सोमवार, 9 जनवरी 2017

दीपावली की सफाई के दौरान अक्सर






दीपावली की सफाई के दौरान अक्सर
निकल आती है कई पुरानी यादें
कुछ तोडती हुई , कुछ जोडती हुई
कुछ पुराने संदूक में दफनाई हुई
कुछ चद्दरों की तहाई हुई
कुछ पुरानी डायरी के पीले होते हुए पन्नों में
किसी सूखे गुलाब की तरह
कुछ जो शायद उग नहीं पायी थी पूरी तरह तब
यूँ ही फेंक दी गयी थी अधबनी
बिखर गए थे जिनके बीज
अलमारी के कोनों पर
न जाने कब कमरे में फैली भावनाओं की आद्रता से
निकल आये नन्हें अंकुर
जो दर्ज करना चाहते हैं अपनी उपस्तिथि
जिनका इस तरह पूर्ण होना
करता है उनकी अपूर्णता का

गहरा अहसास
दीपावली की सफाई के दौरान अक्सर
चुभ जाता है कोई काँटा तीखा सा
कभी छन्न से हो जाता है मन
जैसे गर्म तवे पर
डाल दिए हो पानी के छींटे
कभी फिर से महका देती है मन को
किसी पुराने रुमाल में लगायी इत्र की सुवास
कभी खिल जाती है अधरों पर मुस्कान
और आ जाती है आँखों में चमक
जब कुछ रूहानी , रूमानी सा चलचित्र
चल पड़ता हैं
बंद आँखों के सामने
दीपावली की सफाई के दौरान अक्सर
होता है यह अहसास
की यादें कभी दफनाई नहीं जा सकती
की यादें कभी छुपायी नहीं जा सकती
की अधूरी छोड़ी हुई यादें भी
समय के साथ हो जाती हैं पूरी
की जरूरी है यादों के खेल को समझना
उनका उलटना – पुलटना
धूप दिखाना हवा , लगाना
जरूरी है खुद को जिन्दा रखने के लिए
यादों को जिन्दा रखना
दीपावली की सफाई के दौरान अक्सर
यादों से छेड़खानी सिखा जाती है जीवन का मूल मंत्र
की हर अच्छी याद देती है एक संबल
बनती है भरोसा
आगे के जीवन में समस्याओं से
से टकराने का
की हर दर्द भरी याद
छेड़ देती है दिल के तानपूरे पर विरह राग
जिसका आरोह – अवरोह कहता है बार – बार
की हमने समय को समय रहते नहीं पहचाना
दीपावली की सफाई के दौरान अक्सर
जलता है एक नन्हा सा दिया
मन की अमावस पर
और हम उसके प्रकाश में
कुछ जलते , कुछ तपते
चल पड़ते हैं
आगे के सफ़र पर ……….

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