चेतना अपनी बालकनी में बैठी है । पड़ोस के घर से किशोरियां लोकगीत पर नृत्य कर रही हैं , पर लोकगीत के शब्द उसके कानों में पिघले शीशे की तरह चुभ रहे हैं ।
" जो मेरी ननद प्यार करेगी जल्दी ब्याह रचा दूंगी ,
जो मेरी ननद लड़ी लड़ाई मैके को तरसा दूंगी "
उसने तो कोई लड़ाई नहीं की फिर भी उसकी भाभी राधा उसका आना क्यों पसंद नहीं करतीं ।
माँ बाबूजी बीमार हैं पर वो दो दिन भी वहां रुक नहीं पाती ।
राधा भाभी कभी शब्दों से अपमान कर कभी बर्तन पटक कर और कभी आँखों से उसे " अनचाहा मेहमान " सिद्ध कर ही देती हैं । उसका हृदय अपने माता -पिता व भाई के लिए तड़पता है पर वह मायके नहीं जा पाती है क्योंकि माँ -बाप की यह लाडली भाभी की आँखों में खटकती है ।
विधी की कैसी विडम्बना है एक नारी ही दूसरी नारी का दर्द नहीं समझती है ।
समय फिसलता है । राधा भाभी के पिता को दिल का दौरा पड़ता है ।
राधा भाभी रोती कलपती मायके जाती है पर ये क्या उसकी भाभी तो उसे घर के अन्दर ही घुसने नहीं देती हैं , और कहती हैं "एक तो बीमार ससुर को झेलो ऊपर से ननद रानी सर पर बोझ बन कर आये न बाबा न " ।
भारी मन से राधा भाभी घर वापिस आ जाती हैं ।
आते ही सबसे पहले वो चेतना को फ़ोन मिलाती हैं " दीदी कुछ दिनों के लिए घर आ जाओ मन बहुत उदास है ।
चेतना अवाक् रह जाती है ।
विधी की कैसी विडम्बना है कभी -कभी एक नारी का दर्द ही दूसरी नारी के लिए दवा बन जाता है ।
वंदना बाजपेयी
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