बुधवार, 29 मार्च 2017

व्यक्ति के काम उसके शब्दों से कहीं ज्यादा तीव्र स्वर में बोलते हैं


जब लोग आप को अपने बारे में बताते हैं  उन पर विश्वास  करो - माया एंजिलो 


                         ईश्वर ने मनुष्य को वाणी का वरदान दिया है | और वाणी ही उसकी अभिव्यक्ति का  माध्यम है | और वाणी ही उसे सबसे ज्यादा उलझाती भी है | कोई आपसे बात कर के चला जाता है उसके बाद हर बात की विवेचना शुरू  होती है | उसने ऐसा क्यों कहा | उसके पीछे उसका क्या प्रयोजन था | उसकी इस बात में मुझे नीचा दिखाने की साजिश थी | उसकी उस बात में मेरा उपहास करने का भाव था | आदि , आदि | दो लोगों का परस्पर संवाद सौहार्द बढाने के स्थान पर विषाद  बढ़ा देता है | जब हम बात करते हैं तो दो ध्रुव बन जाते हैं | एक बोलने वाला एक सुनने वाला | बोलने वाला अपने पूर्व अनुभव से बोल रहा होता है व् सुनने वाला अपने पूर्व अनुभव के आधार पर बात समझने की कोशिश कर रहा होता है | अपने - अपने स्थान पर खड़े होकर हम दूसरे के बारे में धारणाएं बना लेते हैं | पर क्या वो सही बन पाती हैं ?

मंगलवार, 28 मार्च 2017

परायी






गेंदा , गुडहल , गुलाब , कमल कभी किसी फूल को देखकर जब आपके मन में प्यार उमड़ता है तो क्या आप उसकी " बोटैनिकल फैमली " के बारे में पूंछते हैं | कभी किसी गाय , बकरी बिल्ली पर प्यार से हाथ फेरते हुए सोंचते हैं की वो किस नस्ल की है | पर जब बात इंसानों की आती है तो हम सगे यानी की खून से जुड़े  रिश्तों को ही प्राथमिकता देते हैं | पर रिश्ते तो  ऊपर वाला बनाता है | चाहे वो खून से जुड़े हों या नहीं | तभी तो हमारे खून के रिश्तों के अतरिक्त न जाने कितने रिश्ते यूँ ही बन जाते हैं |  कुछ में खाली जान पहचान होती है , तो कुछ आत्मा के स्तर तक जुड़ जाते हैं |
 ऐसा ही एक रिश्ता था मेरा दीदी से | जो सगा न होते हुए भी सगों से बढ़ कर था | 
                दीदी मेरी सगी बहन नहीं थी | पर भाई - बहन का रिश्ता सगे संबंधों से ऊपर था |बिलकुल आत्मा से जुड़ा |  कानपुर में मेरी एक छोटी सी दूकान थी | वहीँ पास में  दीदी के कुछ रिश्तेदार रहते थे | जिनसे मिलने वो अक्सर आया करती थी | यूँ तो दीदी कलकत्ते में रहने वाली थी |एक बार अपने रिश्तेदारों के साथ वो मेरी दुकान पर भी सामन खरीदने आयीं | उनको देख कर मन न जाने क्यों उन्हें दीदी कहने का हुआ | वैसे कानपुर के  दुकानदारों के लिए ये आम बात  होती है | वो हर महिला को दीदी , अम्मा  , भाभी , बुआ कह कर एक रिश्ते में बाँधने की कोशिश करते हैं | आमतौर पर महिलाएं भी इसे पसंद करती हैं | परन्तु मेरा मानना अलग था | मैं , मनसा वाचा कर्मणा में विश्वास रखता था | जिसे मन से मानो उसे ही रिश्तों का नाम दो | ताकि रिश्ते केवल दिखावटी न रह सकें | इसलिए मैं महिलाओं को मैंम कह कर ही संबोधित करता था |

