बुधवार, 28 दिसंबर 2016

गौरैया और माँ










मायके जाते हुए हर बार रास्ते भर
मेरी आँखे ढूंढती हैं
पुरानी पीढ़ी को
और घर की मुंडेर पर बैठी गौरैया को
जैसे सुनिश्चित कर लेना चाहती हों
की ‘सब ठीक है ‘
और भैया रास्ते भर बताते चलते हैं
हर घर का हाल
उस सुनी बालकनी में
जहाँ टूटा पड़ा है मिटटी का सकोरा
जसमे पानी पीने आती थी गौरैया
नहीं रही वो मिश्राइन चाची
जो कहा करती थी

बुधवार, 23 नवंबर 2016

आखिर क्यों छुपाती हैं महिलाएं पैसे - महिलाओ द्वारा बचाए गए पैसे नहीं हैं काला धन






वंदना बाजपेयी
मोदी सरकार द्वारा बड़े नोटों को बंद करने के फैसले के बाद लोग अपने घर में रखे ५०० व् हज़ार के नोटों को गिनने में लग गए | हर व्यक्ति की कोशिश यह थी की इन नोटों को एक जगह इकट्ठा करके या तो बदला जाए या बैंक में जमा किया जाए | इसी खोजबीन में घर की महिलाओ द्वारा साड़ी की तहों में , चूड़ी के डिब्बों में , रसोई की दराजों में रखे गए नोट भी घर के पुरुषों को सौंपे गए | बस घरों में उन् नोटों का मिलना था की घर के पुरुषों ने उसे मजाकिया लहजे में काला धन करार दे दिया | सोशल मीडिया पर भी हास – परिहास के किस्से आते रहे | तमाम कार्टून अपने तथाकथित रूप से घर की महिलाओं द्वारा छुपाये गए काला धन के निकल जाने पर बनाए जाते रहे | महिलाओ ने भी अपने ऊपर बने इन व्यंगों को खुल कर शेयर किया | परन्तु अगर एक स्त्री के नज़रिए से देखूँ तो इस तरह महिलाओं द्वारा आपदा प्रबंधन के लिए जमा की गयी राशि को काला धन करार देना सर्वथा गलत है |
आखिर क्यों छुपाती है महिलायें पैसे 
महिलाएं , सब्जी – भाजी , रिक्शा आदि के खर्चों में कटौती कर के बड़ी म्हणत से ये पैसे बचाती हैं | जिसे वे पति से चुरा कर नहीं छुपाकर रखती हैं | वह इन पैसों

दो देश दो निर्णय - लोकतंत्र की जीत






आज का दिन बहुत अहम् दिन है | खास कर विश्व के दो लोकतान्त्रिक देशों के लिए | जी हाँ ! विश्व के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश | जहाँ अलग – अलग दो निर्णय हुए | एक जगह निर्णय जनता ने लिया और उस पर सरकार बनी | दूसरे देश में सरकार ने निर्णय लिया जिसे जनता का पूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ | दोनों ही जगह जीत लोकतंत्र की हुई | मैं बात कर रही हूँ भारत व् अमेरिका की |
एक दूसरे से बहुत दूर बसे दोनों देशों में आज बहुत उथल – पुथल का दिन रहा | आम हो ख़ास सब राजनैतिक चर्चाओं में व्यस्त रहे | चर्चा का केंद्र रहीं दो प्रमुख घटनाएं … पहली हमारे देश भारत में 500 व् 1000 के नोटों का बंद होना व् दूसरी अमेरिका में ट्रम्प की विजय | जहाँ हमारे देश में आम लोगों ने काले धन को समाप्त करने के लिए इन नोटों के बंद होने का स्वागत किया है वहीँ उन्होंने इस प्रक्रिया में होने वाली अपनी परेशानियों को सहर्ष स्वीकार किया है | ख़ुशी की बात ये है की रेहड़ी वाले , सब्जी वाले , छोटे दुकानदार जिनके यहाँ आज कोई खरीदार नहीं था वो भी सरकार के इस फैसले में उसके साथ हैं | एक सब्जी वाले से इस बाबत पूंछने पर उसने कहा , ” गरीबों का तो वैसे भी कभी न कभी फांका हो जता है | तब कौन पूंछता हैं | अगर इससे काले धन पर रोक लगती है ,

