वो देखो प्राची पर
फ़ैल रहा है उजास
दूर क्षितज से
चल् पड़ा है
नव जीवन रथ
एक टुकड़ा धूप
पसर गयी है मेरे आँगन में
जल्दी –जल्दी चुनती हूँ
आशा की कुछ किरने
हंसती हूँ ठठाकर
क्योंकि अब
मेरी मुट्ठी में बंद है
मेरी शक्ति
फ़ैल रहा है उजास
दूर क्षितज से
चल् पड़ा है
नव जीवन रथ
एक टुकड़ा धूप
पसर गयी है मेरे आँगन में
जल्दी –जल्दी चुनती हूँ
आशा की कुछ किरने
हंसती हूँ ठठाकर
क्योंकि अब
मेरी मुट्ठी में बंद है
मेरी शक्ति
हर नयी चीज का आगमन मन को प्रसन्नता से भर देता है। हर निशा के बाद नव भोर को भास्कर का अपनी किरणों का रथ ले कर आना ,चिड़ियों की चहचाहट ,नए फूलों का खिलना ,घर में अतिथि का आगमन भला किसके मन को हर्षातिरेक से नहीं भर देता। आज हम समय के एक ऐसे मुहाने पर खड़े हैं , जहाँ २०१५ का नन्हा शिशु माँ के गर्भ से निकल अपने आकर -प्रकार के साथ धरती पर आने को उत्सुक है। यह एक संक्रमण काल है। ………………जहाँ २०१४ अपनी बहुत सारी खट्टी -मीठी यादें देकर जा रहा है वहीं २०१५ से बहुत सारे सपनों के पूरा होने की आशा है …………… समय अपनी गति के साथ आगे बढ़ता है। ………………… एक का अवसान ही दूसरे का उदय है। निशा का अंत ही सूर्य का आगमन है ,सूर्य के उदय के साथ ही भोर के तारे का अस्त है। मृत्यु के शोक के साथ ही नव जीवन का हर्ष है।
जय शंकर प्रसाद “कामायनी में कहते हैं। ……………
“दुःख की पिछली रजनी बीच
विकसता सुख का नवल प्रभात,
एक परदा यह झीना नील
छिपाये है जिसमें सुख गात।
ध्यान से देखा जाये तो हम जीवन पर्यंत एक संक्रमण बिंदु पर खड़े रहते हैं ,जहाँ हमारे सामने होता है एक गिलास आधा भरा हुआ ,आधा खाली। ये मुझ पर आप पर हम सब पर निर्भर है कि हम उसे किस दृष्टी से देखे। हमारे पास चयन की स्वतंत्रता है। सुकरात के सामने विष का प्याला रखा है ,शिष्य साँस रोके अंतिम प्रवचन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। ……………. सुकरात प्याले को देख कर कहते है “आई ऍम स्टिल अलाइव “मैं अभी भी जिन्दा हूँ ,सुकरात प्याला हाथ में ले कर कहते हैं “मैं अभी भी जिन्दा हूँ ,सुकरात जहर मुँह में लगाते हैं “मैं अभी भी जिन्दा हूँ ,कहकर उनकी गर्दन एक तरफ लुढ़क जाती है। …सुकरात अभी भी ज़िंदा हैं, अपने विचारों के माध्यम से ,क्योंकि उन्होंने म्रत्यु को नहीं माना जीवन को स्वीकार किया। यही अभूतपूर्व सोच उने आम लोगों से अलग करती है।
प्रसिद्ध दार्शनिक ओशो कहते हैं “मेरे पास आओ मैं तुम्हे कुछ दूंगा नहीं बल्कि जो तुम्हारे पास हैं वो ले लूंगा।” और तुम यहाँ से खाली हो कर जाओगे। यहाँ ओशों के अनुसार सद्गुरु एक चलनी की तरह हैं। जो शिष्य के समस्त नकारात्मक विचारों को निकाल देता है व् सकारात्मक विचारों को शेष रहने देता है। सर का बोझ हट्ते ही मनुष्य सफल सुखी व् प्रसन्न हो जाता है।
