बुधवार, 23 नवंबर 2016

आखिर क्यों छुपाती हैं महिलाएं पैसे - महिलाओ द्वारा बचाए गए पैसे नहीं हैं काला धन






वंदना बाजपेयी
मोदी सरकार द्वारा बड़े नोटों को बंद करने के फैसले के बाद लोग अपने घर में रखे ५०० व् हज़ार के नोटों को गिनने में लग गए | हर व्यक्ति की कोशिश यह थी की इन नोटों को एक जगह इकट्ठा करके या तो बदला जाए या बैंक में जमा किया जाए | इसी खोजबीन में घर की महिलाओ द्वारा साड़ी की तहों में , चूड़ी के डिब्बों में , रसोई की दराजों में रखे गए नोट भी घर के पुरुषों को सौंपे गए | बस घरों में उन् नोटों का मिलना था की घर के पुरुषों ने उसे मजाकिया लहजे में काला धन करार दे दिया | सोशल मीडिया पर भी हास – परिहास के किस्से आते रहे | तमाम कार्टून अपने तथाकथित रूप से घर की महिलाओं द्वारा छुपाये गए काला धन के निकल जाने पर बनाए जाते रहे | महिलाओ ने भी अपने ऊपर बने इन व्यंगों को खुल कर शेयर किया | परन्तु अगर एक स्त्री के नज़रिए से देखूँ तो इस तरह महिलाओं द्वारा आपदा प्रबंधन के लिए जमा की गयी राशि को काला धन करार देना सर्वथा गलत है |
आखिर क्यों छुपाती है महिलायें पैसे 
महिलाएं , सब्जी – भाजी , रिक्शा आदि के खर्चों में कटौती कर के बड़ी म्हणत से ये पैसे बचाती हैं | जिसे वे पति से चुरा कर नहीं छुपाकर रखती हैं | वह इन पैसों

दो देश दो निर्णय - लोकतंत्र की जीत






आज का दिन बहुत अहम् दिन है | खास कर विश्व के दो लोकतान्त्रिक देशों के लिए | जी हाँ ! विश्व के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश | जहाँ अलग – अलग दो निर्णय हुए | एक जगह निर्णय जनता ने लिया और उस पर सरकार बनी | दूसरे देश में सरकार ने निर्णय लिया जिसे जनता का पूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ | दोनों ही जगह जीत लोकतंत्र की हुई | मैं बात कर रही हूँ भारत व् अमेरिका की |
एक दूसरे से बहुत दूर बसे दोनों देशों में आज बहुत उथल – पुथल का दिन रहा | आम हो ख़ास सब राजनैतिक चर्चाओं में व्यस्त रहे | चर्चा का केंद्र रहीं दो प्रमुख घटनाएं … पहली हमारे देश भारत में 500 व् 1000 के नोटों का बंद होना व् दूसरी अमेरिका में ट्रम्प की विजय | जहाँ हमारे देश में आम लोगों ने काले धन को समाप्त करने के लिए इन नोटों के बंद होने का स्वागत किया है वहीँ उन्होंने इस प्रक्रिया में होने वाली अपनी परेशानियों को सहर्ष स्वीकार किया है | ख़ुशी की बात ये है की रेहड़ी वाले , सब्जी वाले , छोटे दुकानदार जिनके यहाँ आज कोई खरीदार नहीं था वो भी सरकार के इस फैसले में उसके साथ हैं | एक सब्जी वाले से इस बाबत पूंछने पर उसने कहा , ” गरीबों का तो वैसे भी कभी न कभी फांका हो जता है | तब कौन पूंछता हैं | अगर इससे काले धन पर रोक लगती है ,

शनिवार, 5 नवंबर 2016

हिंदी दिवस - हिंदी जब अंग्रेज हुई


सबसे पहले तो आप सभी को आज हिंदी दिवस की बधाई |पर जैसा की हमारे यहाँ किसी के जन्म पर और जन्म दिवस पर बधाई गाने का रिवाज़ है | तो मैं भी अपने लेख की शुरुआत एक बधाई गीत से करती हूँ ……….
१ .. पहली बधाई हिंदी के उत्थान के लिए काम करने वाले उन लोगों को जिनके बच्चे अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों में पढ़ते हैं |
२ …दूसरी बधाई उन प्रकाशकों को जो हिंदी के नाम पर बड़ा सरकारी अनुदान प्राप्त कर के बैकों व् सरकारी लाइब्रेरियों की शोभा बढाते हैं | जिन्हें शायद कोई नहीं पढता |
३… तीसरी और विशेष बधाई उन तमाम हिंदी की पत्र – पत्रिकाओ व् वेबसाइट मालिकों को जो हिंदी न तो ठीक से पढ़ सकते हैं , न बोल सकते हैं न लिख सकते हैं फिर भी हिंदी के उत्थान के नाम पर हिंदी की पत्रिका या वेबसाइट के व्यवसाय में उतर पड़े |
आप लोगों को अवश्य लग रहा होगा की मैं बधाई के नाम पर कटाक्ष कर रही हूँ | पर वास्तव में मैं केवल एक मुखौटा उतारने का प्रयास कर रही हूँ | एक मुखौटा जो हम भारतीय आदर्श के नाम पर पहने रहते हैं | पर खोखले आदर्शों से रोटी नहीं चलती |जैसे बिना पेट्रोल के गाडी नहीं चलती उसी तरह से बिना धन के

सावधान चीनियों - हम भौकते ही नहीं काटते भी हैं





वैसे तो चीन का सदा से भारत विरोधी रुख ही रहा है | भारत पकिस्तान के बीच तनाव के इस दौर में चीन द्वारा हमेशा की तरह पकिस्तान का साथ देना व् आतंकी मसूद अजहर के पक्ष में खड़े हो जाने से आम भारतीयों के मन में रोष है | इस बार इस रोष ने एक मुहिम का रूप लिया है | वो मुहिम है ” चीनी सामान के बहिष्कार का ” | ख़ुशी की बात है सोशल मीडिया पर इसका जोर – शोर से प्रचार होरहा है | और एक एक करके सवा अरब भारतीय जुड़ने लगे हैं | अर्थव्यवस्था किसी देश के विकास की रीढ़ होती है | चीन इस मुहिम को देख कर डर गया है | तभी तो वहां मीडिया में ये मुद्दा छाया हुआ है व् इस पर लेख पर लेख लिखे जा रहे हैं |अभी हाल में प्रकाशित एक लेख में सोशल मीडिया पर भारतियों के इस मुहीम को भौंकना बताया है | वहीँ मेक इन इण्डिया को फ्लॉप बताया है | उनका मानना है भारत कुछ भी करे चीन के सामन की बराबरी नहीं कर सकता | 

अब आप ही फैसला करें क्या आप को ऐसा लगता है ,की हमारा सामान चीन के सामन की क्वालिटी में बराबरी नहीं कर सकता | अकसर जब कोई सामन

करवाचौथ - रात , इंतज़ार , कहानी और चाँद - प्रेम की सार्वजानिक अभिव्यक्ति को स्वीकृति देती परंपरा








