शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

तकिया

                                             
       

ये फिर बाबूजी लेटने  चले ...........  फिर वही  चिल्लाने  की आवाज़ " ये मेरा  तकिया किसने छुआ  और फिर " हम दोनों  बहने सहमी  सी खड़ी हो जाती "नहीं बाबूजी हमने नहीं छुई "।

घर की सबसे अच्छी  तकिया पर बाबूजी का ही कब्ज़ा  था ,हालाँकि वो भी थोड़ी गुदडी-गुदडी हो गयी थी .... पर हम दोनों बहनों  की शादी का खर्च  सोच कर बाबूजी  नयी तकिया लेते नहीं थे।

अब जब बाबूजी को नींद नहीं आती तो सारा दोष बेचारी तकिया को देते।  करीने से सहला कर उसके रुई पट्टों को ठीक करते .... फिर लेटते .....फिर करवट बदलते ....  फिर चिल्लाते  " ज़रूर मेरी तकिया को किसी  ने छुआ  है"।

उनका चिल्लाना  और अम्माँ  का रोना " हाय न जाने किस भूतप्रेत का साया हो गया है मरी तकिया के पीछे पड़े रहते है"  रोज़  का सिलसिला  हो  गया है..