गुरुवार, 16 मार्च 2017

अभी तो ...







हर दिन ईश्वर का दिया उपहार है | इसे मुस्कुरा कर खोलिए                     
अज्ञात 
अभी तो … एक अधूरा  सा शब्द  है | फिर भी अपने आप में पूरा | कई बार यह कितना महत्वपूर्ण हो जाता है | वह भी तब जब हमारे मुँह से यह आनायास ही निकलता है | जरा गौर करिए जब- जब  हम यह वाक्य बोलते हैं | अभी तो ,पिछले महीने तक  भले चंगे थे |अचानक क्या हुआ ?अभी तो, कुछ दिन पहले उन्होंने अपने बरसों पुराने सपने के पूरे होने की मिठाई खिलाई थी |  अभी तो, कल ही उनसे बात हुई थी फोन पर , अभी तो सुबह ही उन्हें देखा था पार्क में टहलते हुए |अभी तो तो … एक ऐसा शब्द है जब अचानक से किसी की मृत्यु की खबर पर हमारे मुँह से निकलता है |
 अभी …और अभी तो के बीच में किसी व्यक्ति का पूरा जीवन सिमटा होता है | 

                                                       हम सब के वर्तमान से अतीत बनने  में केवल एक पल का फासला होता हैं | पर हम में से अधिकतर खुद के अतीत हो जाने से पहले अतीत में ही खोये रहते हैं | हम किसी कीमती सामान की तरह उन यादों को सहेज कर रखते हैं जिन्होंने हमें दर्द दिया , जहाँ हमें कोई बात चुभी , जहाँ हमारा अहंकार आहत हुआ | ये भी सच है की हम सुनहरी यादों को भी याद करते हैं पर वो केवल दोस्तों या अपनों के बीच , किस्से कहानियाँ सुनाते हुए | पर अकेले में जब हम खुद के साथ होते हैं , तो न जाने कितना दर्द ढोते हैं |
भविष्य के रंगीन सपने बुनने वालों की भी कमी नहीं है | एक युवा जोश से भरे व्यक्ति को सब कुछ हरा ही हरा दिखयी देता है | अतीत और भविष्य की रेलमपेल में जो सबसे ज्यादा प्रभावित होता है  , वो है वर्तमान पल | जो हमारे हाथ से रेत की तरह फिसलता जाता है और जीवन स्वयं रेत में तब्दील होता जाता है | हम खुद से या किसी अपने से लाख स्नेह करे उसके जीवन का एक पल भी बढा  नहीं सकते | कुछ करने के लिए हमारे हाथ में जो भी है वो  वर्तमान पल ही है | सोंचने वाली बात है ईश्वर की दी इस अनमोल भेंट  को हम कितनी बेदर्दी से नष्ट करते चलते हैं |

कितनी बातें थी जो हम सोंचते हैं की किसी से कल कह देंगे | या कभी समय मिलेगा तब कह देंगे | कितने काम कल पर टालते जाते हैं | ये सोंच कर की कल तो होगा ही | वो तो रोज़ होता है हमारे और हमारे अपनों के बीच में | कितना कुछ जरुरी ” फिर कभी “के ” वेट बॉक्स ” में पड़ता रहता है | और उसके नसीब का इंतज़ार कभी पूरा नहीं होता |   बहुत कुछ जो नहीं कहा , बहुत कुछ जो नहीं किया , बहुत कुछ जो नहीं दिया वो अभी से अभी तो का फासला पार कतरते ही कितना बेमानी हो जाता है |
सच में , हमें सीखनी है पल – पल जीने की कला |आइये फैलाए हथेली और समेत लें अभी के पल को , भरपूर जीने के लिए |
वंदना बाजपेयी

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