शनिवार, 26 सितंबर 2015

दर्द



सुमि अकेले ही रहती है । पति को तीन साल के लिए दुबई में नौकरी मिल गयी है । सुमि की नौकरी यहाँ है ... अतः वह  पति के साथ जा नहीं सकी । बच्चे हॉस्टल में पढ़ते हैं ।

अकेलापन जैसे काटने को दौड़ता । मन उदासी का शिकार हो  गया था । शोर बिलकुल अच्छा नहीं लगता था । ऊपर से सामने बनने  वाले मकान का शोर...........  तौबा - तौबा । मकान का शोर तो वह बर्दाश्त भी कर लेती पर  सबसे ज्यादा उसे खटकती थी एक मजदूर स्त्री की आवाज । उसकी बहुत जोर कनकनाती  सी आवाज थी ।

शायद उसका नाम सुभागी था ... अकेली वही बनते हुए मकान में रहती थी । काला  रंग, बेतरतीब बाल,
मिटटी से सनी साडी, उपर से यह कनकनाती सी  आवाज । कुल मिलाकर सुमि को वह सख्त नापसंद थी ।सोचती थी कब यह मकान बने और कब वो यहां से जाये।

जीवन धीमी गति से आगे बढ़ रहा  था । आज सुमि जल्दी ही घर आ गयी ।
क्रोध, उत्तेजना, अपमान से उसका शारीर कांप रहा था । उसे अकेली समझ उसके बॉस ने एक निहायत घटिया प्रस्ताव उसके सामने रख दिया था । उस समय तो वह चल दी .... पर हाँथ पैर अभी भी गुस्से से कांप रहे थे । चाय चढ़ा कर वही सोफे पर पसर गयी ।सर दर्द से फटा जा रहा था ,कितना गन्दा है यह समाज जो एक अकेली औरत को शांति से जीने नहीं देता , अपनी प्रॉपर्टी समझता है ………छी ,थू क्या करे , कहाँ जाये ?मन में विचार थमने का नाम नहीं ले रहे थे।

पर ये क्या ... बाहर से सुभागी की जोर जोर से चिल्लाने की आवाज आ रही थी ।  ओफ्फो !वह तमतमाती हुई खडकी बंद करने गयी । पर वहां का नजारा देख कर जड़ हो गयी । सुभागी के हाथ में हंसिया था .... वह जोर  - जोर से एक मजदूर पर चिल्ला रही थी ।

 ' अकेली औरत हूँ पर कमजोर नहीं हूँ । हिम्मत कैसे हुई तेरी ऐसा बोलने की । काट कर फेंक दूँगी ... डरती नहीं मैं किसी से ... मेहनत की खाती हूँ  हराम की नहीं '
वह मजदूर डर कर भाग गया । सुभागी चिल्लाती रही ।

ना जाने सुमि को क्या हुआ उसने सुभागी को अपने पास बुला कर चाय का प्याला पकड़ा दिया । सुभागी सुड़क सुड़क कर चाय पीती जा रही थी और जोर जोर से अपनी बात बता रही थी ।

पर आज  उसकी आवाज सुमि को कर्कश नहीं लग रही थी ..... दोनों का दर्द जो एक था । 

औरत होने का दर्द 

वंदना बाजपेयी 

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