जरूरत से ज्यादा व्यस्त के लिए एक शब्द आता है वर्कहोलिक मतलब काम –काम और सिर्फ काम | परन्तु देखा जाए तो यहाँ अति व्यस्त शब्द उस अवस्था को ठीक से व्यक्त नहीं कर पाता | जहाँ २४ घंटे काम के भूकम्प आते रहते हैं | और उसमें जो इमारत जर्जर हो कर ढहने की कगार पर आ जाती है वो है आप का शरीर | याद रखिये केवल हमारा शरीर ही वो घर है जिसमें हम आराम से रह सकते हैं | परन्तु काम के बोझ के चलते स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होता है | जैसा की मीना के साथ हुआ | मीना को देख कर हर कोई आहे भरता उफ़ यह कितना काम कर लेती है | शरीर है या रोबोट | मीना मुस्कुरा देती | क्योंकि उसने काम को जीवन समझा था | उसे लगता था | अगर काम रुक गया तो जीवन रुक जाएगा | जीवन में समय कम है | हर सेकंड कीमती है | हर समय कुछ करते रहना जरूरी है | मीना एक स्कूल में टीचर थी | बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती | साथ –ही साथ वो अपना व्यवसाय शुरू करने का भी प्रयास कर रही थी | उन सबसे बढ़कर उसका खुद का बेटा एक साल का था | जो उसे रात में ठीक से सोने नहीं देता था | चुटकी भर नींद और दिन रात काम भले ही औरों की नज़र में मीना को स्वस्थ सिद्ध करता हो | पर अन्दर से उसका शरीर कमजोर पड़ रहा था |
एक दिन चक्कर आने पर जब अस्पताल पहुंची तो इस ओवर बिजी शीड्यूल की पोल खुल गयी | मीना का हीमोग्लोबिन कम था , उसका ब्लड प्रेशर हाई निकला , उसे साइनस का परमानेंट सरदर्द व् कमर की कमजोर डिस्क की समस्या निकली | २७ की उम्र में अपनी स्वास्थ्य रिपोर्ट देख कर मीना घबरा गयी | तभी उसे एक और झटका लगा जब उसकी मामी की मृत्यु की खबर आई | उसकी मामी जो मात्र ४५ साल की थी | वो मीना का आदर्श थीं | वो भी मीना की तरह एक पल को भी नहीं ठहरती | दिन रात काम करती | सब उनको एक्टिव व् खूबसूरत कहते | पर उनका स्ट्रेस लेवल हमेशा बढ़ा रहता | जिसे वो मामूली सर दर्द समझ कर टालती रहीं उसी ने एक दिन स्ट्रेस झेलने से इनकार कर दिया और ब्रेन हेमरेज से उनकी मृत्यु हो गयी | यह हादसा मीना के लिए वेक अप कॉल की तरह था | अब मीना ने अपनी दिनचर्या को ठीक करने व् सवस्थ रहने का संकल्प लिया | उसने काम , काम और बस काम की धुन में जो जो नुकसान उठाया उसका आकलन किया | अगर आप भी मीना की तरह ही २४ घंटे अक्तिव रहते हैं तो जरूर यह नुकसान आप भी उठा रहे होगे |
भोजन के नाम पर फ़ास्ट फ़ूड
अति व्यस्त लोगों को खाना खाना समय की बर्बादी लगता है | शांति से बैठ कर दाल चावल सब्जी रोटी का पूर्ण आहार उन्हें समय की बर्बादी लगता है | काम करते –करते एक बर्गर उठाया या पिज़ा आर्डर किया | कुछ नहीं तो मैगी ही खा ली | पेट का क्या है भरना ही तो है | पर इस भरने के चक्कर में जो अन्दर जाता है उसे रबिश ही कह सकते हैं | ढेरों प्याले चाय दूध और मिल्क प्रोडक्ट तो छुडवा ही देते हैं | मीना तो अक्सर रसोई में खड़े –खड़े ही खाती थी | कौन समय बर्बाद करे की तर्ज पर |
व्यायाम का आभाव
स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम जरूरी हैं | चाहे वो पार्क में टहल कर करें या घर के काम कर के |हालाँकि कई डॉक्टर्स कहते हैं की घर के काम शरीर के अलग –अलग अंगों की प्रापर एक्सेरसाइज़ नहीं होते | पर अति व्यस्त के चलते जिस का समय सबसे ज्यादा कट्ता है | वो है खुद के स्वास्थ्य को दिया जाने वाला समय | जो आगे गंभीर परिणाम पैदा करता है
परिवार और दोस्तों से दूरी
जरूरत से ज्यादा व्यस्त रहने के कारण परिवार और दोस्तों से दूरी बढ़ने लगती है | मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है परिवार और दोस्त उसके जीवन का एक जरूरी हिस्सा होते हैं | जिनसे मिल कर बात कर उसे भावनात्मक संबल मिलता है | अति व्यस्तता के चलते जब आपसी संवाद शून्य हो जाता है | तब पूरी दुनिया में अकेले होने का भाव पनपता है | जो डिप्रेशन की वजह बनता है | जैसा की मीना के केस में हुआ | मीना इस अंतर को पाटने के लिए फेसबुक पर जरूर जाती ताकि कुछ संपर्क बना रहे | पर फेस बुक पर भी वो मात्र दोस्तों की पोस्ट ही पढ़ पाती | किसी तरह का संपर्क या चैट नहीं कर पाती | इसमें जो आभासी अहसास होता उससे उसे और खालीपन लगता | साथ ही समय की बर्बादी से काम का दवाब भी बढ़ता |
जीवनसाथी के साथ दूरियाँ
काम के अत्यधिक दवाब के कारण साथ में रहते हुए भी जीवनसाथी के साथ दूरियाँ उत्पन्न हो जाती हैं | इस रिश्ते को संभालना संवाद हीनता की स्तिथि में में और भी मुश्किल हो जाता है |अकेलापन एक मोड़ पर यहाँ ला के छोड़ता हैं की क्या बस कमाने के लिए ही जी रहे थे | मीना के केस में तो दोनों ही अति व्यस्त थे | जहाँ हर रात बिस्तर पर लेटने के बाद दोनों में घर के कामों को लेकर झगडे होते | दोनों दिखाते की ये काम दूसरे को करने चाहिए क्योंकि वो ज्यादा व्यस्त है | ऐसा लगता जैसा दोनों के बीच थकान का ओलम्पिक हो रहा है | कौन जीतेगा के चक्कर में दोनों हारते | और साथ में हारता उनका बेकसूर बेटा | जिसकी नन्ही गतिविधियाँ ख़ुशी का कारण नहीं समय की बर्बादी लगती |
रोना और चिल्लाना
भले ही आप इसे ड्रामा कहें पर जो लोग अतिवस्त रहते हैं | और सारे कामों को सिस्टेमेटिक ढंग से नहीं कर पाते हैं वह अपना तनाव या तो बेवजह चिल्ला कर या रो कर निकालते हैं | मीना जब बेटे के साथ रात में जागने पर विवश होती | तो खुद की नींद की कमी उसे झुन्झुलाहट में भर देती | वो बाथ् रूम में जा कर घंटों रोती | फिर आंसुओं पोंछ कर फिर अगले दिन की तैयारी करती |
कैसे बाहर निकले
इतना तो तय है की अति व्यस्त रहना आपने पारिवारिक व् सामाजिक जीवन को प्रभावित करता है | आपकी जिंदगी को भावनाविहीन मशीन बना देता है | और उन सब से ऊपर वो आप की सेहत को चुरा लेता है | तो इस्ससे बचने के लिए किया क्या जाए | क्योंकि असल में सफलता किसी रैट रेस को जीतने में नहीं है | समग्र जीवन की सफलता संतुलन बनाने में है | मीना ने जब समस्या को समझा तो उसने अपना जॉब छोड़ा | सुबह –सुबह की मैराथन कम होने से अब उसका समय नये व्यवसाय को ज़माने व् अपने बच्चे को देने में लगने लगा | यह जरूरी नहीं की हर कोई जॉब छोड़े | पर अगर कई काम एक साथ कर रहे हैं तो प्राथमिकताएं तो तय करनी पड़ेगी | और सबसे बड़ी प्राथमिकता होती है .. व्यक्ति का स्वास्थ्य | कहा भी गया है पहला सुख निरोगी काया | तो आइये जानते हैं काम करने के साथ सेहत कैसे समभले …
नींद पूरी कीजिये
कहते हैं एक अच्छी नींद अपने आप में एक पूरा इलाज़ है | वैज्ञानिक शोध कहते हैं की हमारा शरीर रात के समय कुछ ऐसे प्रोटीन बनाता है जो अल्सर के घाव को भरने के काम आते हैं | ज्यादातर अति व्यस्त लोग घर आने के बाद अपने जीवन में कुछ पल सुकून के खोजने के लिए टी वी या फेसबुक तो खोल लेते हैं पर नींद में थोड़ी और कटौती करने में कोताही नहीं करते हैं | जैसा की मीना ने किया | उसने टी वी देखने में कटौती की और ७ घंटे की नींद लेने के लिए १० बजे बिस्तर पर जाने लगी | जो एक या २ बजे जाने से बहुत जल्दी था | पर अब जब उसका बेटा रात में रोता तो वो उसे आराम से अपने पास सुला लेती | घडी देख कर सुलाने की जल्दी में दोनों के बीच में फाईट नहीं होती |
डॉक्टर की सलाह
जब आप २४ /७ व्यस्त रहते हैं | तो निश्चित तौर पर कुछ बिमारियों के लक्षण अनदेखे ही रह जाते हैं | कई बार ये लक्ष्ण वार्निंग बेल बजाकर गायब हो जाते हैं | ऐसे में व्यक्ति अपने को स्वस्थ ही समझता है | जबकि बीमारी अन्दर ही अन्दर बढ़ रही होती है | जैसा की मीना जब अपने को डॉक्टर को दिखाने गयी | तो उसने सोंचा बस दस मिनट ही लगेंगे | पर एक घंटे के चेक अप के बाद जब वो वापस लौटी तो उसके हाथ में कई पर्चे थे .. एक फिजियो को दिखाने का , ब्लड टेस्ट का , स्टीम इन्हेलर खरीदने का , अल्ट्रासाउंड का और सोराइसिस के ट्रीटमेंट के लिए स्किन के डॉक्टर से मिलने का | अपने को स्वस्थ समझने वाली मीना के होश उड़ चुके थे | पर उसने संकल्प लिया की अब वो अपनी सेहत को टॉप प्रिओरिटी पर रखेगी |अपने को सही रखने के लिए मीना ने सही इलाज़ कराया | साथ ही उसने फ़ास्ट फ़ूड और शुगर को कम किया | उसने बेतहाशा चाय की आदत को छोड़ा | एक खास काम जो उसने किया की यह समझा की जब आप रेस्ट कर रहे हो तब फेसबुक या व्हाट्स एप देखना लोग आराम का ही हिस्सा समझ लेते हैं | पर इससे वो परिवार से दूर हो जाते हैं और दिमाग को भी आराम नहीं मिलता | यानी रेस्ट मतलब … टोटल रेस्ट | दूसरी बात जिंदगी में संतुलन के लिए जरूरी है की न ओफिस को घर बनाएँ न घर को ऑफिस |
अपने को इंसान समझिये
काम , काम और सिर्फ काम करते हुए अगर आप को लगने लगा है की आप रोबोट बन गए हैं तो अपने को इंसान समझना शुरू कीजिये | इसकी सबसे पहली सीढ़ी है … माइंड फुलनेस | जो लोग जरूरत से ज्यादा काम करते हैं उनका दिमाग स्थिर नहीं रहता | जब वो एक काम कर रहे होते हैं तो दिमाग में दूसरे काम की चिंता होती है | यहाँ तक की आराम के पलों में भी कामों की चिंता होती है | माइंड फुलनेस के लिए जरूरी है पावर ऑफ़ नाउ का अभ्यास करना | यानी जहाँ हो वहीँ रहना | मीना को अपने खान –पान में परिवर्तन करने , इलाज़ करने व् पॉवर ऑफ़ नाउ का अभ्यास करने के बाद भी स्वस्थ होने में करीब एक साल लग गया | जब उसने वापस उसी हँसती –खिलखिलाती मीना को पा लिया तब उसे अहसास हुआ की पाने और पाने की होड़ में वो क्या खो रही थी |
स्वास्थ्य ही जीवन है | सब कुछ पाने की होड़ में इसकी बलि मत चढ़ाइए | स्वास्थ्य जीवन की प्रथम प्राथमिकता होना चाहिए | भावनात्मक संबल के लिए रिश्ते – नातों को समय देना भी जरूरी हैं | अगर आप भी जरूरत से ज्यादा व्यस्त हैं तो काम और आराम के बीच में संतुलन साधना सीखिए |
वंदना बाजपेयी
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