शनिवार, 14 मई 2016

नयी सुबह : जब दुल्हन ने लौटाई बारात

 नयी सुबह :  दुलहन ने लौटाई बारात- शराबी के संग मैं न जाऊ रे डोली  पिछवाड़े रख दो

कहने को तो आज के अखबार की तमाम बड़ी ख़बरों के बीच में दुबकी एक छोटी सी खबर थी | पर मेरी निगाह उस खबर पर अटक गयी |खबर कुछ यूँ थी …. शहर के ग्रामीण इलाके महाराजपुर के दीपपुर गांव में एक दुल्हन ने मंडप से बरात इसलिए लौटा दी क्योंकि दूल्हा उससे उम्र में बड़ा था और दूल्हे के मुंह से शराब की बू आ रही थी। इस मामले में दोनों पक्षों में हंगामा हुआ। बाद में पुलिस ने बीच बचाव कर मामला शांत कराया और दूल्हा बारात लेकर बैरंग अपने घर चला गया। पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि पालपुर गांव के लालाराम के पुत्र धीरेंद्र की बारात शुक्रवार को दीपपुर आई थी। जयमाल का कार्यक्रम शुरू हुआ और दूल्हा स्टेज पर चढ़ा तो करीब 26 साल की दुल्हन को लड़का उम्र में काफी बड़ा लगा। उसे लड़के के मुंह से शराब की बू भी आई। इस पर दुल्हन ने जयमाल फेंक दी और शादी करने से इनकार कर दिया। समझने -समझाने के लम्बे दौर के बाद दूल्हा अपनी बारात लेकर बैरंग वापस चला गया।

इस खबर को पढने के बाद मुझे याद आने लगे अपने पुराने वो दिन जब मेरी शादी नहीं हुई थी | जब कहीं किसी बड़ी बहन की शादी में जाना होता तो खूब गाना बजाना होता |मैं और मेरी हम उम्र लडकियां इस लोक गीत ” भरी दुपहरी मैं न जाऊ रे डोली पिछवाड़े रख दो ” पर झूम कर नृत्य करते | मामला था मायके से वापस ससुराल जाने का मन दुलहन का नहीं कर रहा था |एक – एक कर के सबके बुलावे आते हैं पर वो मना करती जाती है | अंत में पति का बुलावा आने पर प्रेम के वशीभूत हो कर चल पड़ती है | इसी लोकगीत को चांदनी फिल्म में श्रीदेवी के ऊपर बहुत अच्छे से फिल्माया गया है |
मामला भले ही प्रेम का और मनुहार का हो पर उस ज़माने में मुझे मात्र इतनी स्वतंत्रता दिखती थी की लड़की विवाह के बाद ससुराल जाने से इनकार कर देती है और मनौने लेंने के बाद जाती है | पर विवाह के समय अपने भावी जीवन साथी के विषय में अपनी कोई राय रख सके ये लगभग नामुमकिन था | मुझे याद आता है एक किस्सा जो मेरी एक सहेली बताया करती है | वो बताती है ,” जब हम B.A फाइनल इयर में पढ़ रहे थे | जाहिर है उस समय हम सब के घर वाले हमारे लिए भावी वर तलाश रहे थे | उसी समय मेरी एक क्लास मेट रे रोते हुए प्रवेश किया | कारण पूंछने पर फफक पड़ी ,” पापा नहीं मान रहे हैं ” | बाद में विस्तार से बताने के बाद मालूम हुआ उसकी जहाँ शादी की बात चल थी | वो लोग उसे कल देखने आये थे | अपनी शिक्षा , बातचीत के लहजे की वजह से उसे भावी पति पसंद नहीं आया | दबी जुबान से कहने पर पिता ने उसकी बात सुनने से इनकार कर दिया | वो उस ज़माने का चलन था | पर अपनी राय रख पाने के कारण हम लोगों के बीच में वो एक अलहदा मुखर व्यक्तित्व की लड़की सिद्ध हो गयी | शायद भेंड बकरियों की तरह हांकी जाने वाली लड़कियों को यह पता ही नहीं था की जो रिश्ते नापसंदगी से शुरू होते हैं उनका निभाना कितना कठिन होता है | अपनी ही शादी में लड़की की पसंद , नापसंद कोई मायने नहीं रखती थी | माता -पिता जो भी वर उसके लिए चुन दें उसे बस निभाना होता था | बदलते समाज के साथ तमाम छोटे बड़े शहरों में न सिर्फ लड़की की राय पूछी जाती है अपितु भावी वर -वधु को आपस में बात करने का पूरा मौका दिया जाता है | परन्तु गाँवों में अभी भी लड़की ” दान की बछिया ही है ” जिसे बस ब्याह देना है |
लड़के वालों का मंडप से रूठना और लड़की के पिता का अपनी पगड़ी उतार कर उनके पैरों तले रख देना पुरानी फिल्मों के भावुक दृश्य हुआ करते थे | सच्चाई भी यही थी , बारात दरवाजे से लौट जाना एक कलक था | जिसको लड़की और उसका परिवार उम्र भर ढोता था | परन्तु अब जिस तरह से लडकियाँ मुखर हुई है | उनका स्वतंत्र व्यक्तित्व विकसित हुआ है | उनमें अपने फैसले लेने की और अपनी जिंदगी खुद अपनी शर्तों पर जीने की क्षमता आई है | यह स्वतंत्रता , समता और समानता पर आधारित एक स्वस्थ समाज का प्रतीक है | सबसे पहले गाज़ियाबाद की निशा ने दहेज लोलुप बरात को दरवाजे से बाहर लौटाया था | वह पहला वाक्य था | इसलिए मीडिया पर छाया था | पर वो नज़ीर बना | वहीँ से शुरुआत हुई थी |तमन लडकियां निशा बन्ने लगीं | वो पहल थी पर उससे लड़कियों में हिम्मत आई | यह सच है की आज विवाह तय करते पूर्व गाँवों में भी लड़के -लडकी का आपस में चेहरा देख लेना या परिवार के बीच में हलकी -फुलकी बात कर लेना मान्य हो गया है |पर कई बार विवाह तय होते समय कुछ खामिया नज़र नहीं आती जो बरात के समय दिखाई दे जाती हैं | ऐसे में लड़की क्या करे …….. क्या स्वीकार कर ले , या प्रतिकार करे |
जिस तरह से गाँव की लड़की ने भावी पति के शराबी होने के कारण बारात लौटाई है | उससे सिद्ध होता है की स्त्री के शक्ति और स्वतंत्र व्यक्तित्व की बयार गाँव तक पहुँच गयी | न केवल वो अपनी शर्तों पर जीना चाहती है बल्कि उसके लिए कड़े फैसले लेने का माद्दा भी रखती है | अब उसने निर्णय ले लिया है की विवाह सिर्फ करने के लिए कर लिया , निभाने के लिए निभा लिया और काटने के लिए जीवन काट लिया के लिए नहीं … यह एक शुरुआत है जहाँ दो व्यक्ति एक दूसरे का हाथ पकड़ कर परस्पर सम्मान और प्रेम के साथ नए भविष्य की और बढ़ते हैं |ये रिश्ता प्रेम पर बुना होना चाहिए न की समझौते पर | जहाँ एक दूसरे को स्वीकार करने में दोनों की राय महत्वपूर्ण है |
ये नयी सुबह है ….और निश्चित रूप से सुखदायी है

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