रविवार, 8 जनवरी 2017

अलविदा 2016 - ऐ जाते हुए साल






ऐ जाते हुए साल
तुम्हीं ने सिखाया मुझे
की हर साल 31 दिसंबर की रात को
” happy new year ” कह देने से
हैप्पी नहीं हो जाता सब कुछ
तुम्हीं ने मुझे सिखाया
की ” आल इज वेल ” के मखमली कालीन के नीचे
छिपे होते हैं
नकारात्मकता के कांटे
जो कर देते हैं पांवों को लहुलुहान
फिर भी रिसते पैरों और टूटी आशाओं के साथ
बढ़ना होता है आगे

तुम्हीं ने मुझे सिखाया
की धुंध के बीच में आकर
चुपके से भर देते हो तुम जीवन में धुंध
की ३६५पर्वतों के बीच छुपी होती हैं खाइयाँ
जहाँ चोटियों पर फतह की मुस्कराहट के साथ
मिलते हैं खाइयों में गिरने के घाव भी
तुम्हीं ने मुझे सिखाया
की हर दिन सूरज का उगना भी नहीं होता एक सामान
कभी – कभी रातों की कालिमा होती है इतनी गहरी
की कई दिनों तक नहीं होता सूरज उगने का अहसास
जब किसी स्याह रात में लिख देते हो तुम
अब सब कुछ नहीं होगा पहले जैसा
हां ! इतना जरूर है
की तुम्हारे लगातार सिखाने समझाने से
हर गुज़ारे साल की तरह
इस साल भी
मैं हो गयी हूँ
पहले से बेहतर
पहले से मजबूत
और पहले से मौन भी
सब समझते जानते हुए भी
यह तो तय है
की इस साल भी
जब 31 दिसंबर की रात को ठीक १२ बजे
घनघना उठेगी मेरे फोन की घंटी
तो उसी तरह उत्साह से भर कर
फिर से कहूँगी
” happy new year ”
स्वागत में आगत के बिछा दूँगी
स्वप्नों के कालीन
सजा दूँगी आशाओं के गुलदस्ते
और दरवाजे पर
टांग दूँगी
उम्मीदों के बंदनवार
क्योंकि उम्मीदों का जिन्दा रहना
मेरे जिन्दा होने का सबूत है

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