शनिवार, 5 नवंबर 2016

करवाचौथ - रात , इंतज़ार , कहानी और चाँद - प्रेम की सार्वजानिक अभिव्यक्ति को स्वीकृति देती परंपरा








वैसे तो हमारा देश त्योहारों का देश है |और अनेकों त्योहारों में हर रिश्ते को मान देने के लिए त्यौहार है | जो ये याद दिलाना नहीं भूलते की हर रिश्ता महत्वपूर्ण है | यूँ तो ज्यादातर व्रत स्त्रियाँ अपने पति व् संतानों की मंगलकामना के लिए ही करती है | परन्तु पति के लिए खास तौर पर होने वाले व्रतों में तीज और करवाचौथ प्रमुख हैं | उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में तीज व कुछ में करवाचौथ मानाने की परंपरा रही है | दोनों ही व्रतों में पत्नियां भूखी प्यासी रह कर पति की दीर्घायु की कामना करती हैं |क्योंकि त्यौहार सुहाग से सम्बंधित है इसलिए दोनों ही व्रतों में स्त्रियाँ नए कपडे पहनती हैं व् सोलह श्रृंगार करती हैं | फर्क बस इतना है की एक में शिव पार्वती की पूजा होती है तो दूसरे में चाँद की |पर दोनों की ही मूल भावना एक सामान ही है |
विरोध उसी का होता है जो ज्यादा लोकप्रिय होता है 
यहाँ त्योहारों की समानता बताने का कारण वो व्हाट्स एप मेसेज हैं जो हम सभी के मोबाइलों में भरे पड़े है | जहाँ पत्नी को व्रत के नाम पर गिफ्ट की घूस लेते दिखाया जा रहा है , कहीं भूंखी शेरनी बताया जा रहा है तो कहीं ” बचारे पति ” झाड़ू लगाते हुए दिखाए जा रहे हैं | उफ़ कल तो पूजा की थी आज पत्नियां झाड़ू लगवा रही हैं | ऐसा तीज के व्रत में नहीं होता | कहते हैं विरोध उसी का होता है जो ज्यादा लोकप्रिय होता है
यह निर्विवाद सत्य है की करवाचौथ का व्रत लोकप्रिय होता जा रहा है | इसे अब वो लोग भी मानाने लगे हैं जहाँ इस व्रत को मानाने की परंपरा नहीं रही है | कई जगह न सिर्फ ब्याह्तायें बल्कि कुंवारिन लडकियाँ भी अपने बॉय फ्रेंड्स के लिए इस व्रत को रख रही हैं |माल्स में कपड़ों के शो रूम , ज्वेलरी की दुकाने , ब्यूटी पार्लर सब हफ़्तों पहले से करवाचौथ की तैयारी में लग जाते हैं | आखिर क्या है इसमें की युवा पीढ़ी की महिलाएं जो हर परम्परा का विरोध करती है , ख़ुशी ख़ुशी करवाचौथ का व्रत भूखे – प्यासे रह कर करती हैं | और तो और नए ज़माने के पति भी अपनी पत्नियों के लिए व्रत रखने लगी हैं |
रात , इंतज़ार ,चलनी और चाँद 
आज के कई साल पहले ऐसा नहीं था | तब अन्य व्रतों की तरह इस व्रत में भी महिलाएं दिन भर भूखी प्यासी रसोई में पूजा के लिए भांति – भांति के व्यंजन बनाने में व्यस्त रहती थी | तब व्रत का जोश तो था पर पर ऐसा जूनून नहीं | परन्तु क्यों ऐसा हुआ की इस व्रत ने युवा पीढ़ी को अपनी ओर खींच लिया | कारण स्पष्ट हैं …. रात , इंतज़ार ,चलनी और चाँद | कुल मिला कर एक बेहद ही रोमांटिक सा समां बनता है | | चाँद प्रेमियों के बीच सदा से रहा है कभी सौन्दर्य की उपमा के रूप में , कभी इंतज़ार के दुरूह पलों के साथी के रूप में तो कभी मिलन के साक्षी के रूप में |पल – पल ढलती रात के साथ सोलह श्रृंगार लिए पत्नियों