बुधवार, 15 मार्च 2017

रुतबा



रामलाल एक दफ्तर में चपरासी था | उसके   दो बेटे थे ।यही उसका सब कुछ थे | अर्धांगिनी तो बीमारी और गरीबी के चलते कब का उसका साथ छोड़ दूसरी दुनिया में चली गयी थी | अब वही माँ और पिता दोनों की भूमिका में था | दो बच्चों की जिम्मेदारी गरीबी और मामूली नौकरी ने उसे चिडचिडा बना दिया था | चाहते  न चाहते हुए भी कभी दफतर में , कभी पैसों की कमी के चलते पंसारी की दुकान वाले लाला जी तो कभी बच्चों की परवरिश के कारण पड़ोस की चाची का , वह सब का रुतबा मानने को विवश था |
बड़ा ही विरोधाभास था की उसकों दूसरों द्वारा रुतबा दिखाए जाने से नफ़रत थी | परन्तु यही एक तमन्ना भी थी जो उसके दिल में पल रही थी | गरीब रामलाल यही सोंचता था कि वह अपने दोनों बेटों को आईएएस अफसर बनाएगा । फिर उसके बच्चों का खूब रुतबा होगा | वह भी उनके माध्यम से यही रुतबा सब पर दिखाएगा |  उसने पूरी मेहनत से अपने बच्चों की पढाई का प्रबंध किया ।साथ ही वो बच्चों के मन में रुतबा दिखाने की मंशा भी भरने लगा | मासूम बच्चों को समझाने लगा की रुतबा ही सब कुछ है | जब तुम रुतबा दिखाओगे तभी सब झुकेंगे , तभी सब इज्ज़त करेंगे |
इसलिए तुम्हे हर संभव प्रयास कर अफसर बना है | घुट्टी की तरह उसने पिलाई तो ये बात दोनों बेटों को थी | पर बड़े बेटे पर उसकी बातों का कम असर होता | हालांकि  दोनों बेटे कुशाग्र बुद्धि  थे  | पढने में अव्वल आते | पर  बेटे का मन आईएएस बनने का न होकर डॉक्टर बनने का करता था । पिता – पुत्र में घंटों बहस होती थी ।जहाँ पिता तर्क से समझाने की कोशिश करते वहीँ बेटे के मन मष्तिष्क पर माँ की बिमारी और इलाज़ न करा सकने की विवशता हावी थी | वह रुतबे दार अफसर न बन कर डॉक्टर बन कर गरीब मरीजों का इलाज़ करना चाहता था | बेटे की भावनाओं के आगे रामलाल के तर्क जरा देर भी खड़े न रह पाते |
अंततः रामलाल ने बड़े पुत्र को डॉक्टर बनने की  इजाजत दे दी ।हालांकि वो बात – बात पर उसे अपना सपना पूरा न करने का ताना देता रहता | बड़ा बेटा भी पिता का दर्द समझता था पर वह अपने सपने से समझौता नहीं कर सकता था | इसलिए किसी भी ताने – उलाहने का कोई जवाब नहीं देता | चुपचाप सर झुका कर सुनता व् पढाई में लग जाता | वह जानता था की पिता उसकी पढ़ाई का खर्चा नहीं उठा पायेंगे |अत : वह पहले से ही इस विषय में तैयार था |  डॉक्टरी की महँगी पढ़ाई उसने स्कॉलरशिप के माध्यम से पूरी की | उसी में से बचाए पैसों से एक छोटा सा क्लिनिक भी खोला | अलबत्त्ता छोटा  बेटा पिता के कहे अनुसार पढता रहा ।उसके मन में भी आई ए एस बनकर रुतबा दिखाने की बात घर कर गयी | उसने अपनी शक्ति पूरी तरह से इस सपने को सच करने में झोंक  दी |  उसने आईएएस की परीक्षा पास की ।
रामलाल का सर गर्व से ऊँचा हो गया ।उसकी बरसों की साधना पूरी हो गयी । धीरे धीरे समय बीतता गया और साथ ही रामलाल की उम्र भी बढ़ती गयी । बहुएं आई , पोते- पोतियाँ  हुए , पर राम लाल के मन से बड़े बेटे के द्वारा उसका सपना पूरा न करने का मलाल गया नहीं | बात – बेबात पर वह उसे कह ही देता | हालांकि बड़ा बेटा तो साथ ही रहता था  | घर  की रौनक उसी से थी |   छोटे बेटे के तबादले दूर – दूर होते रहते थे | पर रामलाल तो फोन पर ही छोटे बेटे के रुतबे के किस्से सुन – सुन कर निहाल हुआ जाता |और जोर – जोर से बड़े बेटे को सुनाता |बड़ा बेटा अभी भी चुपचाप सुनता था | | वह अपने मरीजों  को अपने परिवार के सदस्यों की तरह समझ ईलाज करता |लोग भर – भर मुँह आशीर्वाद देते , कभी सर पर हाथ फेर देते , तो कभी कई गरीब मरीज स्नेहवश मिठाई के स्थान पर  गुड की ढेली ही आगे रख देते |इतना स्नेह देने वालों के आगे रुतबा तो बरकरार रह ही नहीं सकता | यही रामलाल के चिढ की वजह थी |
