मायके जाते हुए हर बार रास्ते भर
मेरी आँखे ढूंढती हैं
पुरानी पीढ़ी को
और घर की मुंडेर पर बैठी गौरैया को
जैसे सुनिश्चित कर लेना चाहती हों
की ‘सब ठीक है ‘
और भैया रास्ते भर बताते चलते हैं
हर घर का हाल
उस सुनी बालकनी में
जहाँ टूटा पड़ा है मिटटी का सकोरा
जसमे पानी पीने आती थी गौरैया
नहीं रही वो मिश्राइन चाची
जो कहा करती थी