वास्तव में हर मनुष्य की जीवन गाथा उसके अमूर्त विचारों का मूर्त रूप है। विचार ही देवत्व प्रदान करते है विचार ही राक्षसत्व के धरातल पर गिराते हैं। अगर मोटे तौर पर वर्गीकरण किया जाये तो विचार दो प्रकार के होते हैं. ………सकारात्मक (प्रेम ,दया ,करुना ,उत्साह ,हर्ष आदि ),नकारात्मक (ईर्ष्या ,घृणा ,क्रोध ,वैमस्यता आदि )दिन भर में हमारे मष्तिष्क में आने वाले लगभग ६०,००० विचारों में जिन विचारों की प्रधानता होती है वही हमरी मूल प्रकृति होती है.सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति नकारात्मक सोच वाले व्यक्तियों की तुलना में अधिक खुश व् सफल देखे गए हैं।
भारतीय संस्कृति भी अपने मूल -मन्त्र (सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।) में सकरात्मक सोच की अवधारणा को ही पुष्ट करती है…………….. निर्विवाद सत्य है ,जो लोग सब का भला सोचते हैं उनमें ऊर्जा का स्तर ज्यादा होता है.…
विचारों का मानव जीवन पर कितना प्रभाव है ,इसका उदहारण मनसा वाचा कर्मणा के सिद्धांत पर चलने वाले हिन्दू धर्म ग्रन्थ गीता में देखने को मिलता है …जहाँ व्रत ,पूजा उपवास से लेकर अच्छे और बुरे हर कर्म को विचार या भावना के आधार पर तामसी ,राजसी या सात्विक कर्म में बांटा जाता है। श्री कृष्ण गीता में कहते हैं “हे अर्जुन मृत्यु के समय समस्त इन्द्रियाँ मन में समाहित हो जाती हैं और मन आत्मा में समाहित हो कर प्राणो के साथ निकल जाता है। ……………संभवत:ये मन विचारों से ही निर्मित है। हमारे कर्म हमारे विचारों के आधीन हैं और कर्मों के आधीन परिस्तिथियाँ हैं………….. जैसा हम जीवन भर सोचते हैं वैसा ही मन पर अंकित होता जाता है यही गुप्त भाषा (कोडेड लैंगुएज )हमारे अगले जन्म का प्रारब्ध बनती है। ……अतः न सिर्फ इस जीवन के लिए बल्कि अगले जीवन के लिए भी एक- एक विचार महत्वपूर्ण है।
वैज्ञानिक तथ्यों द्वारा अब यह सिद्ध हो गया है की विचारों में द्रव्यमान होता है ,और उनमें ऊर्जा भी होती है……(इस दिशा में शोध चल रहे है व् विज्ञान की एक शाखा इसी पर प्रयोगात्मक परिक्षण कर रही है ) ………ज्ञात सूत्रों के अनुसार सकारात्मक विचारों में धनात्मक ऊर्जा होती है व् नकारात्मक विचारों में ऋणात्मक ऊर्जा होती है। प्रकृति में जितना भी शुभ है ,अच्छा है ,,उल्लास दायक है ,सब सकारात्मक विचारों की ऊर्जा द्वारा अपनी तरफ खींचा जा सकता है। नकारात्मक विचारों में कोई शक्ति नहीं होती ,अतः वो किसी भी शुभ परिस्तिथि व् घटना को अपनी और खीच नहीं पाते। ……………. जो लोग दिन में दस बार यह कहते हैं कि मैं बहुत दुखी हूँ उनके जीवन में ऐसी परिस्तिथियाँ घटनाएं बार -बार दोहराई जाने लगती हैं परिणामतः वो और,और दुखी होते जाते हैं। अनजाने ही वो दुखो को अपनी और खीचते चले जाते हैं
हर सफल व्यक्ति पर हुए शोध पर एक साम्यता देखने को मिलती है कि भले ही वो जीवन की अलग -अलग विपरीत परिस्तिथि से जूझ रहे हो पर उन्होंने आशा और सकारात्म सोच का दामन कभी नहीं छोडा ,उनका एक ही नारा रहा “जिंदगी जिंदादिली का नाम है ,मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं। ………. इस उत्त्साह उमंग से प्राप्त ऊर्जा को सही दिशा में लगाया और सफलता के कीर्तिमान स्थापित किये।
विख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन कहते हैं ….. बार -बार पूछों” क्या समस्त ब्रह्माण्ड हमारा मित्र है”और स्वयं ही उत्तर देते है “हां !समस्त ब्रह्मांड हमारा मित्र है। ………और यहीं से खुल जाती है रहस्य की गुफा ,समस्त ब्रह्माण्डीय सकारात्मक ऊर्जा हमारी तरफ चल पड़ती है। सकारात्मक विचारों द्वारा न केवल हम अपना बल्कि समाज का और यहाँ तक पूरे विश्व का जीवन बदल सकते हैं . …. कुछ प्रयोग तो यह तक कहते हैं कि सामूहिक नकारात्मक विचार महामारी ,आकाल,दुर्घटनाओं के कारण भी बनते हैं …… वस्तुतः अब यह सिद्ध हो चुका है कि विचारों का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है साथ ही दुखद है कि हम अपने बच्चों को इतना कुछ सिखाते हैं पर विचारों को नियंत्रित करना नहीं सिखाते। अगर हम शुरू से बच्चों को विचारों की शक्ति का परिचय करा दे,और सदा सकारात्मक सोच पर बल दें तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा घर ,मौहल्ला ,देश ,विश्व ,समस्त विश्व खुशियों से न भर जाए।
भारतीय संस्कृति भी अपने मूल -मन्त्र (सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।) में सकरात्मक सोच की अवधारणा को ही पुष्ट करती है…………….. निर्विवाद सत्य है ,जो लोग सब का भला सोचते हैं उनमें ऊर्जा का स्तर ज्यादा होता है.…
विचारों का मानव जीवन पर कितना प्रभाव है ,इसका उदहारण मनसा वाचा कर्मणा के सिद्धांत पर चलने वाले हिन्दू धर्म ग्रन्थ गीता में देखने को मिलता है …जहाँ व्रत ,पूजा उपवास से लेकर अच्छे और बुरे हर कर्म को विचार या भावना के आधार पर तामसी ,राजसी या सात्विक कर्म में बांटा जाता है। श्री कृष्ण गीता में कहते हैं “हे अर्जुन मृत्यु के समय समस्त इन्द्रियाँ मन में समाहित हो जाती हैं और मन आत्मा में समाहित हो कर प्राणो के साथ निकल जाता है। ……………संभवत:ये मन विचारों से ही निर्मित है। हमारे कर्म हमारे विचारों के आधीन हैं और कर्मों के आधीन परिस्तिथियाँ हैं………….. जैसा हम जीवन भर सोचते हैं वैसा ही मन पर अंकित होता जाता है यही गुप्त भाषा (कोडेड लैंगुएज )हमारे अगले जन्म का प्रारब्ध बनती है। ……अतः न सिर्फ इस जीवन के लिए बल्कि अगले जीवन के लिए भी एक- एक विचार महत्वपूर्ण है।