के लिए आकाश को निहार कर चाँद का इंतज़ार , प्रियतम के इंतज़ार की बेचैनी व् सुखद कल्पनाओं का अनोखा संगम उपस्थित करता है | वही चलनी से चाँद का फिर पति का चेहरा देखना एक तरह से रहस्य व् रोमांच का वर्धन करता है | ये कौतुहल ये सरप्राइज़ किसे अच्छे नहीं लगते पर इसे सबसे पहले पहचाना हमारे बौलीवुड ने | जहाँ एक सात्विक रोमांटिक वातावरण में प्रेम की सहज अभिव्यक्ति को परम्परा के साथ मिला कर प्रस्तुत किया गया | चाहे वो ” दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे ” हो या “हम दिल दे चुके सनम “जहाँ रात चाँद और खुले आम प्रेम की अभिव्यक्ति का एक अनोखा रूप निखर के आया |युवा पीढ़ी ने इसे हाथों हाथ अपना लिया |
प्रेम की महक दाम्पत्य को सालों साल करती है सुवासित 
प्रेम की खुलेआम अभिव्यक्ति हमारे समाज में स्वीकार्य नहीं है | चाहे वो पति – पत्नी के मध्य ही क्यों न हो |तभी तो ज्यादा समय नहीं हुआ जब मायके गयी लड़की यह कहने में झिझकती है की उसे पति की याद आ रही है | वह प्रेम को ” पति की चिंता , खाने – पीने की फ़िक्र के रूपमें व्यक्त करती रही है | परन्तु जब करवाचौथ इस प्रेम की अभिव्यक्ति की सार्वजानिक स्वीकृति देता है तो इस अवसर का लाभ लेने में युवा पीढ़ी भला कैसे पीछे रहती | रही बात सजने संवरने की तो स्त्रियाँ ऐसा कोई भी अवसर जाने नहीं देना चाहती जहाँ वह सज संवर कर अपने को अभिव्यक्त कर सके | जब बात सजना के लिए सजने की हो तो साज – श्रृंगार का नशा सर चढ़ कर बोलना स्वाभाविक है |पति के द्वारा दिया गया कोई छोटा उपहार भी पत्नियों के लिए कितना कीमती होता है यह बात हर स्त्री समझती है | कोई जोर – जबरदस्ती भी नहीं है |ये व्हाट्स एप मेसेज कुछ भी कहे पर एक नन्हे से उपहार में प्रेम की महक दाम्पत्य को सालों साल सुवासित करती है |
परंपरा व् आधुनिकता का फ्यूजन
विरोध करने वाले जो यह कहते हैं की आज शादियाँ तो टिकती नहीं, कल का भरोसा नहीं पर करवाचौथ बहुत जोर – शोर से मानाते हैं | उनके लिए नव विवाहिता स्वेता मुस्कुरा कर कहती हैं , ” आज वो जमाना तो रहा नहीं जब संयुक्त परिवार होते थे | तब पति पारिवारिक दवाब में पत्नियो को महत्व दे देते थे | अब जरूरत है अभिव्यक्ति की ताकि वो हमारे पल्लू में बंधे रहे |आज के तनाव युक्त जीवन जहाँ दोनों घर के बाहर काम कर रहे हैं , प्रेम होना ही पर्याप्त नहीं , साथ – साथ गुज़ारा गया समय व् उसकी मुखर अभिव्यक्ति भी रिश्तों को बचाए रहने के लिए जरूरी हो गयी है | करवा चौथ एक तरह से परंपरा व् आधुनिकता का फ्यूजन है | जहाँ परंपरा भी है , ईश्वर से याचना भी , प्रेम की मादकता भी , और मुखरता भी | तो क्यों न इसका नशा महिलाओं के सर चढ़ कर बोले |
शाम हो चुकी है , अब बस श्रृंगार , रात का इंतज़ार चाँद और कहानी की ओत से अपने प्रियतं के दर्शन | प्रेम की सार्वजानिक अभिव्यक्ति का इससे सुन्दर समन्वय कोई दूसरा नहीं हो सकता |

वंदना बाजपेयी 

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