शनिवार, 14 मई 2016

लप्रेक - कॉफ़ी

अरे ! तुम लखनऊ में रहती हो ? एक अप्रत्याशित सा प्रश्न सुन कर सब्जी खरीदते हुए नीला के हाथ थम गए | मुड कर देखा , चश्मा ठीक करते हुए अजनबी को पहचानने की कोशिश करते हुए नीता की आँखों में चमक आ गयी | मुस्कुराते हुए बोली , सुरेश तुम , इतने वर्षों बाद अचानक यहाँ ? हां , बेटी के लिए लड़का देखने आया था | यहीं लखनऊ में, २१ की हो गयी है , बेटा आर्मी में हैं | इस समय गोवा में पोस्टिंग हैं | उसकी माँ कहती है बेटी की शादी हो जाए फिर हम भी गोवा में रहेंगे |बेटे के साथ | अकेले उसे अच्छा नहीं लगता | पर मेरी तो नौकरी है , उसे कैसे छोड़ दूँ | ये औरतें भी न पुत्र मोह में | और तुम ,क्या करती हो , कितने बच्चे हैं , घर कहाँ हैं , तुम्हारे पति ? एक सांस में सुरेश इतना सब कुछ बोल गया | नीता मुस्कुराते हुए बोली , उफ़ ! पहले की तरह नॉन स्टॉप … फिर थोडा रुक कर धीरे से बोली , मैं टीचर हूँ और मैंने शादी नहीं करी सुरेश |

शादी नहीं करी क्यों ? सुरेश ने आश्चर्य से पूंछा ? फिर खुद ही हँसते हुए बोला , “ ये तुम्हारा ही फैसला होगा | अब भी उतनी ही शर्मीली हो क्या ? तब तो रिकॉर्ड शर्मीली हुआ करती थी तुम | मैं दीवानों की तरह तुम्हारे पीछे –पीछे घूमता , नीता –नीता रटते –रटते , पर तुम आँख बचा कर निकल जाती न कभी हां कहती न ना | दो ही चीजे दिमाग पर भूत की तरह सवार रहती उनदिनों , एक तुम , एक काफी | तुम्हे याद करते –करते बीसियों कप गटक जाता एक दिन में | कभी तुम्हारे साथ कॉफ़ी पीने की इक्षा करती तो तुम कहती की तुम्हे काफी से चिढ है , तुम इसे जिंदगी में कभी हाथ नहीं लगाओगी | पर जाने क्यों जब भी मैं कॉलेज में कहीं घूम रहा होता तो तुम्हारी नज़रे मेरे ओझल हो जाने तक मेरा पीछा करती | क्या राज था , अब तो बताओ ?एक झटके में फिर बहुत कुछ कह गया सुरेश | कुछ भी तो नहीं , नीता ने सब्जी थैले में रखते हुए लापरवाही से कहा | दोनों साथ –साथ नुक्कड़ की तरफ चल पड़े |
सुरेश कुछ उदास सा बोला , “ जानती हो नीता , उनदिनों बहुत फ्रस्टेट रहा करता था तुम्हारी हां , या ना जानने को | एक दिन अपनी कॉमन फ्रेंड राधा से अपनी परेशानी बतायी तो वो बोली , “ हो सकता है वो तुम्हे प्यार करती हो पर संस्कारी लडकियां इतनी आसानी से इसे स्वीकार नहीं कर पाती हैं , न ही वो अपने प्यार का आसानी से इज़हार कर पाती हैं | तुम्हे सिमटम देखने चाहिए | और मैं बहुत दिनों तक किसी सिमटम को खोजता रहा | एक दिन कैंटीन में कॉफ़ी पीते हुए , राधा पर बिफर उठा , कैसे पता चले उसके मन की बात , बहुत सिमटम सिमटम करती हो , कोई तो सिमटम बताओ ? राधा बोली , जैसे जब नीता काफी पीने लगे तब समझ लेना | ये कभी नहीं होगा , वो कभी भी कॉफ़ी नहीं पीयेगी , और अब मैं भी कभी कॉफ़ी नहीं पियूँगा | फिर गुस्से में मैंने भी कॉफ़ी का कप कैंटीन की फर्श पर पटक दिया | कप टुकड़े –टुकड़े हो गया | उसमें बची हुई कॉफ़ी दूर तक छिटक गयी ……… थोड़ा रुक कर सुरेश बोला , “ मैं एक हारा हुआ व्यक्ति था , माता –पिता के कहने पर नेहा से शादी की , उसने मुझे संभाला , जिंदगी में बहुत सारी खुशियाँ आई , नहीं आई तो सिर्फ कॉफ़ी | लो नुक्कड़ आ गया चलो यहाँ चाय पीते हैं | सुरेश ने नीता की तरफ देख कर कहा |
नहीं सुरेश ,चाय नहीं मैं अब सिर्फ कॉफ़ी पीती हूँ नीता ने सुरेश की और देख कर कहा | आँखों के टकराने के साथ ही कुछ पल के लिए गहरे मौन में जैसे सृष्टि थम गयी | तुम्हे शायद उधर जाना है और मुझे इधर , कहते हुए नीता दूसरी दिशा चल दी … और अनबहे आंसुओं से दोनों भीगते रहे |


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