शनिवार, 5 नवंबर 2016

हिंदी दिवस - हिंदी जब अंग्रेज हुई


सबसे पहले तो आप सभी को आज हिंदी दिवस की बधाई |पर जैसा की हमारे यहाँ किसी के जन्म पर और जन्म दिवस पर बधाई गाने का रिवाज़ है | तो मैं भी अपने लेख की शुरुआत एक बधाई गीत से करती हूँ ……….
१ .. पहली बधाई हिंदी के उत्थान के लिए काम करने वाले उन लोगों को जिनके बच्चे अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों में पढ़ते हैं |
२ …दूसरी बधाई उन प्रकाशकों को जो हिंदी के नाम पर बड़ा सरकारी अनुदान प्राप्त कर के बैकों व् सरकारी लाइब्रेरियों की शोभा बढाते हैं | जिन्हें शायद कोई नहीं पढता |
३… तीसरी और विशेष बधाई उन तमाम हिंदी की पत्र – पत्रिकाओ व् वेबसाइट मालिकों को जो हिंदी न तो ठीक से पढ़ सकते हैं , न बोल सकते हैं न लिख सकते हैं फिर भी हिंदी के उत्थान के नाम पर हिंदी की पत्रिका या वेबसाइट के व्यवसाय में उतर पड़े |
आप लोगों को अवश्य लग रहा होगा की मैं बधाई के नाम पर कटाक्ष कर रही हूँ | पर वास्तव में मैं केवल एक मुखौटा उतारने का प्रयास कर रही हूँ | एक मुखौटा जो हम भारतीय आदर्श के नाम पर पहने रहते हैं | पर खोखले आदर्शों से रोटी नहीं चलती |जैसे बिना पेट्रोल के गाडी नहीं चलती उसी तरह से बिना धन के

सावधान चीनियों - हम भौकते ही नहीं काटते भी हैं





वैसे तो चीन का सदा से भारत विरोधी रुख ही रहा है | भारत पकिस्तान के बीच तनाव के इस दौर में चीन द्वारा हमेशा की तरह पकिस्तान का साथ देना व् आतंकी मसूद अजहर के पक्ष में खड़े हो जाने से आम भारतीयों के मन में रोष है | इस बार इस रोष ने एक मुहिम का रूप लिया है | वो मुहिम है ” चीनी सामान के बहिष्कार का ” | ख़ुशी की बात है सोशल मीडिया पर इसका जोर – शोर से प्रचार होरहा है | और एक एक करके सवा अरब भारतीय जुड़ने लगे हैं | अर्थव्यवस्था किसी देश के विकास की रीढ़ होती है | चीन इस मुहिम को देख कर डर गया है | तभी तो वहां मीडिया में ये मुद्दा छाया हुआ है व् इस पर लेख पर लेख लिखे जा रहे हैं |अभी हाल में प्रकाशित एक लेख में सोशल मीडिया पर भारतियों के इस मुहीम को भौंकना बताया है | वहीँ मेक इन इण्डिया को फ्लॉप बताया है | उनका मानना है भारत कुछ भी करे चीन के सामन की बराबरी नहीं कर सकता | 

अब आप ही फैसला करें क्या आप को ऐसा लगता है ,की हमारा सामान चीन के सामन की क्वालिटी में बराबरी नहीं कर सकता | अकसर जब कोई सामन

करवाचौथ - रात , इंतज़ार , कहानी और चाँद - प्रेम की सार्वजानिक अभिव्यक्ति को स्वीकृति देती परंपरा








वैसे तो हमारा देश त्योहारों का देश है |और अनेकों त्योहारों में हर रिश्ते को मान देने के लिए त्यौहार है | जो ये याद दिलाना नहीं भूलते की हर रिश्ता महत्वपूर्ण है | यूँ तो ज्यादातर व्रत स्त्रियाँ अपने पति व् संतानों की मंगलकामना के लिए ही करती है | परन्तु पति के लिए खास तौर पर होने वाले व्रतों में तीज और करवाचौथ प्रमुख हैं | उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में तीज व कुछ में करवाचौथ मानाने की परंपरा रही है | दोनों ही व्रतों में पत्नियां भूखी प्यासी रह कर पति की दीर्घायु की कामना करती हैं |क्योंकि त्यौहार सुहाग से सम्बंधित है इसलिए दोनों ही व्रतों में स्त्रियाँ नए कपडे पहनती हैं व् सोलह श्रृंगार करती हैं | फर्क बस इतना है की एक में शिव पार्वती की पूजा होती है तो दूसरे में चाँद की |पर दोनों की ही मूल भावना एक सामान ही है |
विरोध उसी का होता है जो ज्यादा लोकप्रिय होता है 
यहाँ त्योहारों की समानता बताने का कारण वो व्हाट्स एप मेसेज हैं जो हम सभी के मोबाइलों में भरे पड़े है | जहाँ पत्नी को व्रत के नाम पर गिफ्ट की घूस लेते दिखाया जा रहा है , कहीं भूंखी शेरनी बताया जा रहा है तो कहीं ” बचारे पति ” झाड़ू लगाते हुए दिखाए जा रहे हैं | उफ़ कल तो पूजा की थी आज पत्नियां झाड़ू लगवा रही हैं | ऐसा तीज के व्रत में नहीं होता | कहते हैं विरोध उसी का होता है जो ज्यादा लोकप्रिय होता है

