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