मेरे लेख का शीर्षक देख कर आपको अवश्य लग सकता है की personality developmentका लेख होते हुए भी ये नकारात्मक सा क्यों साउंड कर रहा है | दरसल इस लेख को लिखने के पीछे मेरा उद्देश्य नकारात्मक नहीं वरन अपनी क्षमताओं को पहचान कर अपने कार्य क्षेत्र में सकारात्मक पहल करने में हैं |नकारात्मकता तब होती है जब हम अपनी क्षमता से अधिक काम अपने सर पर पाल लेते हैं और असफल तो होते ही हैं साथ ही अपने ही बनाए जाल में फंस कर अवसाद में भी घिर जाते हैं | उदाहरण के तौर पर आपको एक किस्सा सुनती हूँ |
यह किस्सा बचपन में माँ सुनाया करती थी | किस्सा था उनकी दो मामियों का दो मामियों का | माँ बताती संयुक्त परिवार में रहने वाली उनकी दो मामियों में से एक मामी बहुत काम करती थी | सारे घर का काम अपने ऊपर ओढ़ लेती थी व् दूसरी केवल उतना ही काम करती जितना जरूरी था | न
तीजा यह होता की शाम होते होते पहली मामी बहुत थक जाती व् किसी से ठीक से बात नहीं कर पाती | अक्सर उनकी परिवार के सदस्यों से झड़प हो जाती | व् जरूरत से ज्यादा काम करने के कारण उनसे गलतियाँ भी होती | वहीँ दूसरी मामी कम थकी होने के कारण प्रसन्न चित्त व् म्रदुभाषी बनी रहती | सभी दूसरी की तारीफ़ करते | नतीजा पहली मामी और आहत होती | एक बार एक रिश्तेदार ने आकर समस्या की जड़ को समझा | और उन्होंने पहली मामी को समझाया तुम्हारी चिडचिड़ाहट की वजह यह है की तुमने अपने ऊपर जरूरत से ज्यादा काम ले रखा है | जो तुम संभाल नहीं पाती हो | तुम जब अपने को असफल पाती हो तो तुम्हे गुस्सा आता है व् नकारात्मकता का भाव पैदा होता है | इसलिए काम उतना ही करो जितना की संभाल सको इससे तुम काम भी गलती रहित सही तरीके से कर पाओगी व् स्वस्थ और प्रसन्न भी रहोगी |ये तो घर की बात हुई | पर कई बार दफ्तर में भी काम के बोझ की अधिकता में कर्मचारी अपने को बर्न आउट ( अक्रियाशील ) महसूस करने लगते हैं | उनको लगने लगता है की उनका दिमाग ठीक से काम नहीं कर पा रहा है | काम की अधिकता की वजह से वो फिजिकल व् इमोशनल प्रेशर को हैंडल नहीं कर पा रहे हैं | ऐसे में कर्मचारी अक्सर बॉस से बात करते हैं | लोड कम करने बात करते हैं या कम से कम प्रिओरीटीज सेट करने की बात करतें हैं | पर अगर आप स्वयं मालिक हों और आपने खुद को एक साथ कई कामों में ओवरलोडेड कर रखा हो व् कुछ भी संभाल न पा रहे हों तो आप किससे शिकायत करेंगे ?
ऐसा ही एक किस्सा गोलू का है | गोलू चार साल का छोटा बच्चा है | उसे पसंद है दिन भर शरारते करना व् चीनी खाना | उसकी माँ उसको रोज एक कटोरी में चीनी देती | एक दिन माँ दूसरे कमरे में थी और गोलू को चीनी का जार दिख गया | फिर क्या था गोलू स्टूल लगा कर चढ़ गया | और उसने जार में हाथ डाल कर पूरी मुट्ठी भर ली | मुट्ठी टाईट हो गयी | अब वो जार के ढक्कन से वापस ही नहीं निकल पा रही थी |गोलू मुट्ठी वैसे ही जमाये बैठा था | निराशा में गोलू रोने लागा | माँ दौड़ी आई व् गोलू के पास आकर बोली , “ गोलू तुम मुट्ठी खोल दो , तभी तुम्हारा हाथ बाहर निकलेगा | गोलू ने मुट्ठी खोल कर हाथ निकाला , पर ये क्या उसके हाथ में तो बिलकुल भी चीनी नहीं रह गयी | गोलू फिर रोने लगा |
एक साथ बहुत सारे काम से ध्यान बंटता है
गोलू तो खैर बच्चा है | जरूरत से ज्यादा निकालने के चक्कर में उसे बिलकुल भी चीनी नहीं मिल पायी | पर क्या हम भी अपने जीवन में ऐसा नहीं करते हैं | जब हम एक साथ ज्यादा बहुत ज्यादा के चक्कर में कुछ भी नहीं पा पाते हैं | और जीवन भर पछताते हैं | आजकल ऐसे बहुत से विद्यार्थी मेरे पास आते हैं जो एक साथ कई कोर्सेज में दाखिला ले लेते हैं | फिर किसी को भी पूरा वक्त नहीं दे पाते | अन्तत : असफल और निराश हो जाते हैं | सोचने की बात यह है की सफलता चाहे घर के अन्दर हो या बाहर , छोटी हो या बड़ी आपसे आपका १०० % मांगती है | १०० % समय , १०० % परिश्रम और १०० % फोकस | जब आप एक साथ बहुत सारी चीजे करते हैं तो आप का ध्यान बंटा हुआ होता है , समय बंटा हुआ होता है और आपका परिश्रम भी | दूसरे आपके दिमाग में जो एक क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए क्रीएटिव आइडीयाज आने चाहिए थे वो विचारों व् काम की अधिकता की स्थिति में बिलकुल शून्य हो जाते हैं | नए विचारों व् उत्साह के आभाव में सफलता संदिग्ध हो जाती है | मैं विद्यार्थियों को अक्सर समझाता हूँ की अगर आप को १० कीले किसी दीवार पर १० मिनट के अन्दर ठोंकनी है व् आप दसों एक साथ ठोंकने का प्रयास करेंगे तो एक भी नहीं ठुकेगी अलबत्ता सब दीवाल में हलकी सी अटक जायेंगी | परंतु अगर आप एक एक कर के प्रयास करेंगे तो हो सकता है अब भी १० कीलें न ठुंके , ५ , ६ , या ७ जो भी ठुकेंगी वो पूरी ठुकेंगी यही सफलता का राज़ है |
एक काम में सफल होने के बाद ही दूसरे काम में हाथ डाले
श्याम अक्सर बड़े लोगों की सफलता देख कर हैरान होता था | वो देखता कैसे बड़े आदमी एक साथ इतने सारे व्यापार संभाल लेते हैं | एक दिन उसे अपने ही एक परिचित के बारे में पता चला जो कई व्यापार करता था व् गरीबी से निकल कर आज उसकी गणना शहर के प्रतिष्ठित लोगों में होने लगी थी | बस श्याम ने आव देखा न ताव एक बैंक से लोंन ले कर एक छोटा सा व्यापर करना शुरू कर दिया | व्यापर धीरे धीरे जमने लगा | पर अभी उसका लागत मूल्य ही न निकला था की उसने दूसरा व्यवसाय भी लांच कर दिया अब दोनों में घाटा होने लागा | तब घबरा कर श्याम ने तीसरा व्यवसाय भी शुरू कर दिया की उससे इन दोनों का घटा पूरा कर दे | श्याम सुबह से शाम तक चक्करघिन्नी की तरह घूमता , अत्यधिक थकान से उसके दिमाग ने ठीक से काम करना बाद कर दिया वो रोगों से घिरने लगा व् उसके तीनों उपक्रम घाटे के साथ बंद हो गए | निराश हताश श्याम अपने परिचित के पास पहुंचा तब उसके परिचित ने बताया की तुम इतने सारे काम एक साथ कर रहे थे इस कारण कुछ भी ठीक से नहीं कर पा रहे थे | अपनी सफलता का रहस्य बताते हुए उसने कहा , “ मैंने पहले अपने एक व्यापार को पूरा ध्यान व् श्रम दे कर स्थापित किया जब मुनाफा आने लगा तब योग्य लोगों के संचालन में उसे छोड़ कर दूसरा शुरू किया | इस तरह से मेरा श्रम , धन व् फोकस एक ही दिशा में लगे | धीरे –धीरे कर के एक के बाद दो , दो के बाद तीन कारवां बढ़ता गया | यहाँ ध्यान देने की बात है | एक के बाद दो , दो के बाद तीन | एक साथ नहीं |
अपनी क्षमता का आंकलन स्वयं करें
मेरे कहने का मतलब यह नहीं है की आप एक साथ कई काम न करें | अगर आप संभाल सकते हैं तो अवश्य करें |रेयर है पर कुछ लोग एक साथ कई कामों को सँभालने की योग्यता रखते हैं | अगर आप भी उनमें से एक हैं तो अच्छी बात है अगर नहीं तो जो भी करे उतना ही करें जिसमें आप पूरी शक्ति व् फोकस लागा सकें | क्योंकि हम कोई भी काम इसलिए नहीं शुरू करते हैं की वह असफल हो | हर शुरू किये गए काम को सफल बनाना हमारा धेय्य होता है |
वंदना बाजपेयी
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