शनिवार, 5 नवंबर 2016

रक्षा बंधन : भाई बहन के प्यार पर हावी बाज़ार


मेरे भैया मेरे चंदा मरे अनमोल रतन
तेरे बदले मैं ज़माने की कोई चीज न लूँ

रेडियो पर बहुत ही भावनात्मक मधुर गीत बज रहा है | गीत को सुन कर बहुत सारी भावनाऐ मन में उमड़ आई | वो बचपन का प्यार ,लड़ना –झगड़ना ,रूठना मानना | भाई –बहन का प्यार ऐसा ही होता है |इस एक रिश्ते में न जाने कितने रिश्ते समाये हैं ,बहन ,बहन तो है ही ,माँ भी है और दोस्त भी | तभी तो खट्टी –मीठी कितनी सारी यादें लेकर बहने ससुराल विदा होते समय भाइयों से ये वादा लेना नहीं भूलती कि “भैया साल भर मौका मिले न मिले पर रक्षा बंधन के दिन मुझसे मिलने जरूर आना , और भाई भी अश्रुपूरित नेत्रों से हामी बहर कर बहन को विदा कर देता | दूर –दूर रहते हुए भी निश्छल प्रेम की एक सरस्वती दोनों के बीच बहती रहती ,और ये पावन रिश्ता सदा हरा भरा रहता है |
अपने बचपन को याद करती हूँ तो माँ साल भर रक्षा बंधन का इंतज़ार किया करती थी | फिर खुद ही रेशमी धागों से कुछ कपड़ों की कतरनों से काट –काटकर सुन्दर राखियाँ तैयार किया करती थी | हमें भी वो ये पकड़ा देती और हम भी ग्लेज़ पेपर , ग्रीटिंग कार्ड से निकाले गए सितारे व् धागों से राखियाँ बनाते
| जब हम ये बनाते तो माँ अक्सर गुनगुनाया करती “ अबकी बरस भेज भैया को बाबुल सावन में लेजो बुलाय | “ राखी के महीने भर पहले से यानी सावन की शुरुआत से ही राखी के कपडे ,घर में तैयार करने वाली राखी ,और इस बार मामा के आने पर क्या बनेगा की चर्चा से बाहर सावन से धरती भीगती और अन्दर मन भाई के प्रेम से भीगता | मामा के आने पर लगता ठहाकों का दौर | शगुन की मीठी सेवईयों से रिश्ते की मिठास बढ़ जाती | एक –एक पकवान माँ हाथ से बनाती | हर राखी का धागा भाई बहन के इस रिश्ते को और मजबूत कर देता |
समय बदला हर त्यौहार की तरह रक्षा बंधन को भी बाजारवाद ने अपनी गिरफ्त में ले लिया | जिस तरह से दीपावली पर बल्बों की झालरों की बेतहाशा रौशनी भी दिये की सात्विकता का मुकाबला नहीं कर सकती उसी तरह ये डिजायनर राखियाँ भी हाथ की बनायी राखियों के प्रेम भाव का मुकाबला नहीं कर पाती | सावन की शुरुआत से ही बाज़ार चायनीज राखियों से सज जाते हैं | एक दूसरे की देखा –देखी अपने –अपने भाई को महंगी और महँगी राखी बंधने की होड़ लग जाती | सलमा सितारे लगी राखी ,नोट लगी राखी , चांदी के सिक्के लगी राखी , हीरे पन्ने की राखी हर तरह की राखियाँ उपलब्ध हैं | एक मन में प्रश्न उपजता है ज्यादा महंगी राखी या ज्यादा प्रेम का प्रदर्शन | या ये सात्विक प्रेम भी अब बाज़ारों में बिकने लगा है ,उसकी भी कीमत होने लगी है जितना भुगतान उतना ऊंचा प्रेम का पायदान |
बहन त्यौहार के दिन रसोई में न उलझी रहे बाज़ार ने इसकी पूरी व्यवस्था की है | तमाम तरह के नमकीन मीठे ,बने बनाये डिब्बे अलग –अलग कम्पनियों ने अलग –अलग नामों से बाज़ार में उतार दिए हैं | खोये की मिलावट के भय ने चॉकलेट के सेलेब्रेशन के गिफ्ट पैकिटों पर चांदी बरसा दी है | बहन का हाथ से सेवैया बना कर भाई का इंतज़ार करना बेमानी सा लगता है | बाज़ार में बिकते खूबसूरत कार्ड अपनी तराशी हुई शब्दावली के कारण बहन द्वारा पोस्टकार्ड पर लिखे चार अनगढ़ से शब्दों और अंत में लिखी दो लाइनों “ भैया थोड़े को कम समझना राखी पर जरूर आना को विजयी भाव से मुंह चिढाते हुए प्रतीत होते हैं |
भाई भी कहाँ कम हैं ………. भले ही राखी बाँधने आई बहन को भाई २ मिनट का वक्त न दे “ जल्दी राखी बांधों मुझे तुम्हारी भाभी को ले कर ससुराल जाना है कहकर बहन का सारा उत्साह ठंडा कर दे पर एक बढ़िया सा गिफ्ट बहन के लिए जरूर तैयार होगा |दूसरे शहर में रहने वाली बहन बरसों भाई के आगमन की प्रतीक्षा करती रहे पर नौ की लकड़ी नब्बे खर्च के सिद्धांत पर चलते हुए भाई गिफ्ट आइटम भेजना खुद जाने से कहीं बेहतर समझने लगे हैं | सही भी है बहन को देने के लिए गिफ्ट पैक करे हुए आइटम्स भी बाज़ार में उपलब्ध जो हैं | जाइए अपने बजट के हिसाब से खरीदिये और गिफ्ट करिए भले ही इन रगीन कागजों के नीचे भाई बहन के प्रेम का दम घुट रहा हो |
आजकल पैकेजिंग का जमाना है ……… ठीक वैसे ही जैसे मेक अप की बनावटी परतों के नीचे असली चेहरा छिप जाता है वैसे ही इस गिफ्ट कल्चर में रिश्तों में भावनाओं की कमी छिप जाती है | आज सेलिब्रेशन का जमाना है हम बात –बात में सेलिब्रेट करते हैं , बर्थ डे ,होली ,दिवाली ,ईद ,दशहरा कोई त्यौहार इनसे छूटा नहीं है| उस पर व्यक्ति गत सेलिब्रेशन “ यार तेरी नयी गाडी , नया पर्स , बेटे का सेलेक्शन , बेटी का स्टेज पर गायन चल सेलिब्रेट करते हैं “| सेलिब्रेशन के नाम पर वही खाना –पीना मौज मस्ती रंगीन –कागजों में लिपटे गिफ्ट का लेंन –देन | पाश्चात्य सभ्यता ने जहाँ हमें जिंदादिल रहने के लिए सेलिब्रेट करना सिखाया है वही बात बात पर सेलिब्रेट करने के कारण ये सारा सेलिब्रेशन मशीनी लगने लगा है | हंसी –मजाक गिफ्ट्स का लेंन देन सब सब में मोनोटोनी (एक रूपकता ) लगने लगी है |
ये सच है कि भारत पर्वों का देश है पर हर पर्व को मनाने के तरीके , उसमें बनाये जाने वाले व्यंजन ,उसमें होने वाली पूजा भिन्न होती थी | इसलिए हर त्यौहार का सभी को साल भर इंतज़ार रहता था | अब हर त्यौहार में महिलाओ का ब्यूटी पार्लर में एक तरीके से सजना …….. सावन की हरी व् करवा चौथ की लाल चूड़ियों का मजा फीका कर देता है | हर त्यौहार में चॉकलेट ,केक महंगे गिफ्ट्स जैसे कुछ अंतर रह ही नहीं गया है | मेरा अपना मानना है कि हमारे देश में कई त्यौहार इसलिए बनाए गए कि उस रिश्ते को और उससे जुडी भावनाओं को हम सम्मान दे सके चाहे वो पति –पत्नी के प्रेम का प्रतीक करवा चौथ हो या माता और पुत्र के प्रेम का प्रतीक अहोई अष्टमी या भाई बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षा बंधन हो | ये त्यौहार रिश्तों में प्यार को बढाते हैं | इनको मनाने की अपनी सात्विक परंपरा है |
जिसका एक अलग आनंद भी है |
भाई –बहन के बीच प्यार सदा से था है और रहेगा |ये भी सच है कि जमाना बदला है और हमें नए ज़माने के साथ चलना भी होगा पर कहीं ऐसा न हो कि गिफ्ट की कीमत आंकलन , बाज़ार की मिठाइयाँ , शानोशौकत का दिखावा प्रेम भरे रिश्तों पर भारी न पड जाए | बाज़ार की चमक को घर लाते समय हमें यह ध्यान रखना होगा कि यह हमारे रिश्तों की चमक को फीका न कर दे |

वंदना बाजपेयी

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