बुधवार, 3 दिसंबर 2014

भुलक्कड़पण



                           पहले मैं अक्सर रास्ते भूल जाया करती थी,क्योंकि अकेले ज्यादा इधर -उधर जाने की आदत थी नहीं स्कूल -कॉलेज और घर ………
बात तब की है जब पति के साथ कानपुर(मायके ) गयी थी ,हमारी बेटी 6 महीने की थी ,किसी ने बताया की वहाँ एक बहुत अच्छे वैध है ,मैंने बेटी की खांसी के लिए उन्हें दिखाने के लिए पति से कहा ,एक दो दिन बीत गए पति परमेश्वर ने हमारी बात पर कोई तवज्जो ही नहीं दी। अपनी ही रियाया में हुक्म की ऐसे नाफरमानी हमें सख्त नागवार गुजरी। हमने ऎलान कर दिया "आप अपनी दिल्ली की सल्तनत संभालिये यहाँ हमारे बहुत सारे भाई है कोई भी हमारे साथ चल देगा,मौके की नजाकत देखते हुए पति देव ने हमें सारा रास्ता समझा दिया। हमें बस इतना समझ में आया कि बड़े चौराहे से नाक की सीध में चलते हुए एक "साइन -बोर्ड "मिलेगा वहाँ से दायें ,बायें दायें ……कितना आसान ....

वरीयता क्रम के हिसाब से हमने छोटे भाई को चुना। … यात्रा प्रारम्भ हुई ,उस समय हमें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था की किसी साजिश के तहत कानपुर के जिला धिकारी ने रातों -रात वो "साइन -बोर्ड "हटवा दिया है। …हम आगे -आगे -और आगे बढ़ते गए,बीच -बीच में भाई पूछता जा रहा था "दीदी तुम्हारी नाक कितनी सीधी है ?हम उन्नाव से आगे निकल गए .... थोडा और बढ़ते तो सीधे लखनऊ ,
हालाँकि लखनऊ में हमारे बहुत रिश्तेदार रहते है ,पर अगर किसी शहर में आपके १० रिश्तेदार हो और समयाभाव के कारण आप २ से न मिल पाये। … तो धारा 302 के तहत प्रश्नों के फंदे पर तब तक लटकाया जायेगा जब तक जब तक सॉरी बोलते -बोलते जुबान दो इंच लम्बी न हो जाये ,लिहाजा हमने हथियार डालते हुए आँखों में आँसू भर कर कहा "भैया मैं भूल गयी "
चीईईईईईईईईईईईईईई कि आवाज के साथ भाई ने गाड़ी रोक कर कहा "दीदी तुम्हारे चरण कहाँ है ,मैं इसी वाक्य की प्रतीक्षा कर रहा था,दरसल जीजाजी ने हमें रास्ता समझाते हुए ,यह ताकीद कर दी थी कि "बेगम साहिबा को यह एहसास दिल दिया जाये ,कि वो रास्ते भूल जाती है "
ओह्ह्हह्ह्ह्ह ! हमारा आपना भाई विरोधी खेमे में मिल चुका था और अपनी ही सरजमी पर विदेशी राजा के हांथों हमारी शिकस्त हो गयी थी ,पर उस दिन से हमें समझ आया कि जो करना है हमें अपने दम पर करना है क्यूकि पति या भाई हम अबला नारियों का कोई अपना नहीं होता …

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