वैज्ञानिक तथ्यों द्वारा अब यह सिद्ध हो गया है की विचारों में द्रव्यमान होता है ,और उनमें ऊर्जा भी होती है……(इस दिशा में शोध चल रहे है व् विज्ञान की एक शाखा इसी पर प्रयोगात्मक परिक्षण कर रही है ) ………ज्ञात सूत्रों के अनुसार सकारात्मक विचारों में धनात्मक ऊर्जा होती है व् नकारात्मक विचारों में ऋणात्मक ऊर्जा होती है। प्रकृति में जितना भी शुभ है ,अच्छा है ,,उल्लास दायक है ,सब सकारात्मक विचारों की ऊर्जा द्वारा अपनी तरफ खींचा जा सकता है। नकारात्मक विचारों में कोई शक्ति नहीं होती ,अतः वो किसी भी शुभ परिस्तिथि व् घटना को अपनी और खीच नहीं पाते। ……………. जो लोग दिन में दस बार यह कहते हैं कि मैं बहुत दुखी हूँ उनके जीवन में ऐसी परिस्तिथियाँ घटनाएं बार -बार दोहराई जाने लगती हैं परिणामतः वो और,और दुखी होते जाते हैं। अनजाने ही वो दुखो को अपनी और खीचते चले जाते हैं
हर सफल व्यक्ति पर हुए शोध पर एक साम्यता देखने को मिलती है कि भले ही वो जीवन की अलग -अलग विपरीत परिस्तिथि से जूझ रहे हो पर उन्होंने आशा और सकारात्म सोच का दामन कभी नहीं छोडा ,उनका एक ही नारा रहा “जिंदगी जिंदादिली का नाम है ,मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं। ………. इस उत्त्साह उमंग से प्राप्त ऊर्जा को सही दिशा में लगाया और सफलता के कीर्तिमान स्थापित किये।
विख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन कहते हैं ….. बार -बार पूछों” क्या समस्त ब्रह्माण्ड हमारा मित्र है”और स्वयं ही उत्तर देते है “हां !समस्त ब्रह्मांड हमारा मित्र है। ………और यहीं से खुल जाती है रहस्य की गुफा ,समस्त ब्रह्माण्डीय सकारात्मक ऊर्जा हमारी तरफ चल पड़ती है। सकारात्मक विचारों द्वारा न केवल हम अपना बल्कि समाज का और यहाँ तक पूरे विश्व का जीवन बदल सकते हैं . …. कुछ प्रयोग तो यह तक कहते हैं कि सामूहिक नकारात्मक विचार महामारी ,आकाल,दुर्घटनाओं के कारण भी बनते हैं …… वस्तुतः अब यह सिद्ध हो चुका है कि विचारों का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है साथ ही दुखद है कि हम अपने बच्चों को इतना कुछ सिखाते हैं पर विचारों को नियंत्रित करना नहीं सिखाते। अगर हम शुरू से बच्चों को विचारों की शक्ति का परिचय करा दे,और सदा सकारात्मक सोच पर बल दें तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा घर ,मौहल्ला ,देश ,विश्व ,समस्त विश्व खुशियों से न भर जाए।
नव -वर्ष का आगमन हो गया है। नव वर्ष में हम अनेक संकल्प करते हैं। कुछ अपनी गलतियों से सबक लेते हुए बुराइयों को छोड़ने का कुछ किसी नए सपने को, नए हौसलों की उड़ान के लिए अथक परिश्रम का। …………… ये सच है हर किसी के सपने अलग ,हर किसी की मंजिल अलग ,हर किसी की उड़ान अलग। …………हर किसी का आसमान अलग। …………परन्तु उसको पाने के लिए सब के पास है केवल एक ही शक्ति ,वो है सकारात्मक विचारों की शक्ति ………. जो हमें प्रेरणा देती है ,साहस देती है और लगन से कार्य ककरने की ताकत भी। …………यही वो शक्ति है जो हमारी खुली मुट्ठियों में भी बंद है। तो क्यों न हम इस शक्ति को पहचाने ,और नव -वर्ष में संकल्प करे सदा सकारात्मक सोचने का ………और हाथ बढ़ा कर पा ले अपने सपनों का आसमान
वंदना बाजपेयी
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