मधु आंटी को देखकर बरसों पहले की स्मृतियाँ आज ताज़ा हो गयी | बचपन में वो मुझे किसी रिश्तेदार के यहाँ फंक्शन
में मिली थी | दुबला –पतला जर्जर शरीर , पीला पड़ा चेहरा , और अन्दर धंसी आँखे कहीं न कहीं ये चुगली कर
रही थी की वह ठीक से खाती –पीती नहीं हैं | मैं तो बच्ची थी कुछ पूँछ नहीं सकती थी | पर न जाने क्यों उस दर्द को जानने की इच्छा हो रही थी | इसीलिए पास ही बैठी रही | आने –जाने वाले पूंछते ,’अब कैसी हो ? जवाब में वो मात्र मुस्कुरा देती | पर हर मुसकुराहट के साथ दर्द की एक लकीर जो
चेहरे पर उभरती वो छुपाये न छुपती | तभी खाना खाने का समय हो गया | जब मेरी रिश्तेदार उन को खाना खाने के लिए बुलाने
आई तो उन्होंने कहा उनका व्रत है | इस पर मेजबान रिश्तेदार बोली ,” कर लो चाहे जितने व्रत वो नहीं आने वाला | “ मैं चुपचाप मधु आंटी के चेहरे को देखती रही | विषाद के भावों में डूबती उतराती रही | लौटते समय माँ से पूंछा | तब माँ ने बताया मधु आंटी के पति आद्यात्मिकता के मार्ग पर चलना चाहते
थे | दुनियावी बातों में उनकी
रूचि नहीं थी | पहले झगडे –झंझट हुए | फिर वो एक दिन सन्यासी बनने के लिए घर छोड़ कर चले
गए |माँ कुछ रुक कर बोली ,” अगर सन्यासी बनना ही था तो शादी की ही क्यों ?
बचपन में मधु आंटी से
सहानुभूति के कारण मेरे मन में एक धारणा बैठ गयी| की पूजा –पाठ तो ठीक है पर आध्यात्मिकता या किसी एक का
आध्यात्मिक रुझान रिश्तों के मार्ग में बाधक है |और बड़े होते –होते ऐसे कई रिश्ते देखे जिसमें एक व्यक्ति
आध्यात्मिक मार्ग पर चला वहां रिश्तों में खटपट शुरू हो गयी | हालांकि भगवान् कृष्ण ने अपने व्यक्तित्व व्
कृतित्व के माध्यम से दोनों का सही संतुलन सिखाया है | वो योगी भी हैं और गृहस्थ भी | इन दोनों का समुचित समन्वय करने वाले राजा जनक भी
विदेहराज़ कहलाते हैं | उनके
अनुसार मैं तत्व को जानने और योगी होने के लिए संसार को त्याग कर सन्यासी होने की
आवश्यकता नहीं है | फूल अगर
खिलना है तो वो सदूर हिमालय के एकांत में भी खिलेगा और शहर के बीचों –बीच कीचड में भी | आध्यात्मिक प्रक्रिया फूल खिलने की भांति है |मैं तत्व को जानने की इच्छा रखना किसी –किसी व्यक्ति विशेष का स्वाभाव हो सकता है | उसकी इसमें गहन रूचि हो सकती हैं | जैसे हर व्यक्ति अपना एक विशेष स्वाभाव ले कर
उत्पन्न हुआ है | आध्यात्मिक रुझान के साथ
पैदा होना भी एक स्वभावगत विशेषता है | इस रुझान का व्यक्ति उस दिशा में न जाने पर बेचैनी
का अनुभव करता है |परन्तु जब –जब कोई व्यक्ति परिवार को ले कर इस मार्ग पर आगे
बढ़ा है तो परिवार में कलह उत्त्पन्न हुई है | ऐसे में प्रश्न उठाना स्वाभाविक है की क्या
आध्यात्मिकता रिश्ते निभाने के मार्ग में बाधा है ?
