कहते हैं जहाँ प्यार है वहां तकरार
भी है | दोनों का चोली –दामन का साथ है | ऐसे में कोई अपना खफा हो जाए तो मन का अशांत हो जाना स्वाभाविक ही है | वैसे तो
रिश्तों में कई बार यह रूठना मनाना चलता रहता है | परन्तु कई बार आप का रिश्तेदार
थोड़ी टेढ़ी खीर होता है | यहाँ “ रूठा है
तो मना लेंगे “ कह कर आसानी से काम नहीं
चलता |वो ज्यादा भावुक हो या उसे गुस्सा
ज्यादा आता है , जरा सी बात करते ही आरोप –प्रत्यारोप का लम्बा दौर चलता हो ,
जल्दी मानता ही नहीं हो तो फिर आप को उसको मनाने में पसीने तो जरूर छूट जाते होंगे
| पर अगर रिश्ता कीमती है और आप उसे जरूर मानना चाहेंगे | पर सवाल खड़ा होता होगा
ऐसे रिश्तेदार को मनाये तो मनाये कैसे | ऐसा
ही किस्सा रेशमा जी के साथ हुआ
|
हुआ यूँ की एक दिन हम
सब शाम को रोज की तरह पार्क में बैठे
मोहल्ले की बुजुर्ग महिला मिश्रा चाची जी से जीवन की समस्याओं और उनके समाधान की
चर्चा कर रहे थे | तभी रेशमा जी मुँह लटकाए हुए आई | अरे क्या हुआ ? हम सब के
मुँह से अचानक ही निकल गया | आँखों में आँसू भर कर बोली क्या बताऊँ ,” मेरी रिश्ते
की ननद है ,मेरी सहेली जैसी जब तब बुलाती
हैं मैं हर काम छोड़ कर जाती हूँ |वह भी मेरे साथ उतनी ही आत्मीयता का व्यवहार करती है |
अभी पिछले दिनों की बात है उन्होंने फोन पर Sms किया मैं पढ़ नहीं पायी | बाद में पढ़ा तो घर के
कामों में व्यस्त होने के कारण जवाब नहीं दिया | सोचा बाद में दे दूँगी | परन्तु तभी उनका फोन आ गया | और लगी जली कटी सुनाने , तुम
ने जवाब नहीं दिया , तुम्हे फीलिंग्स की
कद्र नहीं है , तुम रिश्ता नहीं चलाना चाहती हो | मैं अपनी बात समझाऊं तो और हावी
हो जाए |आरोप –प्रत्यारोप का लम्बा दौर चला |
यह बात मैं अभी बता रही हूँ पर अब यह रोज का सिलसिला है | ऐसे कब तक चलेगा
? बस मन दुखी है | इतनी पुरानी दोस्ती जरा
से एस एम एसऔर बेफालतू के आरोप –प्रत्यारोप
की वजह से टूट जायेगी | क्या करूँ ?
हम सब अपने अपने तर्क देने
लगे | तभी मिश्रा चाची मुस्कुरा कर बोली ,” दुखी न हो जो हुआ सो हुआ ,ऐसे कोई
नाराज़ हो ,गुस्सा दिखाए, आरोप –प्रत्यारोप
का एक लम्बा दौर चले तो मन उचाट होना स्वाभाविक है | पर कई बार रश्ते हमारे लिए
कीमती होते हैं हम उन्हें बचाना भी चाहते हैं | पर आरोप -प्रत्यारोप के दौर की वजह
से बातचीत नहीं करने का या कम करने का फैसला भी कर लेते हैं | ज्यादातर किस्सों
में होता यह है की इन बेवजह के विवादों
में ऐसी बातें निकल कर सामने आती हैं जिसकी वजह से उस रिश्ते को आगे चलाना मुश्किल
हो जाता है | जरूरत है इन अनावश्यक
विवादों से बचा जाए | और यह इतना मुश्किल भी नहीं है | बस थोड़ी सी समझदारी दिखानी
हैं | हम सब भी चुप हो कर चाची की बात
सुनने लगे | आखिर उन्हें अनुभव हमसे ज्यादा जो था | जो हमने जाना वो हमारे लिए तो
बहुत अच्छा था | अब मिश्रा चाची द्वारा
दिए गए सूत्र आप भी सीख ही लीजिये | चाची ने कहना शुरू किया ,” ज्यादातर वो लोग जो
झगडा करते हैं उनके अन्दर किसी चीज का
आभाव या असुरक्षा होती है| बेहतर है की
उनसे तर्क –वितर्क न किया जाए | पर अगर अगला पक्ष करना ही चाहे तो बस कुछ बातें
ध्यान में रखें ...........