सोमवार, 27 मार्च 2017

जूनून - जिन्दा रहने का दूसरा नाम





पैशन एक उर्जा है ... उस उर्जा को महसूस करिए जो उस समय महसूस होती है जब आप वो काम करते हैं जो आप को उद्द्वेलित करता है - ओप्राह विनफ्रे 
                               पैशन या जूनून अपने आप में किसी व्यक्ति की पूरी परिभाषा है | और हमारे जिन्दा होने का सबूत भी | एक ऐसा काम जो काम न होकर खेल लगे |  पैशन  वो काम है जिसे करने में आनंद आये | आत्मा डूब जाए ध्यान या मैडीटेशन  की अवस्था आ जाए | पैशन की भूमिका कुछ करने या केवल खुशी के पलों में नहीं हैं | जीवन के नकारात्मक पलों में ये बहुत बड़ा मदगार बनता है |
                                              वस्तुत : जीवन उतार चढाव का नाम है | जीवन में कई पल ऐसे आते हैं | जिसमें ऐसा लगता हैं जैसे साँसे चुक गयी हों  या हम जीवित तो हैं पर हमारे अंदर बहुत कुछ मर गया है | वो पल घनघोर निराशा के होते हैं | किसी बड़ी असफलता के होते हैं , किसी रिश्ते के टूटने के होते हैं , किसी अपने को खोने के होते हैं | फिर भी जीवन रुकता नहीं है |  आगे बढ़ता रहता है | उसे आगे बढ़ाना ही पड़ता है |  कभी नीचे झुका कर , कभी हिला कर तो कभी जोर से किक मार कर | एस पड़ाव पर पैशन बहुत काम आता है | वो काम जिसको आप दिल की गहराइयों से चाहते हैं करने में जुट जाने पर काम ही इंसान को नकारत्मकता  से बाहर निकाल लेता है | जैसा सा की मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत ने कहा था की ,

रिश्तों में पारदर्शिता - या परदे उतार फेंकिये या रिश्ते






पारदर्शिता किसी रिश्ते की नीव है | रहस्य के पर्दों में रिश्तों को मरते देर नहीं लगती - बॉब मिगलानी 

                                                                     बचपन में हमारे माता - पिता प्रियजन जो कुछ समझाते हैं उसे हमारा बाल मन कैसे लेता है या उसे कैसे समझता है ये कोई नहीं जानता | माता - पिता या घर के बड़े अपना समझाने का दायित्व पूरा जरूर कर लेते हैं |  और बाल मन किसी अनजाने चक्रव्यूह में फंस जाता है | क्योंकि कभी - कभी समझाई गयी दो बातों में विरोधाभास होता है | और इसके   कारण  न जाने कितने अंधविश्वासो , धार्मिक विश्वासों की जो खेती बाल मन की उपजाऊ भूमि पर कर दी जाती हैं | उसकी फसल कई बार इतनी भ्रम भरी इतनी विषाक्त होती है , जो न बोने वाला जानता है न उगाने वाला |
                                                         ऐसा ही कुछ - कुछ मेरे दिमाग में भरा गया था   की घर की बात बाहर न जाए | विभीषण की वजह से लंका  का सर्वनाश हुआ था | हालांकि ये भी कहा गया था की सदा सच बोलना चाहिए | पर युगों बाद भी विभीषण को यूँ कोसा जाना मुझे भयभीत कर देता था | मेरे बाल - मन में ये तर्क उठते की रावण का नाश उसके कर्मों , उसकी बुराइयों या उसके अहंकार के कारण हुआ,

शनिवार, 25 मार्च 2017

दूसरों को बदलने की चाहत में केवल संघर्ष होगा




कल तक मैं चालाक था इसलिए दुनिया को बदलना चाहता था , आज मैं बुद्धिमान हूँ इसलिए खुद को बदलना चाहता हूँ - रूमी 

                       इसने ऐसा किया होता उसने वैसा किया होता , तो मेरी जिंदगी कुछ और होती | कहीं आप भी ये कहने वालों में से नहीं हैं | उसने नहीं कहा , उसने नहीं किया और आप खुद करने के स्थान पर उम्मीद पाले बैठे रहे की वो करे या कहे | बेहतर न होता की हम उस समय यह मान लेते की कोई कुछ नहीं करेगा जो भी करना है हमें ही करना है | तो शायद आज हम उस जगह होते जो हम चाहते हैं | वो समय उम्मीद में गवायाँ और अब आरोप देने में | 

मृत्यु ...दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ ?