यह सच है की संसार में कई लोग ऐसे हुए
जिन्होंने आध्यात्मिक प्रक्रिया अपनाने के बाद अपने रिश्तों को नजरअंदाज कर दिया।
ऐसा इसलिए नहीं कि आध्यात्मिक प्रक्रिया इस तरह की मांग करती है। उन्होंने ऐसा
इसलिए किया क्योंकि वो रिश्तों की मांगों को पूरा नहीं कर
सकते थे। आध्यात्मिक मार्ग इस बात की मांग नहीं करता कि आप
अपने रिश्तों को छोड़ दीजिए लेकिन रिश्ते अक्सर ये मांग करते हैं कि आप आध्यात्मिक
राह को छोड़ दीजिए। ऐसे में लोग या तो आध्यात्मिक
मार्ग का चुनाव करते हैं, या अपने रिश्तों को बचाए रखते हैं।दुर्भाग्य से अधिकांश
लोग रिश्तों का ख्याल करके अपने आध्यात्मिक पथ का त्याग कर देते हैं। लेकिन ऐसा
कभी समय नहीं आता जब ये दोनों आपस में टकराते हों। व्यक्ति अपने भीतर जो कर रहा हैं उसका उसके किसी रिश्ते से संघर्ष नहीं होता
है। लेकिन जब कोई रिश्ता इस बात की मांग करने लगता
है कि व्यक्ति को किसी खास तरीके से ही रहना है तो वह रिश्ता
आध्यात्मिक मार्ग में बाधक बन जाता है।अक्सर देखा गया है जब कोई ध्यान करना शुरू करता है
तो शुरूआत में उसके परिवार के दूसरे सदस्य खुश होते हैं, क्योंकि उस व्यक्ति की मांगें कम हो जाती हैं, वह शांत रहने लगता है और चीजों को बेहतर तरीके से करने लगता है।
लेकिन जैसे ही व्यक्ति ध्यान की गहराई में जाता है, जब वो आंखें बंद करके आनंद के
साथ चुपचाप बैठा रहता है, तो लोगों को परेशानी होने लगती है। अगर कोई इंसान
कहीं या किसी के पीछे जाता है तो उसके जीवनसाथी को अक्सर पता होता है कि उस स्थिति
से कैसे निपटना है। लेकिन जब व्यक्ति अपने आप में खुश रहने लगते हैं तो लोग
असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। उन्हें खतरा महसूस होने लगता है। इसलिए वे कहने
लगते हैं, ‘इस घर में अब और ध्यान नहीं
चलेगा।’
अगर
आध्यात्म की राह पर चलने वाला व्यक्ति ये कहे भी कि ठीक है, तुम परेशांन हो ,मैं बस चुपचाप बैठा रहूंगा | तो निश्चित तौर पर परिवार वालों
का जवाब होता है , ‘आपको चुपचाप नहीं बैठना है, मुझसे बातें करनी है या कुछ और करना है।’ एक सरल से काम पर, जिससे किसी को नुकसान भी नहीं
पहुंचता, इतने प्रतिबंध लगाए जाने लगते हैं की हैरानी
और परेशानी होना स्वाभाविक है। दरसल आध्यात्मिक प्रक्रिया और संबंध
कभी नहीं टकराते क्योंकि वे जीवन के दो अलग-अलग क्षेत्र हैं। संबंध आपके जीवन के
बाहरी हिस्से के दायरे में आते हैं। अपनी सर्वोच्च क्षमता के साथ आपको उन्हें
निभाना है। आपकी आध्यात्मिक प्रक्रिया आपके व्यक्तिव के भीतरी भाग से ताल्लुक रखती
है। अगर आपका जीवनसाथी आध्यात्मिक हो रहा हो या आप आध्यात्मिक हो रहे हों, तो इससे आपके संबंध में टकराव उत्पन्न नहीं होना चाहिए।
होता यह है कि एक बार जब व्यक्ति आध्यात्मिक प्रक्रिया के साथ अपने अंदर किसी चीज का आनंद लेना शुरू कर देते हैं तो वह आनंद उनके जीवन का केन्द्र बन जाता है। लेकिन अधिकांश रिश्ते ऐसे होते हैं जिसमें लोग यह चाहते हैं कि वे दूसरे व्यक्ति के जीवन के केन्द्र में बने रहें। मामला रिश्तों का नहीं, असुरक्षा का है। अगर रिश्ते प्रेम पर आधारित हैं तो कोई मुद्दा नहीं रह जाता एक बार जब आप आध्यात्मिक मार्ग पर चलने लगते हैं, तो आपके रिश्ते बहुत ज्यादा परिपक्व और सुंदर बन जाते हैं। आप दूसरे लोगों से फालतू की अपेक्षाएं नहीं रखते। आप दूसरे व्यक्ति को एक जीवन के रूप में सम्मान देने लगते हैं। कुल मिला कर इतना कहना चाहूंगी अगर अहंकार का प्रश्न न बनाया जाए तो किसी एक के आध्यात्मिक होने के बाद रिश्ते बिना घर्षण के और ज्यादा सुगमता पूर्वक चलते हैं |
होता यह है कि एक बार जब व्यक्ति आध्यात्मिक प्रक्रिया के साथ अपने अंदर किसी चीज का आनंद लेना शुरू कर देते हैं तो वह आनंद उनके जीवन का केन्द्र बन जाता है। लेकिन अधिकांश रिश्ते ऐसे होते हैं जिसमें लोग यह चाहते हैं कि वे दूसरे व्यक्ति के जीवन के केन्द्र में बने रहें। मामला रिश्तों का नहीं, असुरक्षा का है। अगर रिश्ते प्रेम पर आधारित हैं तो कोई मुद्दा नहीं रह जाता एक बार जब आप आध्यात्मिक मार्ग पर चलने लगते हैं, तो आपके रिश्ते बहुत ज्यादा परिपक्व और सुंदर बन जाते हैं। आप दूसरे लोगों से फालतू की अपेक्षाएं नहीं रखते। आप दूसरे व्यक्ति को एक जीवन के रूप में सम्मान देने लगते हैं। कुल मिला कर इतना कहना चाहूंगी अगर अहंकार का प्रश्न न बनाया जाए तो किसी एक के आध्यात्मिक होने के बाद रिश्ते बिना घर्षण के और ज्यादा सुगमता पूर्वक चलते हैं |
वंदना बाजपेयी
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