रविवार, 8 जनवरी 2017

क्यों दिल को सकूं देता है झूठ






झूठ यह नाम सुनते ही हमें अपने जीवन के तमाम धोखेबाज , फरेबी और मक्कार चेहरे नज़र आने लगते हैं | जिन्होंने हमारे साथ छल दिया | हमारे विश्वास का गलत फायदा उठाया | झूठ शब्द सुनते ही त्योरियां चढ़ ही जातीं |पर झूठ का केवल एक ही भाव समझ कर हम खुद अपने से झूठ बोल रहे हैं , ये बात कितने लोग स्वीकार कर पाते हैं |शायद अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं |
किसी प्ले स्कूल के पास से निकल जाइए … बच्चे जोर – जोर से रट रहे होते हैं , ” सच बोलना धर्म है , झूठ बोलना पाप है |” बच्चा वैसे का वैसा ही रट लेता है | उसने जिन्दगी का पहला सबक सीखा है , जाहिर है वो बहुत खुश है | वो सत्य बोलना चाहता है वो धर्म की राह पर चलना चाहता है | वह ख़ुशी ख़ुशी माँ को बताता है और सच ही बोलना चाहता है | दूसरे कमरे से दादी निकल कर आती हैं |पोते की की ख़ुशी में शामिल हो कर पूंछती हैं ” बोलो किसको ज्यादा प्यार करते हो दादी को या नानी को “| बच्चा नानी कह देता है | उसे लगता है उसने सच बोला है | पर दादी का मुँह उतर जाता है | माँ आँख से ईशारा करती है | बच्चा दादी से लिपट कर कहता है ,” दादी को ज्यादा प्यार करता हूँ |
दादी फिर से चहक उठती हैं | ये मात्र एक उदाहरण है | इसके अतरिक्त कोई और भी उदहारण हो सकता था | पर उदाहरण का मतलब सिर्फ एक था ,” बच्चे को पहले ही दिन दूसरा पाठ याद करना था | जो पहले का ठीक विपरीत था | हम बच्चों को रटाते जरूर हैं की सच बोलो पर सच को बर्दाश्त करने की क्षमता हमारे अन्दर नहीं होती | झूठ हमारे दिल को सुकून देता है | बच्चा सीख जाता है झूठ का चमत्कारिक उपयोग और उसका प्रभाव | फिर वो झूठ बोलना शुरू कर देता है कभी माँ से , कभी पिता से कभी भाई बहन से , और सबसे बढ़कर अपने आप से | झूठ की सत्ता स्थापित होती जाती है |
वैसे दुनियावी झूठ और फरेब बहुत पीड़ा दायक है | जहाँ मुखौटे उतरते ही एक अलग विकृत रूप नज़र आता है | जो विश्वास को तार – तार कर देता है | पर आज मैं यहं झूठ के उस अच्छे रूप के बारे में बात कर रही हूँ जिसे हम अपने और अपनों के लिए बचा कर रखते हैं | जो उतना ही जरूरी है जितना की सच | झूठ के इस अच्छे पहलू को को दो भागों में बंटा जा सकता है | एक वो जो हम अपनो से बोलते हैं और दूसरा वो जो हम अपने से बोलते हैं |दोनों ही परिस्तिथि में बहुत सूकून भरा होता है यह |माँ जब बेटे से कहती है और खाले अभी बहुत सी सब्जी रखी है | फिर बेटे को खिला खुद खाली पानी पी सकूं से सो जाती है | आईने में अपने को निहारती पत्नी जब पूँछती है ,” सुनों जी क्या मैं पहले से पतली हुई हूँ और पति मुस्करा कर हां कह देता है | जब पत्नी जिद कर पति को शर्ट खरीदवा देती है और यह कहती है उसके पास माँ की दी हुई नयी साड़ी त्यौहार में पहनने के लिए रखी है | असाध्य रोग से जूझते हुए नन्हा पोता ८० साल के दादाजी के सर पर हाथ फेरते हुए कहता है की , दादाजी जब मैं इंजिनीयरिंग की डिग्री लूँगा तो सबसे पहले आप को दिखाऊंगा |ये सब अपनों से बोले गए वो झूठ हैं जो बहुत रुचिकर बहुत सुकून दायक लगते हैं | बोलने वाले और सुनने वाले दोनों को |
पर अपने से झूठ बोलना | क्या ये संभव है | संभव ही नहीं ये सबसे रुचिकर भी है | बहुत पहले एक फिल्म देखी थी ” नव रंग ” जिसमें नायिका घर की वधु , लज्जावंती है अपने पति यानी की नायक को खुल कर प्रेम नहीं कर पाती व् घर के काम काज में ही लगी रहती है | नायक अपनी कल्पना में उसकी हमशक्ल मोहिनी तैयार कर लेता है | जो नायक के साथ नृत्य करती है गीत – गाती है , रूठती मनाती है और उन्मुक्त प्रेमालाप भी करती है | हालांकि नायक जानता है की वो एक झूठ है | मोहिनी मात्र उसकी कल्पना है पर वो मोहिनी से प्रेम करने लगता है | उसका साथ उसे सुकून देता है , और उसके जीवन को रसहीन व् रंगहीन होने से बचा लेता है | कालांतर में एक ऐसी ही कहानी नीता मल्होत्रा जी की मुझे पढने को मिली | नीता जी से बात करने पर पता चला वो कहानी नहीं थी , वो सच्चाई थी और वो महिला उनके पास चिकित्सा के लिए आई थी | पाठकों के लिए यहाँ उस कहानी का लिंक दे रही हूँ …………
