रविवार, 22 मार्च 2015

बच्चों का कानून


                                              


सरला जी ने दरवाजा खोला ... ये क्या .... उनका ४ वर्षीय बेटा चिंटू आँखों में आंसू लिए खड़ा है ।
क्या हुआ बेटा ... सरला जी ने अधीरता से पूंछा ।
मम्मी आज मैं ड्राइंग की कॉपी नहीं ले गया था, इसलिए मैम ने चांटा मार दिया । सरला जी का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया । गुस्से में बोलीं ... ये कैसी अध्यापिका है , औरत होकर भी ममता नहीं है |छोटे बच्चों को कहीं मारा जाता है ? क्या उसे बच्चों के कानून के बारे में पता नहीं है चलो मेरे साथ मैं आज ही उस को कानून बताउंगी ।
तमतमाती हुई सरला जी चिंटू को साथ ले स्कूल पहुंची ।
प्रधानाध्यापक के पास जाकर शिकायत की और उन्हें बच्चों के कानून का वास्ता दिया ।
प्रधानाध्यापक ने तुरंत अध्यापिका को बुलाकर ताकीद दी कि छोटे बच्चों को बिलकुल न मारा जाये ये कानून है ।
ख़ुशी ख़ुशी चिंटू अपनी मम्मी के साथ घर आ गया । खेलते खेलते उसने श्रृंगार दान की दराज खोल ली । रंग बिरंगी लिपस्टिक देखकर उसका मन खुश हो गया । कुछ दीवार पर पोत दी कुछ मुंह पर लगा ली और कुछ सहज भाव से तोड़ दी । सरला जी वहां आयीं और ये नज़ारा देखकर उन्होंने आव देखा न ताव ... चट चट ३-४ तमाचे चिंटू के गाल पर जमा दिए और कोने में खड़े होने की सजा दे दी ।
कोने में चिंटू खड़ा सोंच रहा है .....
क्या घर में छोटे बच्चों को मारने से रोकने के लिए कोई कानून नहीं है ?
वंदना बाजपेई 

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