रूतबा दिखाने की उसकी मंशा अंदर ही अंदर दम तोड़ देती , इससे पहले विधाता ने उसकी सुन  ली | ईश्वर की कृपा से छोटे बेटे का तबादला पूरे चार साल के लिए उसी के शहर में हो गया | राम लाल के तो पैर  ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे | अब उसे सब पर रुतबा दिखाने का अवसर जो मिल गया था |सारे मुहल्ले में खबर दे आया , इतना ही नहीं लगे हाथ बड़े बेटे को भी सुना ही दिया ,” लो तुम से मुझे कोई सुख मिला नहीं , तुम लगे रहो मरीजों को भैया , बचुआ , अम्मा कहने में , अब मेरा छोटा बेटा आ रहा है | देखना उसके आते ही मेरा रुतबा कितना बढ़ जाएगा | लोग मेरा कितना सम्मान करने लगेंगे |  परन्तु यह क्या | इधर राम लाल के छोटे बेटे ने शहर में पाँव रखा उधर राम लाल की सेहत बिगड़ गयी |
अब बिमारी कोई बता कर के तो आती नहीं है |  रामलाल  को  टी . बी हो गयी  |  खांसी का पुराना मरीज़  तो था ही पर बड़े बेटे के डॉक्टर होने के बावजूद  लापरवाही करता रहा | अब तो खांसी बहुत उग्र हो चुकी थी | टी बी का बेक्टीरिया भी एंटीबायोटिक रजिस्टेंस था | सो बिमारी और उग्र होने लगी | जब उसको खांसी का दौरा पड़ता  , तो लगता यह इस बार जान ही ले लेगा | रुतबा की चाह  रखने वाला घर के एक कमरे में चारपाई पर कैद हो गया |खांसना , थूकना और छत की तरफ टकटकी लगा कर ठीक होने की प्रतीक्षा करना यही उसकी दिनचर्या हो गयी |
बड़ा बेटा ,  घर के पास ही क्लिनिक चलाता था ,उसकी बहुत देखभाल करता | जरा सी तबियत बिगड़ने पर  क्लिनिक से दौड़ा चला आता है और तुरंत दवाई का इन्तजाम करता |छोटा  बेटा तो ज्यादातर दौरे पर ही रहता है । ऑफिस जाने के बाद घर लौटने का कोई निश्चित समय नहीं होता ।हालाँकि ऑफिस जाने से पहले वह भी पिता का हाल चाल पूंछने जरूर आता , परन्तु एक दूरी बना कर रखता | उसे ध्यान रहता है की पिता की खांसी के छींटे कहीं उसके कीमती कपड़ों को ख़राब न कर दें ।या कहीं उसके जूतों की पॉलिश न ख़राब हो जाए |रामलाल मन ही मन उसके इस व्यवहार से आहत होता रहता | आज बिस्तर पर पड़े पड़े रामलाल  ने यह फैसला किया की वो छोटे बेटे से इस दूरी की वजह पूँछ कर रहेगा | आखिर क्या कारण है की वो उसके पास भी नहीं बैठता | उसने तो बचपन से लेकर आज तक छोटे को ही सबसे ज्यादा स्नेह दिया | खुद आधा पेट खाया पर उसके लिए पूरी तरकारी का इंतजाम किया | अब जब जीवन का आखिरी समय आया तो इतने स्नेह को वो कैसे भूल गया ? क्यों नहीं वह उसके बगल में बैठ जाता है | या उसके सर पर प्यार से हाथ फेरता है | उसके स्नेह में यह खोंट कैसे आ गया ? रामलाल सोंच ही रहा था की छोटा बेटा दरवाजे पर आगया और जल्दी में बोला ,” अच्छा पिताजी चलता हूँ , एक जरूरी मीटिंग है , अपना ध्यान रखियेगा | ” बूढा रामलाल ये बेगानापन सह  नहीं पाया | जो कुछ उसके मन में था सब वैसे का वैसा उड़ेल दिया , साथ में उसके व्यवहार से बड़े बेटे की हमदर्दी भरी देखभाल की तुलना भी कर दी |
                 छोटा बेटा कुछ पल तो मूर्तिवत खड़ा रहा फिर क्रोध मिश्रित आश्चर्य में बोला ,” बाबूजी ,आप ऐसी तुलना कैसे कर सकते हैं | आप  बड़े भैया की तो बात न करें तो बेहतर है | वो तो दिन भर गंदे – संदे  मरीजों के बीच रहते ही हैं | आप को भी देख लिया तो क्या गज़ब कर दिया | पर मुझे तो ऑफिस जाना है | अगर ये बदबू मेरे कपड़ों में भर गयी या आप के थूंक और बलगम के छींटों ने मेरे जूतों की पॉलिश खराब कर दी तो ऐसी अस्त व्यस्त  हालत में ऑफिस जाने पर कौन मेरा रूतबा मानेगा  ?”
कह कर छोटा बेटा तो तमतमाते हुए  चला गया , शायद उसके पास रामलाल की आंसूं भरी आँखे देखने का भी समय नहीं था | लुढकते आंसुओं और टूटी आशा के बीच रामलाल के मन में बस एक ही ख्याल रह – रह कर आ रहा था की विधि की कैसी विडंबना है
” जिनके सहारे उसने दुनिया पर रुतबा दिखाने की सोंची , वो उसे ही रुतबा दिखा कर चला गया |” 
 वंदना बाजपेयी 

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