शुक्रवार, 24 मार्च 2017

टफ टाइम -इम्पैथी रखना सबसे बेहतर सलाह है





किसी का दुःख समझने के लिए उस दुःख से होकर गुज़ारना पड़ता है – अज्ञात

रामरती देवी कई दिन से बीमार थी | एक तो बुढापे की सौ तकलीफे ऊपर से अकेलापन | दर्द – तकलीफ बांटे तो किससे | डॉक्टर के यहाँ जाने से डर लगता , पता नहीं क्या बिमारी निकाल कर रख दे | पर जब तकलीफ बढ़ने लगी तो हिम्मत कर के  डॉक्टर  के यहाँ  अपना इलाज़ कराने गयी | डॉक्टर को देख कर रामरती देवी आश्वस्त हो गयीं | जिस बेटे को याद कर – कर के उनके जी को तमाम रोग लगे थे | डॉक्टर बिलकुल उसी के जैसा लगा | रामरती देवी अपना हाल बयान करने लगीं | अनुभवी डॉक्टर को समझते देर नहीं लगी की उनकी बीमारी मात्र १० % है और ९० % बुढापे से उपजा अकेलापन है | उनके पास बोलने वाला कोई नहीं है | इसलिए वो बिमारी को बाधा चढ़ा कर बोले चली जा रहीं हैं | कोई तो सुन ले उनकी पीड़ा | अम्मा, “ सब बुढापे का असर है कह  सर झुका कर दवाई लिखने में व्यस्त हो गया | रामरती देवी एक – एक कर के अपनी बीमारी के सारे लक्षण गिनाती जा रही थी | आदत के अनुसार वो डॉक्टर को बबुआ भी कहती जा रही थी |
रामरती देवी : बबुआ ई पायन में बड़ी तेजी से  पिरात  है |
डॉक्टर – वो कुछ  नहीं

रामरती – कुछ झुनझुनाहट होती है
डॉक्टर : वो कुछ नहीं
रामरती – तनिक अकाद भी जात है |
डॉक्टर – वो कुछ नहीं
रामरती – जब पीर उठत है तो
डॉक्टर : कहा न अम्मा ,” कुछ नहीं
रामरती (गुस्से में ), जब तुम्हारे पिरायेगा , तब कहना कुछ नहीं
(आपको क्या लगता है , डॉक्टर को सिर्फ दवा लिखनी चाहिए थी  | या ये जानते हुए की रामरती जी अकेलेपन की शिकार हैं उसे दो मिनट उसकी तकलीफ सुन लेनी चाहिए थी | साइकोसोमैटिक डिसीजिज , जहाँ तन का  इलाज़ मन के माध्यम से ही होता है | डॉक्टर भी उसे ठीक करना चाहता था | शायद उसकी रामरती जी की तकलीफ को नज़रंदाज़ करने की या उपहास उड़ाने की  मंशा नहीं थी , जैसा रामरती जी को लगा |
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                सुराज की नौकरी चली गयी | वो मुँह लटकाए घर आया | कई दिनों तक घर से बाहर नहीं निकला | रिश्तेदारों में खलबली मची | सब उसे समझाने आने लगे | तभी उसका एक रिश्तेदार दीपक आया | वो उसे लगा समझाने ,” अरे एक गयी है हज़ार नौकरियाँ तुम्हारा इंतज़ार कर रही है | “ थिंक पॉजिटिव “ , ब्ला ब्ला ब्ला | थोड़ी देर सुनने के बाद सुराज कटाक्ष करने वाले लहजे में  बोला ,” मुझे पता है की हज़ारो , अरे नहीं लाखों नौकरियां मुझे मिल सकती हैं | मिल क्या सकती हैं , बाहर लोग मुझे नौकरी देने के लिए लाइन लगा कर खड़े हैं | पर अभी मैं अपनी नौकरी छूटने का दुःख मानना चाहता हूँ | क्या आप मुझे इसकी इजाज़त देंगे | | दीपक , ओके , ओके कहता हुआ चला गया | वह सुराज को इस परिस्तिथि से बाहर निकालना चाहता था | पर शायद उसका तरीका गलत था |
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              स्वेता जी के पति का एक महीना पहले स्वर्गवास हो गया था | सहानुभूति देने वालों का तांता लगा रहता | उनमें से एक उनके पड़ोसी नेमचंद जी भी थे | जो उनके प्रति बहुत सहानुभूति रखते थे | रोज़ उनका हाल पूंछने चले आते | स्वेता जी का का संक्षिप्त सा उत्तर होता ,” ठीक हूँ | “ पर उस दिन स्वेता जी का मन बहुत उदास था | उसी समय नेमचंद जी आ गए , और लगे हाल पूंछने | स्वेता जी गुस्से से आग बबूला हो कर बोली ,” एक महीना पहले मेरे पति का स्वर्गवास हुआ है | आप को क्या लगता है मुझे कैसा होना चाहिए | चले आते हैं रोज़ , रोज़ पत्रकार बन के | नेमचंद जी मुँह लटका कर चले गए | वो सहानुभूति दिखाना चाहते थे पर तरीका गलत था |
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               कई बार हमें समस्याओं से जूझते वक्त एक बुद्धिमान दिमाग के तर्कों के स्थान पर एक खूबसूरत दिल की आवश्यकता होती है , जो बस हमें सुन सकें 

                              बात तब की है जब मैं अपनी सासू माँ के साथ रिश्तों की कुछ समस्याओं से जूझ रही थी | मैं चाहती थी की घर का वातावरण सुदर व् प्रेम पूर्ण हो | पर कुछ समस्याएं ऐसी आ रही थी | जिनको डील करना मेरे लिए असंभव था | हर वो स्त्री जो अपने परिवार को जोड़े रखने में विश्वास करती है , कभी न कभी इस फेज से गुजरती है | व् इसकी पीड़ा समझ सकती है | मैं  समस्याओं को सुलझाना चाहती थी पर असमर्थ थी | लिहाजा मैंने  सलाह लेने की सोंची | मैंने इसके लिए अपनी माँ को चुना | मुझे लगता था , माँ मेरे समस्या अच्छे से सुनेगी व् समाधान भी देंगी | क्योंकि बचपन से अभी तक मैंने माँ को सदा एक सुलझी हुई महिला के रूप में देखा है | समस्याओं को सुलझाना , रिश्तों को निभाना , व् सब को सहेज कर रखना ये उनके बायें हाथ का खेल रहा है | मैंने माँ को फोन लगाया | हेलो , की आवाज़ के साथ ही मैंने रोना शुरू कर दिया | एक - एक करके अपनी साड़ी समस्याएं बता दी | माँ , बीच - बीच में ओह ! , अच्छा , अरे कह कर सुनती जा रही थी | मैंने बात खत्म करके माँ से पूंछा माँ , आपको क्या लगता है | इस परिस्तिथि में मुझे क्या करना चाहिए | माँ धीरे से अपने शब्दों में ढेर सारा प्यार भर कर  बोली , बेटा , मुझे पता है  तुम कितनी तकलीफ से गुज़र रही हूँ | मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूँ | हे प्रभु ! ये बहुत कठिन समय है | पर तुम इससे निकल जाओगी |" 
                               फोन बंद करने के बाद , मुझे माँ पर बहुत गुस्सा  आया | तो इतना ही बस मुझसे उन्हें कहना था | क्या इसके अतिरिक्त कोई और शब्द नहीं थे ?क्या वो मुझे कोई सलाह नहीं दे सकती थी ? माँ ने अपनी गृहस्थी इतने अच्छे से चलाई है पर मेरे लिए उनके पास बस इतने ही शब्द हैं | मुझे लगा माँ मुझे सलाह देना नहीं चाहती | या पराई होने के बाद उन्हें मेरी समस्याओं से कोई मतलब नहीं रह गया है | गुस्से में मैंने कई दिनों तक माँ को फोन नहीं किया | जिंदगी जैसी थी वैसी ही चल रही थी | अचानक मुझे याद आया अपनी सहेली के बारे में जिसकी मौसी  कॉलेज में प्रोफ़ेसर  है | एक पढ़ी लिखी महिला हैं | मुझे लगा अपनी सहेली से पूँछ कर मैं उनकी मौसी  से बात कर लूं | 
                  मैं अपनी सहेली से मिलने गयी | उसने मेरी बात अच्छे से सुनी | फिर बोली देखो , मौसी से मिलने में कोई हर्ज नहीं है | पर मैं एक बार तुम्हारी ही तरह समस्याओं से घिरी हुई थी | मैंने भी मौसी को ही सबसे उचित सलाहकार समझा | मैंने मौसी को अपनी सारी  समस्याएं बताई | मौसी ने सुनने के बाद जब बोलना शुरू किया , तो उन्होंने मुझे मेरी