मृत्यु जीवन से कहीं ज्यादा व्यापक है , क्योंकि हर किसी की मृत्यु होती है , पर हर कोई जीता नहीं है -जॉन मेसन 

                                           मृत्यु ...एक ऐसे पहेली जिसका हल दूंढ निकालने में सारी  विज्ञान लगी हुई है , लिक्विड नाईटरोजन में शव रखे जा रहे हैं | मृत्यु ... जिसका हल खोजने में सारा आध्यात्म लगा हुआ है | नचिकेता से ले कर आज तक आत्मा और परमात्मा का रहस्य खोजा जा रहा है | मृत्यु जिसका हल खोजने में सारा ज्योतिष लगा हुआ है | राहू - केतु , शनि मंगल  की गड्नायें  जारी हैं | फिर भी मृत्यु है | उससे भयभीत उससे बेखबर हम भी | युधिष्ठर के उत्तर से यक्ष भले ही संतुष्ट हो गए हों | पर हम आज भी उसी भ्रम में हैं | हम शव यात्राओ में जाते है | माटी बनी देह की अंतिम क्रिया में भाग लेते हैं | मृतक के परिवार जनों को सांत्वना देते हैं | थोडा भयभीत थोडा घबराए हुए अपने घर लौट कर इस भ्रम के साथ अपने घर के दरवाजे बंद कर लेते हैं की मेरे घर में ये कभी नहीं होगा | अगले दिन उसी छल  कपट के साथ धंधे  व्यापार में लग जाते है |परन्तु एक प्रश्न शाश्वत  रूप से चलता रहता है | आखिर मरने के बाद कहाँ जाते हैं ?या मृत्यु के समय कैसा महसूस होता है

शुक्रवार, 24 मार्च 2017

अपनापन


टफ टाइम -इम्पैथी रखना सबसे बेहतर सलाह है





किसी का दुःख समझने के लिए उस दुःख से होकर गुज़ारना पड़ता है – अज्ञात

रामरती देवी कई दिन से बीमार थी | एक तो बुढापे की सौ तकलीफे ऊपर से अकेलापन | दर्द – तकलीफ बांटे तो किससे | डॉक्टर के यहाँ जाने से डर लगता , पता नहीं क्या बिमारी निकाल कर रख दे | पर जब तकलीफ बढ़ने लगी तो हिम्मत कर के  डॉक्टर  के यहाँ  अपना इलाज़ कराने गयी | डॉक्टर को देख कर रामरती देवी आश्वस्त हो गयीं | जिस बेटे को याद कर – कर के उनके जी को तमाम रोग लगे थे | डॉक्टर बिलकुल उसी के जैसा लगा | रामरती देवी अपना हाल बयान करने लगीं | अनुभवी डॉक्टर को समझते देर नहीं लगी की उनकी बीमारी मात्र १० % है और ९० % बुढापे से उपजा अकेलापन है | उनके पास बोलने वाला कोई नहीं है | इसलिए वो बिमारी को बाधा चढ़ा कर बोले चली जा रहीं हैं | कोई तो सुन ले उनकी पीड़ा | अम्मा, “ सब बुढापे का असर है कह  सर झुका कर दवाई लिखने में व्यस्त हो गया | रामरती देवी एक – एक कर के अपनी बीमारी के सारे लक्षण गिनाती जा रही थी | आदत के अनुसार वो डॉक्टर को बबुआ भी कहती जा रही थी |
रामरती देवी : बबुआ ई पायन में बड़ी तेजी से  पिरात  है |
डॉक्टर – वो कुछ  नहीं