वैसे तो हमारा देश त्योहारों का देश है |और अनेकों त्योहारों में हर रिश्ते को मान देने के लिए त्यौहार है | जो ये याद दिलाना नहीं भूलते की हर रिश्ता महत्वपूर्ण है | यूँ तो ज्यादातर व्रत स्त्रियाँ अपने पति व् संतानों की मंगलकामना के लिए ही करती है | परन्तु पति के लिए खास तौर पर होने वाले व्रतों में तीज और करवाचौथ प्रमुख हैं | उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में तीज व कुछ में करवाचौथ मानाने की परंपरा रही है | दोनों ही व्रतों में पत्नियां भूखी प्यासी रह कर पति की दीर्घायु की कामना करती हैं |क्योंकि त्यौहार सुहाग से सम्बंधित है इसलिए दोनों ही व्रतों में स्त्रियाँ नए कपडे पहनती हैं व् सोलह श्रृंगार करती हैं | फर्क बस इतना है की एक में शिव पार्वती की पूजा होती है तो दूसरे में चाँद की |पर दोनों की ही मूल भावना एक सामान ही है |
विरोध उसी का होता है जो ज्यादा लोकप्रिय होता है 
यहाँ त्योहारों की समानता बताने का कारण वो व्हाट्स एप मेसेज हैं जो हम सभी के मोबाइलों में भरे पड़े है | जहाँ पत्नी को व्रत के नाम पर गिफ्ट की घूस लेते दिखाया जा रहा है , कहीं भूंखी शेरनी बताया जा रहा है तो कहीं ” बचारे पति ” झाड़ू लगाते हुए दिखाए जा रहे हैं | उफ़ कल तो पूजा की थी आज पत्नियां झाड़ू लगवा रही हैं | ऐसा तीज के व्रत में नहीं होता | कहते हैं विरोध उसी का होता है जो ज्यादा लोकप्रिय होता है

ओमपुरी जी क्या सैनिक नहीं कलाकार देश की रक्षा करेंगे




जिन्होंने भी टी वी पर ओमपुरी जी को बहस करते देखा होगा | वो अवाक तो जरूर रह गया होगा |सहसा कानों पर विश्वास नहीं हुआ होगा | ओमपुरी जी की छवि एक सशक्त कलाकार की है |जिनके लाखों फैन हैं | एक कलाकार जिसके अन्दर भावनाओं को समझने की ताकत दूसरों से ज्यादा होती है | उसके मुंह से ऐसी बातें सुनना , वो भी ऐसे समय में जब दो देशों के बीच तनाव चल रहा हो , अत्यंत बचकाना लगता है | जिन्होंने भी सुना वह इतना तो बोला ही होगा , ” धन्य है ओम पूरी जी और उनका अनोखा दर्शन |उन्हें गुस्सा किस बात का है | उनकी दो बातें जो बेहद गलत लगीं उनको जरूर रखना चाहूंगी | पहली बात पाकिस्तानी कलाकार यहाँ काम कर सकते हैं या नहीं ये देखना सरकार का काम है | फिर भी इस पर बौलीवुड दो धडों में बाँट गया है | हर कोई अपना पक्ष रख रहा है | पर पक्ष रखने में भी शालीनता की आवश्यकता होती है | फवाद खान जिनका नाम इस प्रकरण में बार – बार उछाला जा रहा है |

आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध अब जुबानी नहीं जमीनी है





आज का दिन भारत के लिए बहुत अच्छा दिन है | एक ऐसा दिन जहाँ हम स्वभिभिमान व् गर्व के साथ सर उठा चल सकते हैं |आये दिन आतंकी हमले हमारे स्वाभिमान को आहत कर रहे थे | उडी हमले के बाद आम भारतीय मानस में निराशा का माहौल था | लोगों की निगाह अपने प्रधानमंत्री मोदी की तरफ थी | पर मोदी की चुप्पी हमें तोड़ रही थी | कहीं छुटपुट बयां आये भी तो लोगों को बस जुबानी बातें लगी | ऐसा लगा की जैसे अभी तक होता आया है , फिर वही होगा | आतंकी हमले होंगे , मासूम लोग शिकार होंगे | और तो और हमारी सेना के जवान बार बार निशाना बनाए जाते रहेंगे | और हम केवल उन शहीदों के लिए आंसू बहा कर शब्दों के फूल चढाते रहेंगे |परन्तु नहीं ! इस बार ये चुप्पी , चुप्पी नहीं तूफ़ान से पहले की खामोशी थी | आज loc पार कर पाक में घुस कर के भारतीय सेना का आतंकवादी शिविरों को नेस्तनाबूत कर देना इस बात का साफ़ संकेत है की अब आतंवाद के खिलाफ लड़ाई जुबानी नहीं जमीनी है

