सोमवार, 28 सितंबर 2015

रिया स्पीक्स: "सीखने की उम्र "




दादी :( बालकनी में प्रवेश करते हुए) हे ! शिव शिव शिव (खुद से बड़बड़ाते हुए ),हा सूर्य देव ,बड़ी किरपा कीं हो ,बड़ी नीक घाम निकली है।
अइसन ही जाड़ा  भर चमकत राहो तो जाड़ा कट  जैहिये वरना हम बुजर्गन को तो बड़ी दिक्कत हो जात है ,न रजाई छूटत है न कँपकँपी छूटत है। .......... राम ही राम कर कर के कटत है। (रिया को आवाज़ लगाते हुए )रिया अरी ओ रिया ,यहन आइयो घाम में ,का कमरा में घुसी बैठी हो ,आत वक्त  हमार गठिया वाला गर्म तेल भी लेत  आइयो ,ईहाँ घामें में मालिश कर लहिए। ………का करी परिया बड़ी पिरात हैं।
रिया :(फोन पर बात करते हुए आती है )ओह याह ! दैट  इस ग्रेट …………सही ही कहा है किसी ने "खुदी को कर बुलंद इतना ,खुदा  बन्दे से खुद पूँछे बता तेरी रजा क्या है? आखिरकार उन्होंने कर दिखाया। मेरी तरफ से उन्हें मुबारकबाद देना ,और एक स्पेशल हग। ओके बाय। (फोन बंद कर के )
ये लो दादी अपना तेल ,और करो मालिश ,गठिया दूर भगाओ।  टिंग ,टिंग टिंग
दादी :(तेल लेते हुए )आज हमार बिटियाँ बड़ी खुश है ,का बात का है ?
रिया :सच में दादी ,आज मैं बहुत खुश हूँ ,और मेरी ख़ुशी की वजह है मेरी सहेली पिंकी के घर केव बगल में रहने वाली सुमित्रा आंटी……यस ! उन्होंने कर दिखाया।
दादी :तनिक ठीक से बताओ बिटिया ,हमका तो कुछो नाही बुझाय रहा है।
रिया :दादी दरसल मेरी सहेली  पिंकी के घर के बगल में सुमित्रा आंटी और उनके पति रहते थे। उनका एक बेटा अपने परिवार के साथ अमरीका में रहता है। पिंकी अक्सर उनके घर जाया  करती थी। अब पिंकी की अपनी दादी तो है नहीं उसे वह स्नेह सुमित्रा आंटी से ही मिल जाता। और आंटी को भी अपने पोते -पोती  की दूरी न खलती। सब कुछ अच्छे से चल रहा था कि पिछले साल अंकल की डेथ हो गयी। ................ इतने बरसों का साथ टूट गया। ………आंटी बिलकुल गुमसुम रहने लगी। बेटा उन्हें अपने साथ ले गया.............. दूसरे देश  का रहन -सहनऔर  एकाकी पन  उन्हें रास नहीं आया। …………बेटे से जिद करके वापस अपने घर आ गयी।
दादी :हे शिव शिव शिव। ................ बड़ा दुःख भा   सुन के , खूँटे की गइया को खूंटे से लगाव तो हो ही जात  है ,
और फीर  ई घर में भरतार की यादें भी तो बसी राहे ,कौन्हौ चीज देख सुनी के समय कट जात  हुइए। परभु की लीला बड़ी विचित्र है पहले खुदही मोह जोड़त हैं फिर काहत है मोह माँ भी बुराई है। हे !शिव ,शिव शिव
रिया :(धीमे स्वर में )दादी जब समय कट्ता  नहीं है न तो समय काटने लगता है। ............. और सुमित्रा आंटी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ.…हर समय हंसती मुस्कुराती रहने वाली सुमित्रा आंटी ,दिन भर अकेले अंकल को याद करने के कारण कुम्हला सी गयी। भयकर अवसाद से घिर गयी ,न कुछ खाने -पीने का मन करता न किसी से बोलने का। ……… शारीरिक बीमारियों का असर मन पर भी हुआ। ……… अनेक रोग जो उनकी खुशी  की वजह से डरे बैठे रहते थे ,मौका देखते ही आगये।  हालत ये हो गयी कि घर -आँगन चलना -फिरना मुश्किल हो गया।  फिर एक दिन पिंकी ही ले गयी उनको मोहल्ले के प्रवचन में…………
दादी :(एकटक रिया को देखते हुए ) फिर का भया  बिटिया ?
रिया :दादी वहां के प्रवचन का आंटी पर बहुत असर हुआ।
