शनिवार, 5 नवंबर 2016

सावधान चीनियों - हम भौकते ही नहीं काटते भी हैं





वैसे तो चीन का सदा से भारत विरोधी रुख ही रहा है | भारत पकिस्तान के बीच तनाव के इस दौर में चीन द्वारा हमेशा की तरह पकिस्तान का साथ देना व् आतंकी मसूद अजहर के पक्ष में खड़े हो जाने से आम भारतीयों के मन में रोष है | इस बार इस रोष ने एक मुहिम का रूप लिया है | वो मुहिम है ” चीनी सामान के बहिष्कार का ” | ख़ुशी की बात है सोशल मीडिया पर इसका जोर – शोर से प्रचार होरहा है | और एक एक करके सवा अरब भारतीय जुड़ने लगे हैं | अर्थव्यवस्था किसी देश के विकास की रीढ़ होती है | चीन इस मुहिम को देख कर डर गया है | तभी तो वहां मीडिया में ये मुद्दा छाया हुआ है व् इस पर लेख पर लेख लिखे जा रहे हैं |अभी हाल में प्रकाशित एक लेख में सोशल मीडिया पर भारतियों के इस मुहीम को भौंकना बताया है | वहीँ मेक इन इण्डिया को फ्लॉप बताया है | उनका मानना है भारत कुछ भी करे चीन के सामन की बराबरी नहीं कर सकता | 

अब आप ही फैसला करें क्या आप को ऐसा लगता है ,की हमारा सामान चीन के सामन की क्वालिटी में बराबरी नहीं कर सकता | अकसर जब कोई सामन
घटिया निकल जाता है तो किसी को बताने पर पहला प्रश्न होता है ,” चाइना का था क्या ? चाइना के सामानों के लिए किवदंती मशहूर है जिसे दूकान दार भी बेचते समय कहते हैं <" चल गया तो आपका भाग्य , गारंटी कोई नहीं है | हा ! चाइना का माल सस्ता अवश्य है | इस कारण वो ज्यादा खरीदा जाता है | ज्यादा बिकने से उनके निर्माण की लागत और कम हो जाती है और वो उसे और सस्ता बेंच पाते हैं | हा ! चीन का बौखलाना जायज है | क्योंकि भारत एक बड़ा बाज़ार है | दीपावली सर पर है , इसलिए वो और डरा हुआ है | शायद इसीलिए ऐसे लेख वहां मीडिया पर छाए हैं | अब आप ही सोचिये आप क्या करेंगे ? क्या एक बार फिर दीपावली पर हमारे बाज़ार चाइना के सस्ते दीयों , लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों , व् बिजली की झालरों से हर साल की तरह फिर से सज जायेंगे | हमारे अपने ही देश के हजारों कुम्हार , शिल्पकार , कलाकार अपने सामानों को बाज़ार में ले जाकर टकटकी लगा कर ग्राहकों की प्रतीक्षा करते हुए निराश होकर पुन : वापस लौट जायेंगे |हमारे इन भाइयों की रोजी - रोटी चीन ने अपनी सामराज्य वादी नीति के तहत छीन ली है | नहीं ! क्योंकि स्वाभिमान से ज्यादा कीमती कुछ भी नहीं है |

हालांकि कुछ लोग इस दीपावली पर चीनी सामन के पक्ष में बोल रहे हैं | उनका कहना है की , ” क्योंकि ये सामन चीन पहले ही बेंच चूका है | इसलिए अब नुक्सान भारतीय व्यापारियों का होगा | या उन गाँव देहात के उन लोगों का जिन्हें इस बहिष्कार की जानकारी नहीं है , जिन्होंने थोक व्यापारियों से चीनी माल खरीद रखा है | उनका तर्क है की ,“जिन लोगों को चीन का माल नहीं खरीदना है, वे भारत सरकार पर दवाब डालें चीन के साथ व्यापार की पुन समीक्षा करें | और अगर ये फैसला सामूहिक रूप से हो रहा है तो हर गाँव कसबे में समाचारपत्रों , पत्रिकाओं व् इलेक्ट्रोनिक मीडिया द्वारा इसकी सूचने दें ताकि छोटे और मझोले व्यापारियों का नुक्सान न हों ”
शायद कुछ लोग उनके तर्क पर वाह – वाह करें | और कहे हा ! इस साल नहीं अगले साल से बहिष्कार करेंगे | पर जैसा की कहा गया है की ” जस्टिस डीलेड इज जस्टिस डिनाइड ” | चीन ने पकिस्तान का समर्थित आतंकवाद का साथ दिया है | उसने मसूद अजहर का साथ दिया है , उसके ब्रह्मपुत्र का पानी रोका है … और हम जवाब अगले साल देंगे | आज एक हो रहे सवा अरब भारतीयों को तोड़ने का ये अच्छा तरीका है | जो अब चीन की साम्राज्य वादी नीतियों को न सिर्फ समझते हैं बल्कि उससे निपटने के लिए ठोस कदम बढ़ने का फैसला भी भी कर चुके हैं | मैं उस दूसरे घिसे पिटे तर्क का भी खंडन करती हूँ की दिए और मिटटी के खिलौनों के बहिष्कार से कुछ नहीं होगा | इससे चीन की अर्थव्यवस्था पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा | यह सच हो सकता है पर दवाब केवल आर्थिक ही नहीं होता यह मनोवैज्ञानिक भी होता है |जब सवा अरब भारतीय एक सुर में बहिष्कार करते हैं तो मनोवैज्ञानिक दवाब न सिर्फ चीन पर बल्कि पूरे विश्व पर पड़ता है | यह दवाब भारत सर्कार पर भी पड़ता है की वो अपनी नीतियाँ बदले जिससे चीन के सामानों से भारतीय बाज़ार न पट पाएं | और स्वदेशी हितों की रक्षा हो |
यह सही है की तकनीकी के क्षेत्र में हम हर चीज़ का बहिष्कार नहीं कर सकते | पर जहाँ तक संभव है | सस्ते के फेर में पड़ कर अपने देश में निर्मित सामानों का ही क्रय करें व् “मेड इन चाइना ” का बहिष्कार करें | और दिखा दें चीन को हम भौंकते ही नहीं काटते भी हैं |

वंदना बाजपेयी

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