मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

कला






तुम्हारा क्या  ... दिन भर घर में रहती हो ... कोई काम धंधा तो है नहीं ... यहाँ बक बक वहां बक बक ... आराम ही आराम है ... बस पड़े पड़े समय काटो । एक हम हैं दिन भर गधे की तरह काम करते रहते हैं ।
ये कहते हुए  श्रीनाथ जी ऑफिस के लिए निकल गए ।

अनन्या आँखों में आंसू लिए खड़ी रही । ज्यादा पढ़ी लिखी वो है नहीं ... घर के कामों के अलावा उसके पास जो भी समय होता कभी टीवी चला लेती कभी किसी को  फ़ोन मिला लेती ... आखिर समय तो काटना ही था ।

पर पति पढ़ा लिखा पुरुष है .... ऊंची पदवी , नाम , उसके पास समय का सर्वथा अभाव रहता है । जो थोडा  बहुत समय मिलता भी है वह  आने जाने वाले खा  जाते हैं ।

अनन्या के हिस्से में पति का समय तो नहीं आता पर शिकायत करने पर ताने जरूर आ जाते हैं ।


समय बदला ... अब श्रीनाथ जी रिटायर हैं । न ऑफिस का काम है ... न पदवी के कारण दिन भर घर पर लगा रहने वाला लोगों का मजमा । बच्चे दूसरे शहर में रहते हैं । माँ  से तो घंटों फ़ोन पर बात करते है पर पिता से बस हाल चाल ... क्योंकि एक तो श्रीनाथ जी को फ़ोन पर इतनी बात करने की आदत नहीं है और दूसरे समय अभाव के कारण बच्चों से इतना  घनिष्ठ रिश्ता भी नहीं बना ।

अनन्या व्यस्त है । घर के काम ... पड़ोस की औरतों के साथ सत्संग ...आदि आदि । पति के लए अब उसके पास समय नहीं है ।

निराश ... ऊबे हुए श्रीनाथ जी एकदिन अनन्या से पूछते है ' तुम कैसे इतनी आसानी से समय काट लेती हो '
अनन्य मुस्कराकर कहती है ' कोई चीज़ व्यर्थ नहीं जाती ... आपने बड़ी बड़ी डिग्री हांसिल की जो जीवन भर आपके काम आई । मैंने केवल यही डिग्री हांसिल की जो अब मेरे काम आ रही है '

समय समय की बात है ।

आखिर समय काटना भी एक कला है ।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें