वंदना बाजपेयी
अगर आप अखबार पढ़ते हैं तो आप ने विगत दो -तीन दिन में दिल्ली में घटी इन घटनाओं पर ध्यान अवश्य दिया होगा | पढ़ कर सिहरन तो जरूर हुई होगी | क्योंकि हत्या और मारपीट कर जख्मी कर देने की ये वारदातें दो दुश्मनों के बीच नहीं वरन दो प्यार करने वालों के बीच हुई हैं | जिन्होंने अखबार नहीं पढ़ा हैं उन्हें in प्रेमी जोड़ों के बीच घटी घटनाओं के बारे में संक्षिप्त रूप से बताना चाहूंगी | घटनाएं इस प्रकार हैं …
* प्रेमी ने प्रेमिका की सरेआम कैंची से गोदकर हत्या की …….. कम्प्यूटर कोर्स कराने वाला ३४ साल का प्रेमी अपनी २२ साल प्रेमिका ( पता नहीं प्रेमिका कहे या एक तरफ़ा प्यार ) के इनकार से क्रोधित हो चलती सड़क पर सरेआम उसकी कैंची से गोद कर हत्या कर देता है | भीड़ तमाशाई बन कर देखती रहती है |
* एक अन्य युवक अपनी प्रेमिका को बिल्डिंग के तीसरे माले से धक्का दे देता है | जिससे उसकी हड्डियाँ टूट जाती हैं | कारण था प्रेमिका द्वारा किसी बत पर खफा हो कर बातचीत बंद कर देना |
* तीसरा युवक घरेलू झगड़े में आपा खोकर अपने ससुर, साले और साढू की हत्या व् अन्य दो को जख्मी कर देता है |
ये सब घटनाएं पढ़ कर आप भी मेरी तरह ही सोंच रहे होंगे ,” क्या यही प्यार है ?” किशोरावस्था में जब माता – पिता और परिवार के अतरिक्त प्यार शब्द किसी अनजाने साथी के लिए ह्रदय में प्रवेश करता है तो न जाने मन के शांत समुन्द्र में कितनी मीठी लहरे उत्त्पन्न हो जाती हैं | जहाँ खुद
को अपने से भी ज्यादा प्यार करने वाले , दुसरे की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी समझने वाले ,व् जान न्यौछावर करने वाले साथी की कल्पना सहज ही मन में घर कर जाती है | नजाने कितनी फिल्मे , ज्कवितायें और कहानियाँ इस भावना को और प्रज्ज्वलित कर देते हैं | परन्तु हाल में जो प्यार का विद्रूप चेहरा उभर कर आया है वो बेहद ही घिनौना है | यहाँ दुसरे की नहीं बस अपनी ख़ुशी का ही ख्याल है |यहाँ प्यार नहीं पजेशन की फीलिंग है | अहंकार का भाव है | ” टू मेरी नहीं तो किसी की भी नहीं हो सकती की हद तक हिसंक प्रवत्ति विकसित हो गयी है | ये ही वो आशिक हैं जो तेज़ाब फेंकते हैं , जो बालकनी से फेंकते हैं या सरेआम चाकुओं से गोदते हैं | जाहिर है इसका शिकार महिलाएं ही हैं |जो कांच से नाजुक तथाकथित पुरुष अभिमान के टूटने पर पीड़ित होती हैं |अभी हालिया रिलीज फिल्म पिंक ” महिलाओं के ना कहने के अधिकार की वकालत करती है |” पर क्या ये अधिकार महिलाओं को मिला है | समाज में व्याप्त सोंच ” ऐसी महिलाओं के साथ ऐसा ही होता है ” | महिलाओं को जबरन घरों में कैद रहने को विवश कर सकती है | पर क्या आज के ज़माने में ये संभव है ? सीधा सा उत्तर है .. नहीं |भले ही यह हिंसक प्रवत्ति किसी मानसिकता की उपज हो पर इस पर लगाम लगाना क़ानून और व्यवस्था का काम है | दुखद है की कानून के हाथ इस मामले में बहुत छोटे साबित होते हैं | और महिलाओं के प्रति ये हिंसक घटनाएं घर की चाहरदीवारी से निकलकर सरेआम चौराहों पर होने लगी हैं | वहीँ दूसरी ओर इस हिंसक आशिकाना प्रवत्ति से भी ज्यादा घातक है समाज का इन घटनाओं के प्रति उदासीन हो जाना | यह इस प्रवत्ति को बढ़ावा देने का पर्याप्त कारण है |ये तीनों घटनाए अकेले में नहीं भीड़ के सामने हुई और भीड़ मूकदर्शक बनी रही |क्या इतने सारे लोग सड़क पर चीखती लड़की की चीखों से द्रवित हो कर उस सिरफिरे को काबू में नहीं कर सकते थे | काश की ऐसा हो सकता तो न सिर्फ उस लड़की की जान बच जाती बल्कि कोई अन्य सिरफिरा ऐसी हरकत करने से डरता | क्या हम सामाजिक रूप से अपनी ये जिम्मेदारी समझते हैं ? कम से कम इसे तथाकथित प्रेमी – प्रेमिका का मामला समझ कर मौन रहने की आवश्यकता तो बिलकुल नहीं है | क्योंकि ये कुछ भी हो सकता है प्रेम नहीं हो सकता |हमें याद रखना होगा की महिलाओं की सुरक्षा केवल तथाकथित प्रेम करने वाली ” ऐसी” लड़कियों की ” सुरक्षा नहीं है | क्योंकि हम भीड़ में इन घटनाओं का मौन समर्थन करके अपनी बहन – बेटियों की सुरक्षा भी खतरे में डाल रहे हैं |
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