आखिर कितनी स्वतंत्र हो अभिव्यक्ति






अभिव्यक्ति कितनी स्वतंत्र हो कितनी नहीं , इस पर समय – समय पर बहस होती रहती है |क्योंकि बोलने की आज़ादी ही लोकतंत्र की पहली आधारशिला है | इसका अभिप्राय यह की हर उस देश जहाँ पर लोकतान्त्रिक सरकार है, वहां का नागरिक निर्भीकता से अपनी बात कह सकता है | यह उसका अधिकार है , पर किस हद तक … यह सीमा कोई कानून द्वारा नहीं व्यक्ति को स्वयं निर्धरित करनी होगी |जैसा की अंग्रेजी कहावत में कहा गया है “Your freedom ends where my nose begins.”हमें हवा में अपना हाथ लहराने की उतनी ही आज़ादी है की किसी अन्य की नाक पर प्रहार न हो | मेरा यह लेख लिखने का अभिप्राय भी यही है | क्योकि अभी हालिया ऐसे ही बयान पर हमारे देश के एक प्रान्त की गौरव उसकी नाक पर प्रहार हुआ है | और प्रहार करने वाला कोई आम व्यक्ति नहीं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू हैं |जिनको जानकारी नहीं है उनको बता दें की काटजू जी ने बाकायदा फेसबुक पोस्ट बना कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरप्रयोग किया है | जस्टिस काटजू ने फेसबुक पर पाकिस्तान को संबोधित करते हुए लिखा है कि कश्मीर लेना है तो बिहार भी साथ लेना होगा. इतना ही नहीं काटजू ने पाकिस्तान से ज्यादा खतरा देश को बिहार से बताया है

विदाई - मिलन और जुदाई का अनोखा समन्वय





जीवन भी कितना विचित्र है आज यूँ ही मुकेश का गाया यह गीत कानों में पड गया और मन की घडी के कांटे उलटे चलने लगे ।
ये शहनाईयाँ दे रही हैं दुहाई ,
कोई चीज अपनी हुई है पराई
किसी से मिलन है किसी से जुदाई
नए रिश्तों ने तोडा नाता पुराना ………..

बात तब की है जब मैं बहुत छोटी थी घर के पास से शहनाई की आवाज़ आ रही थी । थोड़ी देर सुनने के बाद एक अजीब सी बैचैनी हुई….. जैसे कुछ टूट रहा हैं कुछ जुड़ रहा है । आदतन अपने हर प्रश्न की तरह इस प्रश्न के साथ भी माँ के पास जाकर मेरा अबोध मन पूँछ उठा ” माँ ये कौन सा बाजा बज रहा है ,एक साथ ख़ुशी और दुःख दोनों महसूस हो रहा है । तब माँ ने सर पर हाथ फेर कर कहा था ” ये शहनाई है। अंजू दीदी की विदाई हो रही है ना । इसलिए बज रही है । अब अंजू दीदी यहाँ नहीं रहेंगी अपने ससुराल में अपने पति के साथ रहेंगी । क्यों माँ आंटी -अंकल ऐसा क्यों कर रहे है क्यों अपनी बेटी को दूसरे के घर भेज रहे हैं । क्या सब बेटियां दूसरों के घर भेजी जाती हैं ? क्या मुझे भी आप दूसरे के घर भेज देंगी । माँ की आँखें नम हो गयी । हां बिटिया ! हर लड़की की विदाई होती है

