रविवार, 22 मार्च 2015

रिया स्पीक्स : दीपावली की सफाई





दादी :(कमरे में प्रवेश करते हुए )हे !शिव ,शिव ,शिव ……ई मौसम बदलत है तो परिया बड़ी पिरान लागत है का करे हम बुजुर्गन का तो झेलना ही पडत है.रिया ! अरी ओ बिटिया ,ई छिपकली की तरह दीवाल पे काहे लटकत हो, उतरो नीचे ,हड्डी -पसली टुटाय गयी तो ?हमार लरिका की तो चप्पल ही घिसाय जाई तुमहार लिए वर खोजत -खोजत।
रिया : (हँसते हुए )अरे दादी ,आपअभी से मेरी मेरी शादी की चिंता न करो रोशनदान साफ़ कर रही हूँ। दीपावली है ना , सफाई तो करनी होगी।
दादी :हां ! बिटिया ,लक्ष्मी माता को घर बुलाई की खातिर सफाई तो सबै करत हैं,अपने अपने घरन माँ , जहां लक्ष्मी पूजा भई नहीं उ के बाद देखो सरकन का हाल। का इही की खातिर सफाई करत हैं। ऊ लम्बी -लम्बी पटक्का ....का कहत हैं ऊ का ……… चटाई ,ऊ बिछा देत हैं सरक पर ,और देखो भाड़ ,भाड़ ,भाड़ एकई क्षण मा सड़क गन्दी कर देत हैं ,कानऊ फटाय जात हैं.और तो और प्राणाऊ संकट मा आ जात हैं जब ई पटाखा की वजह से साँसहू लें भारी पडत है


रिया :(नीचे उतरते हुए )बात तो आप सही कहती हैं दादी, कितना प्रदूषण हो जाता है ,हवा का ध्वनि का ,आप का पॉइंट ऑफ़ व्यू सही है ,हेल्थ के लिए कितना नुकसानदायक है।
दादी :और ऊ के बाद तनिक सोचों बिटिया ,इधर लक्ष्मी की पूजा उधर लक्ष्मी का नाश ,ई मा का शान बढ़ जात है। रुपियां के ढेर मा आग लगाये के बराबर है
रिया :हां दादी , दिवाली तो रौशनी का त्यौहार है ,अच्छी -अच्छी लाइट लगाओ ,घर डेकोरेट करो ,सही है ना दादी ?
दादी :अब हम कहिये तो तुम कहियो,दादी तो पुरान जमाने की हैं.,अब ई रौशनी मा बिजुरि नाही खर्च होत है। वैसे ही बिजुरि की कितनी किल्लत राहत है इहाँ दिल्ली मा तो फिरे आत है ऊहाँ गावं माँ तो ...
रिया :दादी ,तो त्यौहार में करे क्या ?
दादी :सफाई करी हो ना अभी ऐसे ही विचारन की सफाई की जरूरत रहे ,सोचिबे की परी की ई देश हमार है ,ई हवा ,पानी ,बिजुरी भी हमार है ,हमको अपनी ख़ुशी मनाई की खातिर ई का नुकसान पहुंचाईब में कोनहु बुद्धिमानी नाही ,त्यौहार में प्रेम बढे ,समझ बढे ,भाईचारा बढे ऊहे में असली ख़ुशी है। जा देश में खाने को ना हो ऊहाँ लक्ष्मी की एइसन बर्बादी। ............. हे !शिव ,शिव शिव
रिया :(दादीसे लिपटते हुए )ओह !दादी यू आर ग्रेट , आप सही कहती हैं ,इस बार हम भी ऐसे ही दीपावली मनाएंगे ,और बचे हुए पैसों से गरीबों के लिए कपडे और दिए खरीदेंगे। आज मुझे क्लास में पढ़ी कविता याद आ रही है। ……………
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
दादी : रानी बिटिया , कितनी जल्दी बात समझत है।

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