अपने पर विश्वास


गहरा दुःख : किसी अपूर्णीय क्षति के बारे में कैसे बात करें


 सबसे पीड़ादायक वो " गुड बाय " होते हैं जो कभी कहे नहीं जाते और न ही कभी उनकी व्याख्या की जाती है | -अज्ञात 


 सुख - दुःख जीवन के अभिन्न अंग हैं | परन्तु कुछ दुःख ऐसे होते हैं , जो कभी खत्म नहीं होते | ये दुःख दिल में एक घाव कर के रख देते हैं | हमें इस कभी न भरने वाले घाव के साथ जीना सीखना होता है |  ये दुःख होता है अपने किसी प्रियजन को हमेशा के लिए खो देने का दुःख | जब संसार बिलकुल खाली लगने लगता है | व्यक्ति जीवन के दांव में अपना सब कुछ खो चुके एक लुटे पिटे जुआरी की तरह  समाज की तरफ सहारा देने की लिए कातर दृष्टि से देखता है | परन्तु समाज का व्यवहार इस समय बिलकुल  अजीब सा हो जाता है | शायद हम सांत्वना के लिए सही शब्द खोज नहीं पाते हैं और दुखी व्यक्ति का सामना करने से घबराते हैं या हम उसे जल्दी से जल्दी बाहर निकालने के लिए ढेर सारे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं | जो उस अवस्था में किसी धार्मिक ग्रन्थ के तोता रटंत से अधिक कुछ भी प्रतीत नहीं होता
                                    ऐसा ही अनुभव मुझे अपने

बुधवार, 22 मार्च 2017

मृत्यु ,कभी एक की नहीं होती





जीवन,  बार - बार मरने को तैयार रहना है - ग्रोलमैन

                                       
                        मृत्यु ... एक ऐसा दर्दनाक पल ,जब किसी व्यक्ति के लिए  जब घडी के कांटे रुक जाते हैं , कलैंडर  की तारीख वही पर रुक जाती है , उसकी  उम्र के साल आगे बढ़ना रुक जाता है | जीवन के इस पार से उस पार गए पथिक पता नहीं वहाँ  से हमें देख पाते हैं की नहीं | अगर देख पाते तो जानते की ये झूठ है की जाने वाले अकेले जाते हैं |"  इस पार छूटे हुए परिवार के सदस्यों , मित्रों हितैषियों का जीवन भी  उस मुकाम पर रुक जाता है |

मंगलवार, 21 मार्च 2017

दर्द से कहीं ज्यादा दर्द की सोंच दर्दनाक होती है


दर्द की कल्पना उसकी तकलीफ को दोगना कर देती है | क्यों न हम खुशियों की कल्पना कर उसे दोगुना करें – रॉबिन हौब 

             एक क्लिनिक का दृश्य  डॉक्टर ने कहा इसे इंजेक्शन लगेगा और वो बच्चा जोर – जोर से रोने लगा | उसकी बारी आने में अभी समय था | बच्चे का रोना बदस्तूर जारी था | उसके माता – पिता उसे बहुत समझाने की कोशिश कर रहे थे की बस एक मिनट को सुई चुभेगी और तुम्हे पता भी नहीं चलेगा | फिर तुम्हारी बीमारी ठीक हो जायेगी | पर बच्चा सुई और उसकी कल्पना करने में उलझा रहा | वो लगातार सुई से चुभने वाले दर्द की कल्पना कर दर्द महसूस कर रोता रहा | जब उसकी बारी आई तो नर्स को हाथ में इंजेक्शन लिए देख उसने पूरी तरह प्रतिरोध करना शुरू किया | नर्स समझदार थी | मुस्कुरा कर बोली ,” ठीक है मैं इंजेक्शन नहीं लगाउंगी | पर क्या तुमने हमारे हॉस्पिटल की नीले पंखों वाली सबसे बेहतर चिड़िया देखी  है | वो देखो ! जैसे ही बच्चा चिड़िया देखने लगा | नर्स ने इंजेक्शन लगा दिया | बच्चा हतप्रभ था | सुई तो एक सेकंड चुभ कर निकल गयी थी | वही सुई जिसके चुभने के भय से वो घंटा  भर पहले से रो रहा था |