फीलिंग लॉस्ट - क्या करें जब लगे सब खत्म हो गया है


आज मैं लिखने जा रही हूँ उन तमाम निराश हताश लोगों के बारे में जो जीवन में किसी मोड़ पर चलते – चलते अचानक से रुक गए हैं | जिन्हें गंभीर अकेलेपन ने घेर लिया है और जिन्हें लगता है की जिंदगी यहीं पर खत्म हो गयी है |सारे सपने , सारे रिश्ते , सारी संभावनाएं खत्म हो गयीं | यही वो समय है जब बेहद अकेलापन महसूस होता है | ऐसे ही कुछ चेहरे शब्दों और भावों के साथ मेरी आँखों के आगे तैर रहे हैं , जहाँ जिन्दगी अचानक से अटक गयी थी और उसका कोई दूसरा छोर नज़र ही नहीं आ रहा था ……..
* निशा जी , दो बच्चों की माँ , जब उसके सामने पति का दूसरा प्रेम प्रसंग सामने आया तो उसे लगा जैसे सब कुछ खत्म हो गया है | अपनी सारी त्याग , तपस्या प्रेम सब कुछ बेमानी लगने लगा | उस पर समाज का ताना ,” पति को सँभालने का हुनर नहीं आता , वर्ना क्यों वो दूसरी के पास जाता ” , जले पर नमक छिडकने के लिए पर्याप्त था | मृत्यु ही विकल्प दिखती , पर उसे जीना था , अपनी लाश से खुद ही नकालकर … अपने बच्चों के लिए |

श्राद्ध पक्ष - लकीर न पीटीये , पर श्रद्धा तो रखिये




कल यूँहीं सहेलियों से मिलना हुआ | उनमें से एक सहेली ने श्राद्ध पक्ष की अमावस्या के लिए अपने पति के साथ सभी पितरों का आह्वान करके श्राद्ध करने की बात शुरू कर दी | बातों ही बातों में खर्चे की बात करने लगी | फिर बोली की क्या किया जाये महंगाई चाहे जितनी हो खर्च तो करना ही पड़ेगा , पता नहीं कौन सा पितर नाराज़ बैठा हो और ,और भी रुष्ट हो जाए | उनको भय था की पितरों के रुष्ट हो जाने से उनके इहलोक के सारे काम बिगड़ने लगेंगे | उनके द्वारा सम्पादित श्राद्ध कर्म में श्रद्धा से ज्यादा भय था | किसी अनजाने अहित का भय |
वहीँ मेरी दूसरी सहेली , श्राद्ध पक्ष में अपनी सासू माँ की श्राद्ध पर किसी अनाथ आश्रम में जा कर खाना व् कपडे बाँट देती हैं | व् पितरों का आह्वान कर जल अर्पित कर देती है | ऐसा करने से उसको संतोष मिलता है | उसका कहना है की जो चले गए वो तो अब वापस नहीं आ सकते पर उनके नाम का स्मरण कर चाहे ब्राह्मणों को खिलाओ या अनाथ बच्चों को , या कौओ को …. क्या फर्क पड़ता है |

रक्षा बंधन : भाई बहन के प्यार पर हावी बाज़ार


मेरे भैया मेरे चंदा मरे अनमोल रतन
तेरे बदले मैं ज़माने की कोई चीज न लूँ

रेडियो पर बहुत ही भावनात्मक मधुर गीत बज रहा है | गीत को सुन कर बहुत सारी भावनाऐ मन में उमड़ आई | वो बचपन का प्यार ,लड़ना –झगड़ना ,रूठना मानना | भाई –बहन का प्यार ऐसा ही होता है |इस एक रिश्ते में न जाने कितने रिश्ते समाये हैं ,बहन ,बहन तो है ही ,माँ भी है और दोस्त भी | तभी तो खट्टी –मीठी कितनी सारी यादें लेकर बहने ससुराल विदा होते समय भाइयों से ये वादा लेना नहीं भूलती कि “भैया साल भर मौका मिले न मिले पर रक्षा बंधन के दिन मुझसे मिलने जरूर आना , और भाई भी अश्रुपूरित नेत्रों से हामी बहर कर बहन को विदा कर देता | दूर –दूर रहते हुए भी निश्छल प्रेम की एक सरस्वती दोनों के बीच बहती रहती ,और ये पावन रिश्ता सदा हरा भरा रहता है |
अपने बचपन को याद करती हूँ तो माँ साल भर रक्षा बंधन का इंतज़ार किया करती थी | फिर खुद ही रेशमी धागों से कुछ कपड़ों की कतरनों से काट –काटकर सुन्दर राखियाँ तैयार किया करती थी | हमें भी वो ये पकड़ा देती और हम भी ग्लेज़ पेपर , ग्रीटिंग कार्ड से निकाले गए सितारे व् धागों से राखियाँ बनाते

