सावन की तीज आई
घनघोर घटा छाई
मेघन झड़ी लगाईं ,परिपूर्ण
मंदिनी
झूलन चलो हिंडोलने वृषभानु नंदिनी
कल 17 अगस्त को
सावन की तीज है |आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह
उत्सव हमारे सर्वप्रिय पौराणिक युगल शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में
मनाया जाता है।
दो
महत्वपूर्ण तथ्य इस त्योहार को महत्ता प्रदान करते हैं। पहला शिव-पार्वती से जुड़ी
कथा और दूसरा जब तपती गर्मी से रिमझिम फुहारें राहत देती हैं
और चारों ओर हरियाली
छा जाती है। यदि तीज के दिन बारिश हो रही है तब यह दिन और भी विशेष हो जाता है।
जैसे मानसून आने पर मोर नृत्य कर खुशी प्रदर्शित करते हैं, उसी प्रकार महिलाएँ भी
बारिश में झूले झूलती हैं, नृत्य
करती हैं और खुशियाँ मनाती हैं। तीज के बारे में हिन्दू कथा है कि सावन में कई सौ
सालों बाद शिव से पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। पार्वतीजी के 108वें जन्म में शिवजी उनकी
कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और पार्वतीजी की अपार भक्ति को जानकर उन्हें अपनी
पत्नी की तरह स्वीकार किया।आकर्षक तरीके से सभी माँ पार्वती की प्रतिमा मध्य में
रख आसपास महिलाएँ इकट्ठा होकर देवी पार्वती की पूजा करती हैं। विभिन्न गीत गाए
जाते हैं।तीज के मुख्य रंग गुलाबी, लाल और हरा है। तीज पर हाथ-पैरों में मेहँदी भी जरूर लगाई जाती
है।हरे रंग की चूड़ियों का तीज में विशेष महत्व हैं |
भारतीय
नारी के जीवन में चूड़ियों का बहुत ही महत्व है| भारतीय नारियाँ रंग-बिरंगी चमकीली चूड़ियाँ कलात्मक एवं सुरुचिपूर्ण
ढंग से पहनकर अपनी कोमल कलाइयों का शृंगार करती हैं। यह शृंगार शताब्दियों से
कुमारियों एवं नारियों को रुचिकर प्रतीत होता है, साथ ही स्वजन-परिजन भी हर्षित होते हैं। हाथ की
चार चूड़ियाँ उनके अहिवात को सुरक्षित रखने के लिए ही पर्याप्त हैं।आज तीज के दिन
पुरानी डायरी पलटते हुए बहुत पहले चूड़ियों पर लिखी गयी कविता नज़र आई | जिसे आप सब के सम्मुख पेश
कर रही हूँ
क्या -क्या न् सितम हम पे ये ढाती हैं चूड़ियाँ
जब भी कभी कलाई में आती हैं चूड़ियाँ
चुभती हैं कलाई में जब खुद से झगड़कर
तब और सुर्ख लाल नजर आती हैं चूड़ियाँ
हों नीली -पीली या फिर लाल गुलाबी
हर रंग में दिल को लुभाती हैं चूड़ियाँ
कितना भी चले हम अपने पाँव दबाकर
आने की खबर पहले ही दे आती हैं चूड़ियाँ
जासूस हैं साजन की मेरे जानते हैं हम
फिर भी न जाने दिल को क्यों भाती हैं चूड़ियाँ
वंदना बाजपेयी
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