जिन्होंने भी टी वी पर ओमपुरी जी को बहस करते देखा होगा | वो अवाक तो जरूर रह गया होगा |सहसा कानों पर विश्वास नहीं हुआ होगा | ओमपुरी जी की छवि एक सशक्त कलाकार की है |जिनके लाखों फैन हैं | एक कलाकार जिसके अन्दर भावनाओं को समझने की ताकत दूसरों से ज्यादा होती है | उसके मुंह से ऐसी बातें सुनना , वो भी ऐसे समय में जब दो देशों के बीच तनाव चल रहा हो , अत्यंत बचकाना लगता है | जिन्होंने भी सुना वह इतना तो बोला ही होगा , ” धन्य है ओम पूरी जी और उनका अनोखा दर्शन |उन्हें गुस्सा किस बात का है | उनकी दो बातें जो बेहद गलत लगीं उनको जरूर रखना चाहूंगी | पहली बात पाकिस्तानी कलाकार यहाँ काम कर सकते हैं या नहीं ये देखना सरकार का काम है | फिर भी इस पर बौलीवुड दो धडों में बाँट गया है | हर कोई अपना पक्ष रख रहा है | पर पक्ष रखने में भी शालीनता की आवश्यकता होती है | फवाद खान जिनका नाम इस प्रकरण में बार – बार उछाला जा रहा है |
और जिनके लिए हमारे बौलीवुड का एक धडा संघर्षरत है | वह स्वयं नेशन फर्स्ट कह कर पकिस्तान चले गए हैं | फिर भी क्योंकि हमारा देश लोकतान्त्रिक देश है और सबको बोलने की आज़ादी है | तो किसी भी आधार पर उन लोगों को गलत नहीं ठहराया जा सकता जो फवाद के पक्ष में , कला के सीमाहीन होने के पक्ष में बोल रहे हैं | पर ओम पूरी जी भारत – पकिस्तान के कलाकारों के काम करने या न करने के प्रश्न को सामप्रदायिक एकता व् सौहार्द से जोड़ते हैं |तो इसे क्या कहा जाए | सोचने वाली बात है | जब दो देशों के मध्य तनाव हो तब धर्म , सम्प्रदाय , प्रान्त , भाषा से परे पूरा देश एक होता है | तब यहाँ के रिश्तेदार वहां के रिश्तेदार जैसी बचकाना बात वो काम करने की कोशिश करती हैं जो शयद पकिस्तान न कर पाए |ओमपूरी जी ऐसे समय में हमें एक जुट होना है बंटना नहीं है |खैर ! उस बात को नज़र अंदाज़ भी कर दिया जाए तो भी सैनिकों के बारे में कही गयी उनकी बात नाकाबिले माफ़ी है | आखिर ओम पुरीजी को गुस्सा किस बात का है | उनका प्रश्न हतप्रभ करने वाला है की , ” किसने कहा था सेना में जाने को | वो सनिकों की शाहदत पर सर झुकाने के स्थान पर बेहूदा प्रश्न करते हैं | आश्चर्य है की वो स्वयं सैनिक के बेटे हैं | कलाकार हो कर भी वो ये नहीं जान सके की कोई भी व्यक्ति जो काम करता है उसका उस काम के प्रति पैशन होता है | इसी के आधार पर लोग डाक्टर इंजिनियर , व्यवसायी आदि बनतें हैं | सेना में अपने सर पर कफ़न बाँध कर वही व्यक्ति जाता है | जिसे अपने देश से इतना प्यार होता है की वो उसके ऊपर जान भी न्यौछावर कर दे | क्या पर्दे पर ” ये देश है वीर जवानों का , सरफरोशी की तमन्ना , या मेरा रंग दे बसंती चोला जैसे गाने गा कर देशभक्ति के रंगों में रंगे कलाकार अपनी जान पर खेल कर बोर्डर पर जा सकते हैं |जहाँ एक ओर हमारी फिल्मों के अनेकानेक कलाकार सैनिकों से मिलकर कह चुके हैं की ,” असली हीरो तो ये हैं हम तो बस अभिनय करते है | वहीँ ओमपुरी का ये प्रश्न निहायत ही गैर जिमेदाराना है | प्रश्न तो यह भी पूंछा जा सकता है की ओमपुरी जिसे किसने कहा था की कलाकार बने ? यह उन तमाम लोगों के दिल तोड़नेवाली बात है जिन्होंने उन्हें सर आँखों पर बिठाया |
स्वाधीनता किसी भी देश की खुशहाली की पहली शर्त हैं | पराधीन देश में इन्सान में इंसान ही मुरझा जाता है फिर कला क्या जीवित रहेगी | क्या ये भी समझाने की बात है की जो हम रात को निश्चिन्त हो कर सो रहे हैं | अपने धंधे , व्यापर को कर रहे हैं | कला संस्कृति का विकास हो रहा है , व् हम सब नित नवीन कलाओं का आनद ले रहे हैं | वह सब उन सैनकों की वजह से है जो देश की रक्षा के लिए सीमा पर पहरा दे रहे हैं व् अपनी जान की भी परवाह नहीं कर रहे हैं |हम न सिर्फ उन सैनिकों के बल्कि उनके परिवारों के भी ऋणी हैं , जिन्होंने अपने बच्चे भाई पति से सेना में जाते समय आप जैसा बेहूदा प्रश्न नहीं किया | न सिर्फ उनका मनोबल बढया बल्कि अपने हिस्से का सुख भी कुर्बान कर दिया | दिल से मैं उन सभी को सलाम करतई हूँ |
आप ने तो अपना प्रश्न पूँछ दिया अब मैं आप से प्रश्न पूछती हूँ ,” इस अमन सकूं , व् कला के विकास के लिए क्या कलाकार बोर्डर पर जायेंगे | क्या आप जायेंगे ?
आप ने तो अपना प्रश्न पूँछ दिया अब मैं आप से प्रश्न पूछती हूँ ,” इस अमन सकूं , व् कला के विकास के लिए क्या कलाकार बोर्डर पर जायेंगे | क्या आप जायेंगे ?
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