भाषा को समृद्ध करने का अभिप्राय साहित्य विरोध से नहीं


बचपन की बात है …. मैं एटलस में गंगा की धारा कहाँ -कहाँ जाती है बड़े ध्यान से देख रही थी | गोमुख से निकलने के बाद शुरू शरू में कुछ पतली धाराएं गंगा में मिली उन पर तो मैंने ध्यान नहीं दिया पर जब प्रयाग में गंगा जमुना और सरवती के संगम के बाद भी उसे गंगा ही नाम दिया गया | तब मन में स्वाभाविक से प्रश्न उठे …..अब ये गंगा कहाँ रही … अब तो इसका नाम जंगा या गंग्जमुना होना चाहिए | मैं अपना प्रश्न लेकर पिताजी के पास गयी | तब उन्होंने मुझे समझाया जो दूसरों को अपनाता चलता है उसका अस्तित्व कभी खत्म नहीं होता अपितु और विशाल विराट होता जाता है| चाहे यह बात परिवार की हो ,समाज की सम्प्रदाय की या पूरी मानव प्रजाति की संकीर्ण दायरा विनाश का प्रतीक है और विविधता को अपनाना विकास का | आज हिंदी दिवस पर यही बात मुझे रह -रह कर याद आ रही है | विश्व हिंदी सम्मेलन के बाद कुछ लोगों में रोष है पर भाषा को नए -नए शब्दों से लैस ,तकनीकी रूप से उन्नत बनाने का अभिप्राय साहित्य विरोध से कदापि नहीं है | एक तरफ तो हम वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा से भी आगे निकलकर अन्तरिक्ष के अन्य ग्रहों और उपग्रहों में मानव बस्तियाँ बसाने के सपने देख रहे हैं दूसरी तरफ हम अपनी भाषा को तकनीकी रूप से

हिंसक होता प्रेम - क्या यही प्यार है ?






वंदना बाजपेयी
अगर आप अखबार पढ़ते हैं तो आप ने विगत दो -तीन दिन में दिल्ली में घटी इन घटनाओं पर ध्यान अवश्य दिया होगा | पढ़ कर सिहरन तो जरूर हुई होगी | क्योंकि हत्या और मारपीट कर जख्मी कर देने की ये वारदातें दो दुश्मनों के बीच नहीं वरन दो प्यार करने वालों के बीच हुई हैं | जिन्होंने अखबार नहीं पढ़ा हैं उन्हें in प्रेमी जोड़ों के बीच घटी घटनाओं के बारे में संक्षिप्त रूप से बताना चाहूंगी | घटनाएं इस प्रकार हैं …
* प्रेमी ने प्रेमिका की सरेआम कैंची से गोदकर हत्या की …….. कम्प्यूटर कोर्स कराने वाला ३४ साल का प्रेमी अपनी २२ साल प्रेमिका ( पता नहीं प्रेमिका कहे या एक तरफ़ा प्यार ) के इनकार से क्रोधित हो चलती सड़क पर सरेआम उसकी कैंची से गोद कर हत्या कर देता है | भीड़ तमाशाई बन कर देखती रहती है |
* एक अन्य युवक अपनी प्रेमिका को बिल्डिंग के तीसरे माले से धक्का दे देता है | जिससे उसकी हड्डियाँ टूट जाती हैं | कारण था प्रेमिका द्वारा किसी बत पर खफा हो कर बातचीत बंद कर देना |
* तीसरा युवक घरेलू झगड़े में आपा खोकर अपने ससुर, साले और साढू की हत्या व् अन्य दो को जख्मी कर देता है |

ये सब घटनाएं पढ़ कर आप भी मेरी तरह ही सोंच रहे होंगे ,” क्या यही प्यार है ?” किशोरावस्था में जब माता – पिता और परिवार के अतरिक्त प्यार शब्द किसी अनजाने साथी के लिए ह्रदय में प्रवेश करता है तो न जाने मन के शांत समुन्द्र में कितनी मीठी लहरे उत्त्पन्न हो जाती हैं | जहाँ खुद