खेद व्यक्त करना आभार व्यक्त करने से ज्यादा आसान है




मृत व्यक्ति को किसी जीवित व्यक्ति से अधिक फूल मिलते हैं क्योंकि खेद व्यक्त करना आभार व्यक्त करने से ज्यादा आसान है - ऐनी फ्रैंक 

                                        वो मेरा स्टूडेंट था | तकरीबन १० साल बाद मुझसे मिलने आया था | अभी क्या करते हो ? पूंछने पर उसने सर झुका लिया  , केवल चाय की चुस्कियों की गहरी आवाजे आती रहीं | मुझे अहसास हुआ की मैंने कुछ गलत पूँछ लिया है | माहौल को हल्का करने के लिए मैं किसी काम के बहाने उठ कर जाने को हुई तभी उसने चुप्पी तोड़ते हुए कहा , " एक दूकान में काम करता हूँ ,  बस गुज़ारा हो जाता है | " फिर सर झुकाए झुकाए ही बोला ,"मुझे खेद हैं |  काश ! मैंने समय पर आप की सलाह मान ली होती तो आज मेरी तकदीर कुछ और होती | " कोई बात नहीं |जहाँ हो अब आगे बढ़ने का प्रयास करो |  हालांकि जब तुम मुझसे मिलने आये थे तो मुझे आशा थी की तुम मेरी सालाह के लिए आभार व्यक्त करने आये हो |"मेरे सपाट उत्तर के बाद पसरा मौन  उसके जाने के बाद भी मेरे मन में पसरा रहा |

छोड़ देना


समझ


शुभारम्भ


दूर - पास


भावुकता


जीवन एक रोलर कोस्टर



                             जीवन एक रोलर कोस्टर है  | यहाँ चढ़ाई और ढलान दोनों हैं | अब ये आप के ऊपर है की आप  इस की सवारी करते समय बेचैन होकर चीखे या दोनों हाथ उठा कर आनंद लें | - अज्ञात 
                                 कभी आप रोलर कोस्टर  में बैठे हैं  | अगर नहीं तो आप को बता दूं की यह एक प्रकार का झूला है | जो बहुत ऊंचा होता है | जिसमें आप तेजी से ऊपर जाते हैं और उससे दोगुनी तेजी से नीचे आते हैं | अगर यह किसी एंगल पर फिट है तो आप पर नीचे आते समय tangent दिशा में इतना बल लगता है की आप को लगता है की आप तिरछे कहीं दूर जा कर गिरेंगे |

छाया पास बुलाती है





बच्चो का स्वाभाविक खेल होताहै छाया ( परछाई) को पकड़ना……….हर बच्चा छाया को पकड़ने की चेष्टा करता है……… घंटों यही खेल खेलता है | स्वयं भगवान् कृष्ण भी इससे कहाँ बचे | सूरदास ने कितना सुन्दर वर्णन किया है ……..” मनिमय कनक नन्द के आँगन बिम्ब पकरिबे धावत “ | पर बचपन का यह खेल बचपन तक सीमित नहीं रहता | हम बड़े हो जाते हैं पर छाया को पकड़ने का यह खेल चलता रहता है……….. हर हार निराशा लाती है……… तभी दूसरी छाया दिख जाती है……….. फिर उसे पकड़ने का प्रयास., उतना ही उत्त्साह , उतनी ही दौड़ भाग …

जीवन को बनाएं जीवंत





थोड़े का महत्व कभी कम नहीं होता | कितनी सारी छोटी -छोटी खुशियाँ हमारे आस -पास बिखरी होती हैं | उन पर खुश होने के स्थान पर पता नहीं क्या पाने के लिए प्रतिस्पर्धा की एक रेतीली दौड़ में शामिल हो जाते हैं | ये रेत शायद आँखों में इतनी भर जाती है जो खूबसूरत पलों को देखने का अवसर ही नहीं देती हैं……..राजा या भिखारी समय सबके पास सीमित है | .

