कहते हैं की दिल की बात अगर
बांटी न जाए तो दिल की बीमारी बन जाती है और हम दिल की बीमारी से बहुत डरते हैं ,लम्बी -छोटी ढेर सारी
गोलिया ,इंजेक्शन
,ई सी
जी ,टी ऍम टी
और भी न जाने क्या क्या ऊपर से यमराज जी तो एकदम तैयार रहते हैं ईधर दिल जरा सा
चूका उधर प्राण लपके ,जैसे
यमराज न हुए विकेट कीपर हो गए..... तो इसलिए आज हम अपने साहित्यकार बनने
का सच सबको बना ही देंगे।ईश्वर को हाज़िर नाजिर मान कर कहते है हम जो भी
कहेंगे सच कहेंगे अब उसमें से कितना आपको सच मानना है कितन झूठ ये आप के ऊपर
निर्भर है।
बात
पिछले साल की है ,हम नए
-नए साठ साल के हुए थे ,
सठियाना तो बनता ही था। बात ये हुई कि एक दिन चार घर छोड़ के रहने
वाली मिन्नी की मम्मी आई ,उन्होंने
हमें बताया की कि इस पुस्तक मेले में उनके काव्य संग्रह ( रात रोई सुबह तक ) का
विमोचन है .... उन्होंने इतनी देर तक अपनी कवितायें सुनाई कि पूछिए
मत, ऊपर से
एक प्रति हमारे लिए एक हमारे पति के लिए ,एक बेटे के लिए ,एक बहु
के लिए उपहार स्वरुप दे गयी।इस उम्र में वो अचानक से इतनी महान बन गयी
और हम हम अभी तक करछुल ही चला रहे हैं.हमारे अहंकार की इतनी दर्दनाक हत्या
तरह से हत्या हो गयी कि खून भी नहीं निकला। हमें अपने जवानी के दिन
याद आने लगे जब हम भी कविता लिखते थे। आह !क्या कविता होती थी। क्लास के सब
सहपाठी वाह -वाह करते नहीं अघाते थे ,वो तो घर -गृहस्थी में ऐसे उलझे कि … खैर आप भी मुलायजा फरमाइए ……
"तेरी याद
में हम दो मिनट में ऐसे सूख गए
जैसे जेठ की दोपहर में कपडे सूख जाते हैं "
और
जैसे दोपहर के बाद शाम का मंजर नज़र आया
हमें तेरे मिलने के बाद जुदाई का भय सताया
अब
मोहल्ले की मीटिंगों में मिन्नी की मम्मी साहित्यकार कहलाये और हम.……… हमारे जैसी
प्रतिभाशाली नारी सिर्फ मुन्ना की मम्मी कहलाये ये बात हमें बिलकुल हज़म नहीं
हुई। हमने आनन -फानन में मुन्ना को अल्टीमेटम दे दिया "मुन्ना अगले पुस्तक
मेले में हमारी भी कविताओ की किताब आनी चाहिए।हमने जान बूझ कर मुन्ना के
बाबूजी से कुछ नहीं कहा ,क्योंकि
इस उम्र तक आते -आते पति इतने अनुभवी हो जाते हैं कि उन पर पत्नी के साम -दाम ,दंड ,भेद कुछ भी काम नहीं करते।
पर हमारे मुन्ना ने तो एक मिनट में इनकार कर दिया " माँ कहाँ इन सब चक्करों
में पड़ी हो। पर इस बार हमने भी हथियार नहीं डाले मुन्ना से कह दिया "देखो
बेटा ,अगर तुम
नहीं छपवा सकते हो तो हम खुद छपवा लेंगे ,पर हमने भी तय कर लिया है अपना काव्य संग्रह लाये बिना हम मरेंगे
नहीं।हमारी इस घोषणा को बहु ने बहुत सीरियसली लिया ( पता नहीं सास कितना जीएगी
)तुरंत मुन्ना के पास जा कर बोली देखिये ,आप चाहे मेरे जेवर बेंच दीजिये पर माँ का काव्य संग्रह अगले पुस्तक
मेले तक आना ही चाहिए।
काव्य संग्रह की तैयारी शुरू हो गयी एक प्रकाशक से बात हुई ,उसने रेट बता दिया ,बोला देखिये नए कवियों के
काव्य संग्रह ज्यादा बिकते तो नहीं हैं ,आप उतनी ही प्रति छपवाईए जितनी
बाँटनी हो। हमने घर आकर गिनना शुरू किया पहले नियर एंड डिअर फिर ,एक बिट्टू ,बिट्टू की मम्मी ,उसके पापा ,गाँव वाला ननकू , मिश्राइन चाची ,मंदिर के पंडित जी ,दूध वाला ………अरे काम वाली को कैसे भूल
सकते हैं वो भले ही पढ़ न पाए पर चार घरों में चर्चा तो जरूर करेगी …………कुल मिला कर १०० लोग हुए ,उस दिन हमें अंदाजा लगा कि
एक आम आदमी कितना आम होता है की उसे फ्री में देने के लिए भी १०० -१५० से ज्यादा
लोग नहीं मिलते। खैर वो शुभ दिन भी आया जब हमारा काव्य संग्रह (घास का दिल ) छप
कर आया। हमारा दिल ख़ुशी से हाई जम्प लगाने लगा।
हम अपने मित्रों ,रिश्तेदारों को लेकर पुस्तक मेले पहुचे। वहां पहुच
कर पता चला कि अगर कोई बड़ा साहित्यकार विमोचन करे तो हम जल्दी महान बन सकते
हैं। हमने लोगों से कुछ बड़े साहित्यकारों के नाम पूंछे ,पता लगाने पर मालूम हुआ कि
एक बड़े साहित्यकार पुस्तक मेले में आये हुए थे। बहु ने मोर्चा संभाला तुरंत उनके
पास पहुची "सर मेरी सासु माँ की अंतिम ईक्षा है आप जैसे महान व्यक्ति
के हाथो उनके संग्रह का विमोचन हो ,अगर आप कृपा करे तो मैं आपकी आभारी रहूंगी। एक खूबसूरत स्त्री का
आग्रह तो ब्रह्मा भी न ठुकराए तो वो तो बस साहित्यकार थे। तुरंत मंच पर आ गए
,एक के
बाद एक पुस्तकों का विमोचन हो रहा था ,जिनका विमोचन चल रहा था वो मंच पर थे , नीचे नन्ही सी भीड़ में कुछ वो थे जिनका कुछ समय
पहले विमोचन हुआ था ,वो
बधाईयाँ व् पुस्तके समेत रहे थे ,कुछ वो
थे जिनका अगला विमोचन था। हमारी भी पुस्तक का विमोचन। …………… लाइट ,कैमरा एक्शन ,कट की तर्ज़ पर हुआ। मिनटों
में हम अरबों की जन्संसंख्या वाले भारत वर्ष में उन लाखों लोगो में शामिल हो गए
जिनके काव्य संग्रह छप चुके है।
खुशी से हमारे पैर जमीन पर नही पड रहे थे ,अब मिन्नी की मम्मी ,चिंटू की दादी , दीपा की मौसी के सामने
हमारी कितनी शान हो जाएगी। दूसरे दिन बहु ने अपना फेस बुक प्रोफाइल खोला
"हमारी तो ख़ुशी के मारे चीख निकल गयी बहु ने हमारी विमोचन की पिक डाली
थी ,५७ लोगों
को टैग किया था। .... कुल मिला कर १५० लएक ५० कमेंट थे.………………लो भैया
अब हम भी साहित्यकार बन गए। एक बधाई तो आपकी भी बनती है
वंदना बाजपेयी
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