रविवार, 13 दिसंबर 2015

लघु कथा -हमदर्द

पंडित दीनानाथजी वृद्ध हैं । कानो से सुनाई नहीं देता है ,बी .पी .है ,शुगर है पर सबसे ज्यादा परेशान उन्हें गठिया ने कर रक्खा है .

ठीक से चला भी नहीं जाता है। घर में बहू है बच्चे  हैं।
श्रीमतीजी का स्वर्गवास हुए एक साल हो गया है।

पंडितजी बहुत ऊबते हैं। वैसे तो उन्हें समय पर खाना दवायें  मिल जाती हैं  पर बात करने वाला कोई नहीं है .

बच्चो को पास बुलाते हैं  तो बच्चे मुंह  बिचकाकर कहते है ...' दादाजी आप बात तो कहाँ से  शुरू करते हैं  फिर अपनी बीमारी के बारे  में बताने लगते हैं  हम बोर हो जाते है ' बच्चे भी गलत नहीं थे .

पंडितजी का ध्यान हर  समय अपनी बीमारी पर ही लगा रहता था .

आज उन्हे बहुत दर्द हो रहा था पर हिम्मत करके वो घर से बाहर निकले। सडक पर एक भिखारी बैठा था । पंडितजी ने अनमने मन से एक रुपया उसके कटोरे में डाल दिया । पर रुपया कटोरे में न गिरकर दूर गिर गया।  भिखारी रुपया उठाने के लिए उठा पर आह करके वहीं पर बैठ गया। क्या हुआ ? दीनानाथ जी ने पूछा ....

क्या बताएं बाबूजी इस गठिया ने परेशान कर रखा  है। 'अरे गठिया तो बहुत बुरी बीमारी है   मुझे भी है' दीनानाथजी बोले ।  .

अरे राम राम।  भिखारी ने  दया दिखाई जब दर्द उठता है तो ..................... 

वार्तालाप शुरू हो गया ।   दीनानाथजी को हमदर्द जो मिल गया था  | 




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें