आज की बड़ी ख़बरों में समाजवादी पार्टी में मची आपसी कलह की समाप्ति है । अखिलेश यादव और राम गोपाल यादव का निष्कासन वापस ले लिया गया है। जानकारी के अनुसार अखिलेश ने आज अपने समर्थकों के साथ बैठक की थी जिसमें बड़ी संख्या में विधायक और पार्टी के नेता शामिल हुए थे। इसी बीच मुलायम सिंह यादव की बैठक में बहुत कम लोग पहुंचे थे। वहीं दोनों नेताओं के अपने-अपने समर्थकों के साथ बैठक के बाद अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव से मिलने पार्टी के मुख्य कार्यालय पहुंचे थे।जहा अखिलेश यादव और राम गोपाल का निष्कासन वापस ले लिया गया ।
अब पिता – पुत्र के इस झगडे और मिलाप पर लोग तरह – तरह के कयास लगा रहे हैं | | कुछ ने पहले ही मिलन के संकेत दे दिए थे | सोशल मीडिया पर यह कल खबर बहुत वायरल हो रही थी की यह झगडा दिखावटी है | और एक बड़ा समूह अखिलेश के पक्ष में मुलायम को कोस रहा था और कुछ बेटे को बाप के नक़्शे कदम पर चलने की सलाह भी दे रहे थे | और पिता – पुत्र के इस मिलन के बाद अमर सिंह भले ही यह ट्वीट करें की राम चन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा , बेटा करेगा राज बेचारा बाप जंगल को जाएगा |”
परन्तु आखिर अखिलेश मुलायम पर भरी क्यों पड़े इन कारणों की तह में जाना पड़ेगा | इसका प्रमुख कारण है की आज जनता साफ़ सुथरी और विकास की और ले जाने वाले भारत का निर्माण करने वाले नेता के साथ है | जति और धर्म के मुद्दे पुराने पड़ गए हैं | लोग मंदिर – मस्जिद से ऊपर अपने देश को एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूपमें देखना चाहते हैं | मुलायम की पहचान एक जातिवादी नेता के रूप में रही है | उन्होंने मुसलमानों और यादवों को का समीकरण बिठा कर अपना वोट बैंक पक्का कर लिया था | और इसी वोट बैक की दम पर वो सत्ता में आते रहे |और जिस समय उन्होंने राजनीति शुरू की यह तर्क सांगत भी था | क्योंकि यादव समुदाय उस समय राजनीति में हाशिए पर था |
जब पिछली बार उनकी पार्टी सत्ता में आई तो उन्होंने अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया | हालांकि इसके लिए उन पर परिवार वाद का इलज़ाम भी लगा | पर अखिलेश विदेश में पढ़े साफ़ सुथरी छवि वाले नेता थे | जनता को उनमें सभी तबकों को साथ लेकर विकास की राह पर उत्तर प्रदेश को ले जाने का विश्वास था | राजनीति में अनादी अखिलेश सायकिल पर सवार होकर सत्ता में जरूर आये थे | पर उन्होंने विकास का रथ तेजी से दौडाने का प्रयास किया | जहाँ उन्होंने जातिवाद को दर किनार करना भी शुरू कर दिया |यह बात मुलायम के बिलकुल उलट थी जहाँ वो केवल यादवों का सशक्तिकरण करने में लागे थे |सशक्तिकरण दबंगई की हद तक था | यहाँ तक की उन्होंने अन्य ओ बी सी व् दलित जातियों पर भी ध्यान नहीं दिया |अखिलेश की सब को साथ ले विकास की शैली के कारण सपा के पुराने तबके में विरोध के स्वर उठने लगे |
अखिलेश की यही अदा मुलायम को पसंद नहीं आई | उन्होंने जिन लोगों के दम पर पार्टी कड़ी की थी वो भी उन पर दवाब बनाने लगे |दरसल अखिलेश मुलायम विवाद उनकी शैलियों का विवाद था | जो अखिलेश के मुख्यमंत्री बनते ही शुरू हो गया था | पर तब ये टकराहट दबी ढकी थी |शायद इसीलिए मुलायम ने अपनी छोटी बहू अपर्णा को राजनीति का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया था |ताकि भविष्य में उसे अखिलेश के विकल्प के रूप में पेश किया जा सके | अपर्णा की राजनीति में रूचि भी रही है | कहा तो यह भी जाता है की अपर्णा की माँ अपर्णा को एक शक्तिशाली नेता के रूप में देखना चाहती हैं | पर अपर्णा मुलायम की बहू की छाया से अलग हो अभी तक अपनी कोई स्वतंत्र पहचान नहीं बना पायी हैं |
अपर्णा का राजनीति में आगमन , अखिलेश मुलायम टकराहट के सामने आना जैसे मीडिया के लिए एक मसालेदार खबर बन गयी | सौतेली माँ साधना और सौतेले भाई प्रतीक के मुलायम पर दवाब डालने के किस्से सामने आने लगे |प्रचार होने लगा कैकेयी फिर से राम के लिए वनवास मांग रही है | इस बात से मुलायम बहुत आहत हुए , उयाहन तक की उन्हें यह कहने के लिए विवश होना पड़ा की , ” इतने वर्ष हो गए पर उनकी पत्नी के बारे में कभी किसी ने कुछ नहीं बोला |” हालांकि इसका फायदा जनता की सहानुभूति के रूप में अखिलेश को ही मिला |
आज अखिलेश की मुलायम पर जीत यह बताती है की मुलायम के युग की जाती धरम समीकरण की राजनीति का दौर अब समाप्त हो गया है | अब जनता साफ़ सुथरी छवि वाला , सबको साथ लेकर विकास की राह पर चलने वाला नेता चाहती है | बिहार में नितीश सरकार का बनना भी जातीय समीकरणों से उबी जनता की विकास की तीव्र इच्छा का संकेत हैं | अब मंडल-मंदिर युग की राजनीति का दौर खत्म हो रहा है। अब विकास और सुशासन का दौर है।इसमें भ्रष्टाचार और अपराध के लिए गुंजाइश कम है। अखिलेश के साथ यादवों व् मुस्लिमों का पढ़ा लिखा तबका भी जुड़ गया है जो सबके साथ मिलकर अपने प्रदेश का विकास देखना चाहता है | यहीं पर अखिलेश मुलायम पर भरी पड़ गए | मुलायम वक्त की नब्ज पहचानने में चूक गए | सपा वापस सत्ता में आएगी यह तो कोई नहीं जानता पर विधयाकों , पार्टी कार्यकर्ताओ और जनता का अखिलेश के पक्ष में खड़ा होना यह सिद्ध करता है की जनता मुलायम की जाती धर्म समीकरण शैली से ज्यादा अखिलेश की अखिलेश की साफ़ – सुथरी विकासोन्मुख शैली पसंद है |
वंदना बाजपेयी
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