प्रेम वो नहीं है जो
आप कहते हैं प्रेम वह है जो आप करते हैं
इस विषय को पढना आपके लिए जितना मुश्किल है उस पर लिखना मेरे लिये उससे कहीं अधिक मुश्किल है | पर सुधा के जीवन की तास्दी ने मुझे इस विषय पर लिखने पर विवश किया |
सुधा , ३२ वर्ष की विधवा | उस के जीवन का अमृत सूख गया है | वही कमरा था , वही
बिस्तर था ,वही अधखाई दवाई की शीशियाँ , नहीं है तो सुरेश | १० दिन पहले जीवनसाथी को खो चुकी
सुधा की आँखें भले ही पथरा गयी हों | पर अचानक से वो चीख पड़ती है | इतनी जोर से की
शायद सुरेश सुन ले | लौट आये | अपनी सुधा
के आँसूं पोछने और कहने की “ चिंता क्यों करती हैं पगली | मैं हूँ न | सुधा जानती
है की ऐसा कुछ नहीं होगा | फिर भी वो सुरेश के संकेत तलाशती है , सपनों में सुरेश
को तलाशती हैं , परिवार में पैदा हुए नए बच्चों में सुरेश को तलाशती है | उसे
विश्वास है , सुरेश लौटेगा | यह विश्वास उसे जिन्दा रखता है | मृत्यु की ये गाज उस
पर १० दिन पहले नहीं गिरी थी | दो महीने
पहले यह उस दिन गिरी थी जब डॉक्टर ने सुरेश के मामूली सिरदर्द को कैंसर की आखिरी
स्टेज बताया था | और बताया था की महीने भर से ज्यादा की आयु शेष नहीं है | बिज़ली सी दौड़ गयी थी उसके
शरीर में | ऐसा कैसे ? पहली , दूसरी , तीसरी कोई स्टेज नहीं , सीधे चौथी ... ये सच नहीं हो सकता | ये झूठ है | रिपोर्ट
गलत होगी | डॉक्टर समझ नहीं पाए | मामूली बिमारी को इतना बड़ा बता दिया | अगले चार
दिन में १० डॉक्टर से कंसल्ट किया |
परिणाम वही | सुरेश तो एकदम मौन हो गए थे | आंसुओं पोंछ कर सुधा ने ही हिम्मत करी
| मंदिर के आगे दीपक जला दिया और विश्वास किया की ईश्वर रक्षा करेंगे चमत्कार होगा , अवश्य होगा |