गुरुवार, 16 मार्च 2017

अभी तो ...







हर दिन ईश्वर का दिया उपहार है | इसे मुस्कुरा कर खोलिए                     
अज्ञात 
अभी तो … एक अधूरा  सा शब्द  है | फिर भी अपने आप में पूरा | कई बार यह कितना महत्वपूर्ण हो जाता है | वह भी तब जब हमारे मुँह से यह आनायास ही निकलता है | जरा गौर करिए जब- जब  हम यह वाक्य बोलते हैं | अभी तो ,पिछले महीने तक  भले चंगे थे |अचानक क्या हुआ ?अभी तो, कुछ दिन पहले उन्होंने अपने बरसों पुराने सपने के पूरे होने की मिठाई खिलाई थी |  अभी तो, कल ही उनसे बात हुई थी फोन पर , अभी तो सुबह ही उन्हें देखा था पार्क में टहलते हुए |अभी तो तो … एक ऐसा शब्द है जब अचानक से किसी की मृत्यु की खबर पर हमारे मुँह से निकलता है |
 अभी …और अभी तो के बीच में किसी व्यक्ति का पूरा जीवन सिमटा होता है | 

बुधवार, 15 मार्च 2017

रुतबा



रामलाल एक दफ्तर में चपरासी था | उसके   दो बेटे थे ।यही उसका सब कुछ थे | अर्धांगिनी तो बीमारी और गरीबी के चलते कब का उसका साथ छोड़ दूसरी दुनिया में चली गयी थी | अब वही माँ और पिता दोनों की भूमिका में था | दो बच्चों की जिम्मेदारी गरीबी और मामूली नौकरी ने उसे चिडचिडा बना दिया था | चाहते  न चाहते हुए भी कभी दफतर में , कभी पैसों की कमी के चलते पंसारी की दुकान वाले लाला जी तो कभी बच्चों की परवरिश के कारण पड़ोस की चाची का , वह सब का रुतबा मानने को विवश था |
बड़ा ही विरोधाभास था की उसकों दूसरों द्वारा रुतबा दिखाए जाने से नफ़रत थी | परन्तु यही एक तमन्ना भी थी जो उसके दिल में पल रही थी | गरीब रामलाल यही सोंचता था कि वह अपने दोनों बेटों को आईएएस अफसर बनाएगा । फिर उसके बच्चों का खूब रुतबा होगा | वह भी उनके माध्यम से यही रुतबा सब पर दिखाएगा |  उसने पूरी मेहनत से अपने बच्चों की पढाई का प्रबंध किया ।साथ ही वो बच्चों के मन में रुतबा दिखाने की मंशा भी भरने लगा | मासूम बच्चों को समझाने लगा की रुतबा ही सब कुछ है | जब तुम रुतबा दिखाओगे तभी सब झुकेंगे , तभी सब इज्ज़त करेंगे |

बुधवार, 8 मार्च 2017

इलाज़




चेतना अपनी बालकनी में बैठी है ।  पड़ोस के घर से किशोरियां लोकगीत पर  नृत्य कर रही हैं , पर लोकगीत  के शब्द उसके कानों में पिघले शीशे की तरह चुभ रहे हैं ।

"
जो मेरी ननद प्यार करेगी जल्दी ब्याह रचा दूंगी ,
 
जो मेरी ननद लड़ी लड़ाई मैके को तरसा दूंगी "

उसने तो कोई लड़ाई नहीं की फिर भी उसकी भाभी राधा उसका आना क्यों पसंद नहीं करतीं ।
माँ बाबूजी बीमार हैं पर वो दो दिन भी वहां रुक नहीं पाती ।

राधा भाभी कभी शब्दों से अपमान कर कभी बर्तन पटक कर और कभी आँखों से उसे " अनचाहा मेहमान " सिद्ध कर ही देती हैं । उसका हृदय अपने माता -पिता व भाई के लिए तड़पता है पर वह मायके नहीं जा  पाती है क्योंकि माँ -बाप की यह लाडली भाभी की आँखों में खटकती है ।