हमारे
पित्रसत्तात्मक समाज में लिंग असमानता का सारा दंड सदियों से स्त्री
ढोती रही है |स्त्री उन बेड़ियों में जीती
रही जिसमें उसने स्वयं को पुरुष से हीन और पुरुष कि दासी समझ लिया था | जो कुछ भी उससे कहा गया उसे अक्षरश : मान लिया |
वही धर्म समझ लिया | ईश्वर कि शरण में जा
वह हर आदेश को परंपरा के रूप में निभाती रही | जानने वाले जानते हैं कि सभी धर्म स्त्री के
त्याग और समर्पण पर ही टिके हैं |
हालांकि आध्यात्म
कहता है कि आत्मा न पुरुष है न स्त्री |
पर धर्म के ठेकेदारों ने स्त्री के साथ कभी न्याय नहीं किया | वेद जो समस्त
मानव जाती के कल्याण के लिए बने हैं उन को पढने का अधिकार भी महिलाओं को नहीं दिया गया | महिलाएं इसे समझ नहीं
पाएंगी का तर्क क्योकर महिलाओं ने अपने गले के नीचे उतार लिया समझ से परे है
| गायत्री मन्त्र जो सभी मन्त्रों में
सर्वश्रेष्ठ मन गया है उसका उच्चारण करने का अधिकार भी महिलाओं को नहीं दिया गया |
उ
पनयन संस्कार के समय कान में गायत्री मन्त्र कह देने का क्या प्रयोजन हो सकता है
? तर्क यहाँ भी दिया गया कि गायत्री मन्त्र कि पिच इतनी ऊँची जाती है जो महिला कंठ
से संभव नहीं | इस तर्क को भी महिलाओ ने
स्वीकार कर लिया क्योकि पुरुष के विचारों पर मोहर लगाना उनका स्वाभाव बन गया था |
हालांकि सब जानते हैं कि गयात्री मन्त्र वो मंत्र है जिसका मौन उच्चारण ( जिसमें होठ भी न हिले )
सर्वाधिक लाभदायी होता है |
अनेकों मंदिरों में स्त्री के एक
वस्त्र में जाने कि परंपरा रही है | वही
केरल के मंदिर में स्त्रियों को ऊपरी वस्त्र खोलकर ही जाने कि अनुमति थी | इसके
लिए वहां कि महिलाओं ने लम्बे समय तक संघर्ष किया | अंतत : उन्हें ऊपरी वस्त्र
पहनने कि अनुमति मिली | नया विवाद शुरू हुआ
तिरुंतपुरम के प्रसिद्द शबरीमाला मंदिर के पुजारियों के विवादास्पद बयान से
| जिसमें उन्होंने मंदिर में एक ऐसी मशीन लागाने कि मांग करी जो यह सुनिश्चित कर
सके कि महिला शुद्ध है | अर्थात रजस्वला
नहीं है | इस मंदिर में १० से ५० साल तक कि महिलाओं का प्रवेश वर्जित है | हाल
में एक वाकया सिगनापुर के शनि मंदिर में हुआ जहाँ महिलाओं को शनिदेव के मंदिर पर
तेल अर्पित करने कि अनुमति नहीं है | एक स्त्री ने प्रतिमा पर तेल अर्पित कर दिया
| सी . सी टी वी में देखने के बाद मंदिर को अशुद्ध घोषित कर दिया गया | मंदिर को बंद करके उसकी
दुलाई व् शुद्धता की गयी |
ईश्वर को जनने
वाली को ईश्वर के दर्शन का अधिकार नहीं | समाज ने स्त्री कि एक शारीरिक चक्र को
अशुद्ध करार दे कर उस पर तमाम प्रतिबन्ध
लगाये | पापड़ों पर छाया पड़े तो वे लाल पड़ जाएंगे, तुलसी
मुरझा जाएगी, अचार
सड़ जाएगा और भी न जाने क्या-क्या। यह प्रतिबन्ध केवल देश में ही नहीं विदेशों
में भी रहे हैं| तभी स्त्री अपनी इस सहज प्रक्रिया को स्वीकार करने में
झेंपती रही है | देश चाहे जो होइस विषय पर
सांकेतिक भाषा का ही इस्तेमाल किया जाता है जैसे आंटी जी आ गयी , गुड़ियाँ
गुट गयी , मम्मी नाराज़ हैं आदि आदि | पर जैसे जैसे रोजी रोटी कि तलाश में संयुक्त
परिवार टूटे उनमें से कई प्रतिबन्ध स्वत : ही
डह गए | कुछ प्रतिबन्ध स्त्री के घर के बाहर काम करने के कारण समाप्त हो गए | पर ईश्वर के घर में अभी भी भेद भाव कायम है | पर यह बात स्त्रियों ने इतनी गहराई से स्वीकार
कर ली हैं कि वो स्वयं ही इसको मानती रहीं
हैं |
समाज
में स्त्री शिक्षा के साथ ही स्त्री द्वरा अपने शरीर को स्वीकार करने कि बयार चल
पड़ी है | आज कि स्त्री इस पर प्रश्न कर रही है | एक मंदिर में एक शराबी जा सकता है
, बालात्कारी जा सकता है , चोर उच्चक्का , हत्यारा जा सकता है उससे मंदिर अशुद्ध नहीं होता पर एक रजस्वला
स्त्री का प्रवेश महज इसलिए वर्जित है कि मंदिर के अशुद्ध होने का खतरा है | शबरी
माला विवाद के बाद इस विषय पर भी स्त्रियाँ मुखर हुई हैं | सोशल मीडिया पर चलने
वाले “ हैप्पी टू ब्लीड “ अभियान के अतिशय सफल होने के बाद प्रश्न उठने लगे हैं | मंदिरों में प्रवेश
से वर्जित कर के इस प्रकार स्त्री का सार्वजनिक अपमान करने के खिलाफ स्त्री एक जुट
हो रही है यह आन्दोलन स्त्री पुरुष समानता
के अधिकार कि मांग है | यह स्त्री का अपने
को लिंग के आधार पर दोयम समझने के विरुद्ध आन्दोलन है |
वंदना बाजपेयी
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