आह !!!- नीता मल्होत्रा 
एक हताश निराश अकेली महिला कैसे अपने चारों और झूठ का सम्राज्य स्थापित करती है | जहाँ उसको प्यार करने वाला उसकी कदर करने वाला भरा – पूरा परिवार है | ये मानसिक अवसाद का केस भले ही लगे | पर क्या हम अपने अंदर बहुत सारे झूठ केवल इस लिए नहीं पालते रहते की उनकी वजह से हमारी आशाएं जिन्दा बनी रहती है | जिजीविषा बनी रहती है |हार्ट पेशेंट तिवारी जी अपनी बेटी के लिए लड़का ढूंढ रहे हैं | हालांकि डाक्टर का कहना है की तीनों धमनियां ब्लोक हैं | बाई पास जरूरी है |पर वो देसी नुस्खों के सहारे उसे मात्र गैस की तकलीफ करार देते हुए शादी की तैयारी में जुट जाते हैं | शायद वो अपने को अपनी बिमारी के विषय में झूठी तसल्ली न देते तो शादी की तैयारी न कर पाते | यहाँ उनका झूठ उनकी सेहत में सुधार कर देता है | पर तिवारी जी अकेले उदहारण नहीं हैं |क्या इन झूठ की वजह से हमारा आज कुछ खुशनुमा लगने लगता है | यूँहीं नहीं चाचा ग़ालिब कहते हैं ” दिल को खुश रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है ” |ऐसी ही न जाने कितनी खुशफहमियां हम पाले रहते हैं , जिससे आज की धूप का सामना कर पाते हैं | ये जानते हुए की वो झूठ है | बड़ा ही तसल्ली देता है ये झूठ |
बहुत पुरानी एक कहानी है | एक राजा था उसके दरबार में एक ज्योतिषी आया उसने राजा का हाथ देख कर कहा < आप के सारे रिश्तेदार आप से पहले मर जायेंगे , आप दुनिया में अकेले रह जायेंगे | राजा कुपित हो गया | उसने ज्योतिषी को मृत्युदंड दे दिया | डरा हुआ ज्योतिषी बोला महाराज क्षमा , मैं चंद्रमा का पर्वत देखना भूल गया था | एक बार पुन : देखना चाहूँगा | राजा ने फिर से हाथ दिखाया | अबकी ज्योतिषी बोला ," भाग्यशाली हैं | आप की आयु बहुत लंबी है | आप लम्बे समय तक सिंघासन पर विराजमान रहेंगे | सुनकर राजा प्रसन्न हो गया | उसने ज्योतिषी को उपहार देकर विदा किया | ज्यतिशी की दोनों बातें एक ही थी | पर पहली सत्य को सत्य की तरह कही गयी थी और दूसरी एक आवरण में लपेट कर , जिसमें कुछ संदेह का स्थान था | कुछ मन को समझाने वाले झूठ की गुंजाइश थी | यह भी कहा जा सकता है झूठ का एक तिलिस्म होता है | भूल भुलैया वाले रास्तों से गुज़रता हुआ एक ऐसा शानदार महल जहाँ तख्ते ताउस पर सुशोभित रहता है हमारा अहंकार , हमारी खुशियाँ हमारे दिलासे , हमारी संत्व्नायें |जीने के लिए बहुत जरूरी दिल को बहुत सुकून देने वाला होता है यह झूठ | वो भले ही तसल्ली हो ,सांत्वना हो या हमारी कल्पना, परन्तु यह जरूरी है की झूठ बोलना पाप भले ही रेट पर सच्चाई यह है की झूठ का ये सहारा सच की खुरदुरी जमीन पर चलने में मदद करता है |
ये जानते हुए की सच क्या है
मैं भी सीच रहीं हूँ कुछ झूठ अपने अंदर ही अंदर
खड़े कर रही हूँ नन्हें – नन्हे पौधे
सहला रहीं हूँ स्नेह से
स्वागत में आगत के
बुन रही हूँ भविष्य के
पुष्पों की माला
ये जानते हुए भी की सह नहीं पायेंगे ये
सच की धूप
फिर भी तुम्हारी नज़रों में
ये मेरा आज जीने के लिए
भविष्य से किया एक समझौता ही सही
तो भी
पूरी तरह टूट कर बिखर जाने से पहले
थोड़ी देर खुद को
जुड़ा हुआ
महसूस करना चाहती हूँ मैं
लाख तोहमते लगाओ
लाख अंगुलियाँ उठाओ
पर मैं जानती हूँ
पाल रहे हो तुम भी अपने अंदर
कुछ ऐसे ही झूठ
और ये भी
की उस झूठ के सच का न स्वीकरना ही है
तुम्हारा सबसे बड़ा झूठ

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