सोमवार, 9 जनवरी 2017

घर वापस आना सदा घर वापस आना नहीं होता







रोटी की तलाश में घर से दूर गए लोग
हर रोज देते हैं दिलासा खुद को
बस कुछ समय और
कि एक दिन लौट जायेंगे घर की ओर
गाते हुए राग मल्हार
जैसे लौट आते है पखेरू
अपने घोंसलों में मीलों उड़ने के बाद

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पर घर वापस आना
सदा घर वापस आना नहीं होता………..
कभी-कभी समय की चाक पर पक कर
रिश्ते ले चुके होते है
कोई दूसरा आकार
या उम्र के साथ हो जाता है दृष्टि भ्रम
दूर से जो नज़र आते थे पास
अब पास से नज़र आते हैं दूर
कभी- कभी टूट चुका होता है
खुद काही कोई कोना
चटके दरके कई टुकड़ों में
कहाँ आ पाते हैं साबुत
..
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या कभी -कभी जिनकी तलाश में
आते हैं लौटकर
ढूढ़ते हैं जिन्हें बदहवास
वो लोरियां छुप गयी होती हैं
फ्रेम में जड़ी तस्वीर पर चढ़ी माला में
या दिन -रात खटकती हुई लाठी
मात्र रह जाती है टंग कर अलगनी पर
अनछुई सी
जब भी घर से बाहर निकलों
येसोच लेना
कि घर वापस आना
सदा घर वापास आना नही होता………..

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