बचपन की याद आती है जब माँ
सुबह -सुबह हमें उठाते हुए कह रहीं थी "जरा जल्दी उठ कर ठीक -ठाक कपडे
पहन लो दिल्ली वाली चाची आने वाली हैं "वैसे तो हमारे घर मेहमानों का आना
.-जाना लगा रहता था। उसमें कुछ ठीक -ठाक करने जैसा नहीं था ,पर चाची दिल्ली की थी।
चाची पर इम्प्रैशन डालने का अर्थ सीधे संसद तक खबर। हालाँकि
हम उत्तर प्रदेश के एक महानगर में रहते थे पर दिल्ली हमारे लिए दूर थी।
दिल्ली वो थी जहाँ की ख़बरों से अखबार पटे रहते थे। हमें अपने शह र की
जानकारी हों न हो पर दिल्ली की हर घटना की जानकारी रहती थी गोया की हमारा शहर
दीवाने आम हो और
दिल्ली दीवाने ख़ास। दिल्ली ,दिल्ली का विकास और दिल्ली के लोग हमारी कल्पना का आयाम थी।
बरसों बीते हम बड़े हुए ,हमारा
विवाह हुआ और पति के साथ तबादले का शिकार होते हुए देश के कई शहरों का पानी पीते
हुए आखिर कार दिल्ली पहुँच ही गए। और दिल्ली आकर हमें पता चला की कितने भी
आम हो अब हम आम आदमी /औरत नहीं रहे हैं। अब हम भी उन लोगों में शुमार हो गए हैं जो
खबरे पढ़ते ही नहीं बल्कि ख़बरों का हिस्सा हैं।
पहला अनुभव हमें दिल्ली प्रवास के दूसरे दिन ही हो गया जब हमारी प्रिय सखी का फोन दिल्ली पहुँचने की बधाई देने का आया। बधाई देने के बाद बोली " बड़ी परेशानी होगी ,पानी नहीं आ रहा न तुम्हारे घर "अच्छा हमने सकपकाते हुए कहा ,पता नहीं नल खोल कर देखते हैं ,तुम्हें कैसे पता चला ?
अरे सुबह से क क क चैनल पर दिखा रहे हैं , दिल्ली में तुम्हारे एरिया
में पानी नहीं आ रहा हैं लोग खाली बोतलें लेकर सड़कों पर हैं … टी वी नहीं देखा क्या तुमने
? पहली बार
हमें बड़ा अटपटा लगा हमारे घर में पानी नहीं आ रहा है इसका पता हमसे पहले पूरे देश
को है। हमारी निजी
स्वतंत्रता का कोई स्थान नहीं ? फिर तो यह रोज का सिलसिला हो गया। हमने भी आपने आस -पास की
बातों पर ध्यान देना शुरू कर दिया क्योकि ,अडोस -पड़ोस में क्या हो रहा है इसकी खबर जाते ही
सुदूर बसे परिवार के सदस्यों के लिए घटना की आधिकारिक पुष्टि हमें
ही करनी होती थी अन्यथा हमारे समान्य ज्ञान पर प्रश्न चिन्ह लगने का
पूरा ख़तरा था।
एक बार
तो हमारी कश्मीर वाली बहन हमसे कई दिन तक इस बात पर नाराज रही कि सर्दियाँ
होते ही सारे रिश्ते दारों के हमारे घर में "अपना और बच्चों का धयान रखना
"के हिदायत भरे फोन आने लगते जबकि वो -१० डिग्री से नीचे जम रही होती
पर उसके यहाँ कोई फोन नहीं पहुँचता, इस पारिवारिक भेदभाव में हमारा कोई हाथ नहीं था। ये तो टी वी
चैनल वाले २४ घंटे दिल्ली की सर्दी का आँखों देखा हाल बताते रहते ,,सर्दी की भयावता को देख
दूसरे शहरों के लोग रजाई में किटकिटाते हुए भाग्य को सराहते "भैया दिल्ली की
सर्दी से राम बचाए ".|
एक बार कानपुर में एक रिश्तेदार की शादी में जाने पर हम चर्चा
का केंद्र बन गए"बताओ क्या दिन आ गए हैं दिल्ली में अबकी गर्मी में दो
-दो घंटे बिजली काट रहे हैं। जब सुनते -सुनते हम हम थक गए तो पूँछ ही लिया
"कानपुर में कितने घंटे आती है ?कोई ठीक नहीं पर २४ घंटे में १० -११ घंटे तो आ ही जाती है।
उत्तर प्रदेश की औद्यौगिक राजधानी बिजली की किल्लत से बुरी तरह जूझ रहीं है ,उद्योग -धंधे चौपट हैं ,भीषण बेरोजगारी ने
लूट पाट को बढ़ा दिया है. पर दिल्ली में २ घंटे बिजली गुल होना खबरों का
शहंशाह बन कर तख्ते ताऊस पर बैठा है।
एक बार तो हद हो गयी रात को ११ बजे माँ का फोन आया। उन्होंने कांपती आवाज़ में कहा "बिटिया अपना ,दामाद जी का बच्चों का ध्यान रखना "क्यों माँ क्या हुआ इतनी घबराई हुई क्यों हो ?मैं उल्टा प्रश्न दागा। अभी -अभी टी वी चैनल में दिखा रहे हैं दिल्ली भूकंप से ज्यादा प्रभावित होने वाली जोंन में आता हैं ,हम तो घबरा गए। देखो ज्यादा बेख्याली में मत सोना। टंकी पूरी ना भरना … गमले………… माँ ने हिदायतों की पूरी लम्बी लिस्ट सुनानी शुरू कर दी। हमने बीच में ही माँ को रोकते हुए कहा माँ ठहरों जिस सेस्मिक जोंन में दिल्ली है उसी में आप का शहर भी है। चिंता न करिए। माँ ने लगभग डांटते हुए कहा "हमारा जी इतना घबरा रहा है ,और तुम्हे मजाक सूझ रहा है ,तुम्हे ज्यादा पता है या चैनल वालों को.… हम निरुत्तर हो गए हम बचपन में सुना चुटकुला याद आ गया "एक आदमी का परिक्षण कर रहे डॉक्टर ने नर्स से कहा ,ये मर चुका है तभी आदमी उठ कर बोला मैं जिन्दा हूँ ,मैं ज़िंदा हूँ , नर्स उसे टोंकते हुए बोली चुप राहों तुम्हें ज्यादा पता है या डॉक्टर को "
खैर अब तो हमें ख़बरों में रहने की आदत हो गयी है दूसरे शहर तकलीफे आपदाए झेते रहे ,............पर. खबर है तो दिल्ली की , ………… यहाँ हर आम घटना ,हर आम आदमी खबर का हिस्सा है चर्चा का विषय है इसीलिये यहाँ का हर आम आदमी ख़ास है। और देखिये तो अब तो आम आदमी पार्टी भी चुनाव जीत कर ख़ास हो गयी है।
वंदना बाजपेयी
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