वंदना बाजपेयी
मोदी सरकार द्वारा बड़े नोटों को बंद करने के फैसले के बाद लोग अपने घर में रखे ५०० व् हज़ार के नोटों को गिनने में लग गए | हर व्यक्ति की कोशिश यह थी की इन नोटों को एक जगह इकट्ठा करके या तो बदला जाए या बैंक में जमा किया जाए | इसी खोजबीन में घर की महिलाओ द्वारा साड़ी की तहों में , चूड़ी के डिब्बों में , रसोई की दराजों में रखे गए नोट भी घर के पुरुषों को सौंपे गए | बस घरों में उन् नोटों का मिलना था की घर के पुरुषों ने उसे मजाकिया लहजे में काला धन करार दे दिया | सोशल मीडिया पर भी हास – परिहास के किस्से आते रहे | तमाम कार्टून अपने तथाकथित रूप से घर की महिलाओं द्वारा छुपाये गए काला धन के निकल जाने पर बनाए जाते रहे | महिलाओ ने भी अपने ऊपर बने इन व्यंगों को खुल कर शेयर किया | परन्तु अगर एक स्त्री के नज़रिए से देखूँ तो इस तरह महिलाओं द्वारा आपदा प्रबंधन के लिए जमा की गयी राशि को काला धन करार देना सर्वथा गलत है |
आखिर क्यों छुपाती है महिलायें पैसे
महिलाएं , सब्जी – भाजी , रिक्शा आदि के खर्चों में कटौती कर के बड़ी म्हणत से ये पैसे बचाती हैं | जिसे वे पति से चुरा कर नहीं छुपाकर रखती हैं | वह इन पैसों
महिलाएं , सब्जी – भाजी , रिक्शा आदि के खर्चों में कटौती कर के बड़ी म्हणत से ये पैसे बचाती हैं | जिसे वे पति से चुरा कर नहीं छुपाकर रखती हैं | वह इन पैसों