उनकी बात का समर्थन करों
सुनने में अजीब जरूर
लग रहा होगा | अरे कोई हम पर ब्लेम लगा रहा है और हम हां में हां मिलाये | पर यही
सही उपाय है | अगर दूसरा व्यक्ति भावुक व् गुस्सैल है तो जब वो ब्लेम करें तो झगडे
को टालने का सबसे बेहतर और आसान उपाय है आप उसकी बात से सहमति रखते हुए उनके द्वारा लगाये हुए कुछ आरोपों को सही
बताएं | पर ध्यान रखिये अपनी ही बात से अटैच न हों | जब आप अगले से सहमती दिखाएँगे
तो उसके पास झगडा करने को कुछ रह ही नहीं जाएगा | आप उन आरोपों में से सब को सच मत
मानिए पर किसी पॉइंट को हाईलाईट कर सकते हैं की हां तुम्हारी इस बात से मैं पूरी
तरह सहमत हूँ | या आप अपनी बात इस तरह से रख सकते हैं की सॉरी मेरी इस असावधानी
पूर्वक की गयी गलती से आप को तकलीफ हुई | इससे आप कुछ हद तक आरोपों को
डाईल्युट कर पायेंगे व् उसके गुस्से का
कारण समझ पायेंगे व् परिस्तिथि का पूरा ब्लेम लेने से भी बच जायेंगे |
बार –बार दोहराइए बस एक शब्द
सबसे पहले तो इस वैज्ञानिक तथ्य को
जान लें की जब कोई व्यक्ति भावुक निराशा या क्रोध में होता है तो वो एक ड्रंक (
मदिरा पिए हुए ) व्यक्ति की तरह व्यवहार करता है | ऐसे में व्यक्ति का एड्रीनेलिन
स्तर बढ़ जाता है | जिससे शरीर में कुछ क्रम बद्ध प्रतिक्रियाएं होती हैं व् कई
अन्य हार्मोन निकलने लगते हैं | इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को रासायनिक तौर पर “
एड्रीनेलिन ड्रंक “ भी कहा जाता है | क्योंकि इस स्तिथि में सामान्य व्यवहार करने
, कारण को समझने और अपने ऊपर नियंत्रण रखने की हमारी मानसिक क्षमता पूरी तरह
ध्वस्त हो चुकी होती है | ऐसे में आप उनको समझा नहीं सकते हैं | आप ने ग्राउंड हॉग
के बारे में सुना होगा | यह एक ऐसा पशु है जो सर्दियों के ख़त्म होने के बाद जब
हाइबरनेशन से बाहर निकलता है और धूप में
अपनी ही परछाई देख लेता है तो उसी शीत ऋतु
ही समझ कर वापस बिल में घुस जाता है | इस तरह से उसकी शीत ऋतु एक महीना और
लम्बी हो जाती है | यहाँ ग्राउंड हॉग का उदाहरण देने का मतलब बस इतना है की अगर आप
भावुक गुस्सैल व्यक्ति को उस समय कुछ भी समझाने की कोशिश करेंगे तो हो गयी एक
महीने की छुट्टी | क्योंकि इससे वो और खफा हो जायेंगे | अगर आप मामले को रफा –दफा
करना चाहते हैं तो एक ही शब्द बार –बार कहना काम करता हैं ... वो है सॉरी | आप बार
बार कह सकते हैं सॉरी आप को तकलीफ हुई पर मेरा आपको कष्ट देने का प्रयोजन नहीं था
| इस तरह से आप अपनी गलती भी नहीं मानेगे, (क्योंकि परिस्तिथियाँ आप के हाथ में भी
नहीं थी )और आप की हर सॉरी उनका क्रोध शांत करती जायेगी |
अपनी आवाज़ पर ध्यान दें
अगर आप सॉरी भी बोल रहे हैं और
जोर से चिल्ला कर बोल रहे हैं तो इसका उल्टा असर होगा | आपकी आवाज़ शांत और कोमल
होनी चाहिए | मामला तभी बिगड़ता है जब एक साथ दोनों लोग भावुक हो जाते हैं या दोनों
चिल्लाते हैं | अगर आप रिश्ते को बचाना
चाहते हैं तो इलज़ाम पर भावुक होने के स्थान पर चुपचाप बात सुनिए | माना की मुश्किल है पर अपनी आवाज़ की गंभीरता बनाये
रखिये | तेज आवाज़ हमेंशा रिश्तों को बिगाड़ने का काम करती है | इसलिए जरूरी है की अगले को अहसास न हो की आप चिल्ला रहे हैं यानी
गुस्सा हैं | जो भी कहना है धीमी टोन में कहे | यह आवाज़ आप दोनों के लिए ही सूदिंग
होगी |
समस्या और समाधान दोनों पर ध्यान दें
जब कोई करीबी कोई
आरोप लगा रहा है तो समस्या व् समाधान दोनों से अपने को मत जोड़े रखिये | बल्कि
समस्या सुन कर समाधान तलाशने की कोशिश करिए | जब दो लोग किसी रिश्ते में होते हैं
तो दोनों का स्वाभाव जरूरी नहीं की एक हो | दोनों की रिश्ते से अपेक्षाएं भी अलग –अलग
हो सकती हैं | कई बार दूसरे को सुनने से यह समझ आता है की दूसरे ने अपनी तरफ से
कुछ अलिखित नियम मान रखे थे | जिनका आपको पता ही नहीं था | जब वो पूरे नहीं होते तो उसे लगता है की उसका
अपमान या अनादर किया गया है | जो उसके लिए
स्वाभाविक हैं | वहीँ यह जानने के बाद आप
के पास दो विकल्प खुल जाते हैं की उन अलिखित नियमों को मान कर अब आप आगे रिश्ता
बढ़ाना चाहते हैं या अगले को स्पष्ट कर देना चाहते की आप इतने नियमों के साथ कम्फर्टेबल नहीं हैं |
अपने को संभालिये
इतना सब कुछ करने के बाद
भी कई बार आप जीत और बस जीत की स्तिथि में नहीं होते या आप दोनो जीत –हार के बीच
की किसी स्तिथि में नहीं होते | कई बार आप कितनी भी बहस कर लें परिस्तिथियाँ बदलती
नहीं हैं | ऐसे स्थिति में खुद को संभालना
बहुत जरूरी होता है | आरोपों से टूटे अपने स्वाभिमान को बचाना होता है | आपको
असहमति से सहमत होना पड़ता है और रिश्ते को
कुछ समय सांस लेने के लिए छोड़ना पड़ता है | जिसे आज की भाषा में स्पेस कहते हैं |
स्पेस का अर्थ ही है जब हम केवल अपने साथ होते हैं | जहाँ हमारा आत्म तत्व
सुरक्षित होता है तभी हम दूसरे के बारे में
भी सही फैसला ले पाते हैं | इस से एक फायदा और है की हम दूसरे को भी एक
मौका देते है रिश्ते को चलाने का | अगर दूसरे को जरूरत है तो वह भी प्रयास करेगा
रिश्ते को संवारने के | अन्यथा एक तरफ़ा रिश्तों का कोई मतलब नहीं है |
सम्मान सबसे जरूरी है
किसी रिश्ते को चलाने के
लिए सबसे जरूरी है की आप दूसरे की भावनाओं का सम्मान करे वो कहाँ आहत हुआ है इस
बात का सम्मान करें | पर यह याद रखे की दूसरे का सम्मान करना ही काफी नहीं है आप
को अपनी भावनाओं का भी सम्मान करना होगा | आप को यह भी देखना होगा की आप की
भावनाएं तो आहत नहीं हो रही हैं | ज्यादातर जो लोग हमेशा दूसरों की भावनाओं का
ध्यान रखते है व् अपनी भावनाओं को पीछे रखते हैं वह कालांतर में लो सेल्फ एस्टीम व् लो सेल्फ कांफिडेंस के
शिकार हो जाते हैं | अगर आप को लगता है है की अगले व्यक्ति का उद्देश्य सही नहीं
है ,इमोशनल मैनिपुलेशन का खतरा है तो ऐसी स्तिथि में हर्ट होने के स्थान पर केवल
अपनी गट फीलिंग पर ही भरोसा करना चाहिए |
अब रिश्ते हैं तो
तनाव –टकराव तो होगी ही | अगर आपके लिए कीमती हैं तो “ रहिमन फिर फिर पोइए टूटे
मुक्ताहार “की तर्ज़ पर फिर से पिरोना भी पड़ेगा |
हम सब को तो मिश्रा चाची की बातें
सही लगीं और सभा विसर्जित कर चल दिए अपने –अपने रूठे रिश्तेदारों को मनाने | अगर
आप के भी किसी रिश्तेदार से अनबन हो गयी है और अक्सर आरोप –प्रत्यारोप का दौर चलता है तो आप भी इन
नुस्खों को आजमा सकते हैं |
वंदना बाजपेयी
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