दीपक मिश्रा केमिस्ट्री के प्रोफ़ेसर थे |शुरू से ही पढ़ाई में अच्छे थे | बनना तो वो वैज्ञानिक चाहते थे ,जो कुछ नयी खोज कर कर सके | पर रोजी रोटी के जुगाड़ ने उन्हें G D विश्व -विद्यालय पहुंचा दिया | आपकी जानकारी के लिए बता दूं की GD का फुल फॉर्म है गुरु द्रोणाचार्य विश्व विद्यालय | विश्व विद्यालय के मुख्य द्वार पर गुरु द्रोणाचार्य व् अंगूठा काट कर देते हुए एकलव्य की बड़ी सी प्रतिमा बनी हुई है | हालांकि ये प्रतिमा पूरे साल धूप गर्मी बरसात सहती हुई पत्थर बन कर खड़ी रहती है | किसी का उस पर ध्यान ही नहीं जाता | जाए भी क्यों न तो अब गुरु द्रोणाचार्य जैसे गुरु रहे हैं न अर्जुन , एकलव्य जैसे शिष्य |अलबत्ता गुरु पूर्णिमा के दिन उसके दिन बहुरते , जब विश्व - विद्यालय की ओर से उस पर माल्यार्पण किया जाता है | रोली - अक्षत लगाया जाता | और कुछ बच्चे जो उस समय वहां उपस्तिथ होते उन्हें प्रसाद भी बांटा जाता |
गुरुवार, 3 अगस्त 2017
वो क्यों बना एकलव्य
दीपक मिश्रा केमिस्ट्री के प्रोफ़ेसर थे |शुरू से ही पढ़ाई में अच्छे थे | बनना तो वो वैज्ञानिक चाहते थे ,जो कुछ नयी खोज कर कर सके | पर रोजी रोटी के जुगाड़ ने उन्हें G D विश्व -विद्यालय पहुंचा दिया | आपकी जानकारी के लिए बता दूं की GD का फुल फॉर्म है गुरु द्रोणाचार्य विश्व विद्यालय | विश्व विद्यालय के मुख्य द्वार पर गुरु द्रोणाचार्य व् अंगूठा काट कर देते हुए एकलव्य की बड़ी सी प्रतिमा बनी हुई है | हालांकि ये प्रतिमा पूरे साल धूप गर्मी बरसात सहती हुई पत्थर बन कर खड़ी रहती है | किसी का उस पर ध्यान ही नहीं जाता | जाए भी क्यों न तो अब गुरु द्रोणाचार्य जैसे गुरु रहे हैं न अर्जुन , एकलव्य जैसे शिष्य |अलबत्ता गुरु पूर्णिमा के दिन उसके दिन बहुरते , जब विश्व - विद्यालय की ओर से उस पर माल्यार्पण किया जाता है | रोली - अक्षत लगाया जाता | और कुछ बच्चे जो उस समय वहां उपस्तिथ होते उन्हें प्रसाद भी बांटा जाता |
" ब्लू व्हेल " का अंतिम टास्क
पापा मेरे मैथ्स के सवाल हल करने में मुझे आपकी मदद चाहिए |
नहीं बेटा आज तो मैं बहुत बिजी हूँ , ऐसा करो संडे को तुम्हारे साथ बैठूँगा |
पापा , न जाने ये संडे कब आएगा | पिछले एक साल से तो आया नहीं |
बहुत फ़ालतू बाते करने लगा है | अभी इतना बड़ा नहीं हुआ है की पिता से जुबान लड़ाए | देखते नहीं दिन - रात तुम्हारे लिए ही कमाता रहता हूँ | वर्ना मुझे क्या जरूरत है नौकरी करने की |
मम्मा रोज चीज ब्रेड ले स्कूल लंच में ले जाते हुए ऊब होने लगी है ,दोस्त भी हँसी उड़ाते हैं | क्या आप मेरे लिए आज कुछ अच्छा बना देंगीं |
नहीं बेटा , तुम्हें पता है न सुबह सात बजे तक तुम्हारा लंच तैयार करना पड़ता हैं | फिर मुझे तैयार हो कर ऑफिस जाना होता है | शाम को लौटते समय घर का सामान लाना , फिर खाना बनाना | कितने काम हैं मेरी जान पर अकेली क्या क्या करु | आखिर ये नौकरी तुम्हारे लिए ही तो कर रही हूँ | ताकि तुम्हें बेहतर भविष्य दे सकूँ | कम से कम तुम सुबह के नाश्ते में तो एडजस्ट कर सकते हो |
सुपर बिजी रागिनी और विक्रम का अपने १२ वर्षीय पुत्र देवांश से ये वार्तालाप सामान्य लग सकता है | पर इस सामान्य से वार्तालाप से देवांश के मन में उपजे एकाकीपन को उसके माता - पिता नहीं समझ पा रहे थे | तो किसी और से क्या उम्मीद की जा सकती है |
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