दादी अईसन का बताया  प्रवचन मा ,हमहू तो जाने।
रिया :दादी ,प्रवचन में बताया इंसान तब तक जीवित है जब तक उसमें जिजीविषा या जीने की इक्षा है।  और जीने की इक्षा तभी रहती है जब इंसान न ज्यादा अतीत को याद करे ना ज्यादा भविष्य की चिंता में व्यस्त रहे वो अपने आज को जिए।  आज में उत्त्साह बनाये रखने के लिए जरूरी है ,हर दिन कुछ नया सीखना ,कुछ नया करना ,केवल वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करना।
दादी :अरे बिटिया ! हम सोचे कोनहु अच्छी बात बतायी रहे अब ई का हर दिन कुछ नया सीखो। का उम्र रहे तुम्हार आंटी की ,कैसे नयी चीज सीखिये। बात करत हैं अब बूढ़ा तोता राम -राम तो नाही कर सकत है। पुरान  जमाने से कहावत चली आ रही है , समझावे को का ,कुछो समझा दो
रिया :नहीं दादी ,पुराने ज़माने से तो यह भी कहावत चली आ रही है। ………… जहाँ  चाह , वहां राह। ………और वही हुआ आंटी के साथ ,बचपन में उनको चित्रकारी शौक था ,शादी हुई घर ,बच्चे ,पता नहीं कब भूल गयी वो, कि वो  एक व्यक्ति भी हैं। पर उस दिन उन पर इन बातों का असर हुआ कि जाने वाले के साथ जाया  तो नहीं जा सकता है जो जीवन मिला है  क्यों न उसे कुछ अच्छा करने में ,नया सीखने में लगाये। ............. उन्होंने पहले खुद चित्रकारी  सीखी………… ओर अब ………
दादी :(उत्सुकतासे )अब का बिटिया ?
रिया :अब अपने घर में कई बच्चों को सिखाती भी हैं ,घर बच्चों से भरा रहता है ,सूनापन भी दूर हुआ और नयी चीज सीखने से जीवन के उत्त्साह भी आया।  ६० साल की उम्र में एक नयी पारी शुरू की ,है न ख़ुशी की बात। दादी वैसे आप की उम्र क्या है ?
दादी :अब ठीक  -ठीक तो पता नाही ,भादों   की परेवा रहे ,बहुत अच्छी फसल  रही थी उस बरस तुम्हारे पापा के जो चचेरे छुटकवा मामा हैं उनसे दुइ महीना की छुटाई -बड़ाई रही होइए। ऊ हिसाब से ७० के आस -पास की भई। रिया :मलतब ,सुमित्रा आंटी से १० साल बड़ी। वाओ !
दादी :बिटिया ,एक बात ह महू कहना चाहत हैं ,ऊ वक्त लड़कियां को पढ़ाया तो नाही जात  था ,पर हमरे दिल माँ बड़ी इक्षा रहे मन मसोस  रह गयी रहन। अब भी जब तुम -लोगन को अखबार मा खबर पढ़त  देखत है तो हमार भी मन करत है कुछ पढ़ें का ,पर का करी हमार  लिए तो काल आखर भैंस बराबर। ............. तुम्हारी बात सुन कर ईक्षा जाएगी है। ऐ बिटिया का हमहू पढ़ सकत हैं.,....  इत्ता -उत्ता ,थोड़ा ,बहुत।
रिया :वाह दादी ! क्या बात कही आपने। आप जरूर पढ़ सकती हैं। मैं आपको पढ़ाउंगी।  फिर आप खुद अखबार पढ़ सकेंगी , आपको किसी से खबर पूंछने की जरूरत  नहीं पड़ेगी।  मम्मी तो दिन भर काम में उलझी रहती हैं ,मुझे अपनी पढाई करनी होती है। नयी चीज सीखने से आप भी बिजी रहेगी और आपको  अकेलापन भी नहीं लगेगा। आप ने खुश कर दिया दादी।
दादी :पर बिटिया का हम ई उमर मा पढ़ पहिये ,नाक तो न कटाई जाई ,सब हँसे।
रिया :दादी सीखने  की कोई उम्र नहीं होती दादी ,जो हँसता है वो गलत है। और दादी आप पुरे  हौसले से पढ़िए आप जरूर सीख जाएंगी।रिया (दादी के गले में बाहे डालते हुए) दादी अब दो लाइन मैं सुनाती हूँ।
            कौन कहता है आसमां में छेद नहीं होता
            एक पत्थर तो तबियत  से उछालों यारों

दोनों हंस पड़ती हैं।




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