गलतियों की लिस्ट पकड़ा दी | तुमन यहाँ गलत किया तुमने वहां गलत किया | तुम्हारी सास को यहाँ ये कहना चाहिए था | वहां वो कहना चाहिए था | मैं हतप्रभ थी | मौसी ने मुझे कोई सलाह डी या नहीं ये तो मुझे याद नहीं | पर घर से बाहर निकलते - निकलते मेरी सेल्फ एस्टीम , कांफिडेंस की धज्जियाँ उड़ा दी | इतनी आलोचना झेलने के बाद मुझे वापस उन्हें पाने में काफी समय लगा |बाद में मैंने अपनी समस्याएं खुद अपने तरीके से सोल्व की | मुझे लगा उस समय मुझे आलोचना की नहीं हिम्मत देने की जरूरत थी | अब फैसला तुम्हारे ऊपर है | तुम्हे मौसी से मिलना है ?
                     मैंने मौसी से मिलने का इरादा छोड़ दिया | रास्ते भर मैं अपनी सहेली के बारे में सोंचती रही | इतनी आलोचना उसने कैसे झेली होगी | उसकी मौसी ने क्यों उसकी इतनी आलोचना की | क्या वो अपने को सर्वाज्ञ सिद्ध करना चाहती थी | या उसे नीचा दिखाना चाहती थी ?अचानक मुझे माँ की याद आई | माँ ने मेरी बातों  को पूरे मन से सुना |उन्होंने मेरी दर्द , तकलीफ को समझा |  जिससे उन्होंने दिखाया की वो मेरे दर्द को समझती हैं | व् बिना मेरा ईगो हर्ट किये एक छोटी सी सलाह दी ," मुझे विश्वास है तुम इससे निकल  जाओगी | माँ , बहुत डिग्रीधारी नहीं हैं  पर उनकी सलाह पढ़ी लिखी मौसी से कहीं ज्यादा बेहतर थी | मुझे माँ पर प्यार उमड़ आया | मैंने झट से माँ को फोन लगा कर  धन्यवाद दिया | माँ की मिश्री सी आवाज़ आई , " मुझे पता था , तुम खुद समझोगी , तुम्हारा फोन आएगा | 
                       आज जब मेरी वो समस्या सुलझ  चुकी है | तो मुझे मुझे अहसास होता है की अक्सर हम सब दूसरे की समस्या सुनते ही खुदा बन जाते है | और तरह - तरह के सुझाव देने लगते हैं | पर हमारे सुझाव हर किसी पर असर नहीं कर सकते | क्योंकि हर व्यक्ति की परिस्तिथियाँ , उसकी आर्थिक , सामजिक स्तिथि  , मानसिक दशा एक सामान नहीं होते | ये सुझाव बस एक थोथे ज्ञान जैसे लगते हैं | व्यक्ति को अपनी समस्याओं को खुद सुलझाना पड़ता है | और हर व्यक्ति में ये क्षमता होती है | समस्याओं के समय घबरा कर जब वो दूसरे  के पास सलाह लेने जाता है | तो  वो भीतर से जानता है की उसे क्या करना है | ऐसे में उसे एक ऐसे व्यक्ति की दरकार होती है , जो उसे सुन सकें व् अहसास दिलाये की जिंदगी में कभी - कभी इतनी कठिन परिस्तिथियाँ आ जाती हैं जिनको हल करना आसान नहीं होता , साथ ही उसकी हिम्मत व् हौसला बढ़ा  सके न की ऐसे सलाहकार की जो ज्ञानी बन कर सामने आये व् उसकी कमियाँ  बता कर उसके आत्म  विश्वास को तोड़ दे | 

वंदना बाजपेयी 

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