ओमपुरी जी क्या सैनिक नहीं कलाकार देश की रक्षा करेंगे




जिन्होंने भी टी वी पर ओमपुरी जी को बहस करते देखा होगा | वो अवाक तो जरूर रह गया होगा |सहसा कानों पर विश्वास नहीं हुआ होगा | ओमपुरी जी की छवि एक सशक्त कलाकार की है |जिनके लाखों फैन हैं | एक कलाकार जिसके अन्दर भावनाओं को समझने की ताकत दूसरों से ज्यादा होती है | उसके मुंह से ऐसी बातें सुनना , वो भी ऐसे समय में जब दो देशों के बीच तनाव चल रहा हो , अत्यंत बचकाना लगता है | जिन्होंने भी सुना वह इतना तो बोला ही होगा , ” धन्य है ओम पूरी जी और उनका अनोखा दर्शन |उन्हें गुस्सा किस बात का है | उनकी दो बातें जो बेहद गलत लगीं उनको जरूर रखना चाहूंगी | पहली बात पाकिस्तानी कलाकार यहाँ काम कर सकते हैं या नहीं ये देखना सरकार का काम है | फिर भी इस पर बौलीवुड दो धडों में बाँट गया है | हर कोई अपना पक्ष रख रहा है | पर पक्ष रखने में भी शालीनता की आवश्यकता होती है | फवाद खान जिनका नाम इस प्रकरण में बार – बार उछाला जा रहा है |

आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध अब जुबानी नहीं जमीनी है





आज का दिन भारत के लिए बहुत अच्छा दिन है | एक ऐसा दिन जहाँ हम स्वभिभिमान व् गर्व के साथ सर उठा चल सकते हैं |आये दिन आतंकी हमले हमारे स्वाभिमान को आहत कर रहे थे | उडी हमले के बाद आम भारतीय मानस में निराशा का माहौल था | लोगों की निगाह अपने प्रधानमंत्री मोदी की तरफ थी | पर मोदी की चुप्पी हमें तोड़ रही थी | कहीं छुटपुट बयां आये भी तो लोगों को बस जुबानी बातें लगी | ऐसा लगा की जैसे अभी तक होता आया है , फिर वही होगा | आतंकी हमले होंगे , मासूम लोग शिकार होंगे | और तो और हमारी सेना के जवान बार बार निशाना बनाए जाते रहेंगे | और हम केवल उन शहीदों के लिए आंसू बहा कर शब्दों के फूल चढाते रहेंगे |परन्तु नहीं ! इस बार ये चुप्पी , चुप्पी नहीं तूफ़ान से पहले की खामोशी थी | आज loc पार कर पाक में घुस कर के भारतीय सेना का आतंकवादी शिविरों को नेस्तनाबूत कर देना इस बात का साफ़ संकेत है की अब आतंवाद के खिलाफ लड़ाई जुबानी नहीं जमीनी है

आखिर कितनी स्वतंत्र हो अभिव्यक्ति






अभिव्यक्ति कितनी स्वतंत्र हो कितनी नहीं , इस पर समय – समय पर बहस होती रहती है |क्योंकि बोलने की आज़ादी ही लोकतंत्र की पहली आधारशिला है | इसका अभिप्राय यह की हर उस देश जहाँ पर लोकतान्त्रिक सरकार है, वहां का नागरिक निर्भीकता से अपनी बात कह सकता है | यह उसका अधिकार है , पर किस हद तक … यह सीमा कोई कानून द्वारा नहीं व्यक्ति को स्वयं निर्धरित करनी होगी |जैसा की अंग्रेजी कहावत में कहा गया है “Your freedom ends where my nose begins.”हमें हवा में अपना हाथ लहराने की उतनी ही आज़ादी है की किसी अन्य की नाक पर प्रहार न हो | मेरा यह लेख लिखने का अभिप्राय भी यही है | क्योकि अभी हालिया ऐसे ही बयान पर हमारे देश के एक प्रान्त की गौरव उसकी नाक पर प्रहार हुआ है | और प्रहार करने वाला कोई आम व्यक्ति नहीं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू हैं |जिनको जानकारी नहीं है उनको बता दें की काटजू जी ने बाकायदा फेसबुक पोस्ट बना कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरप्रयोग किया है | जस्टिस काटजू ने फेसबुक पर पाकिस्तान को संबोधित करते हुए लिखा है कि कश्मीर लेना है तो बिहार भी साथ लेना होगा. इतना ही नहीं काटजू ने पाकिस्तान से ज्यादा खतरा देश को बिहार से बताया है

विदाई - मिलन और जुदाई का अनोखा समन्वय





जीवन भी कितना विचित्र है आज यूँ ही मुकेश का गाया यह गीत कानों में पड गया और मन की घडी के कांटे उलटे चलने लगे ।
ये शहनाईयाँ दे रही हैं दुहाई ,
कोई चीज अपनी हुई है पराई
किसी से मिलन है किसी से जुदाई
नए रिश्तों ने तोडा नाता पुराना ………..

बात तब की है जब मैं बहुत छोटी थी घर के पास से शहनाई की आवाज़ आ रही थी । थोड़ी देर सुनने के बाद एक अजीब सी बैचैनी हुई….. जैसे कुछ टूट रहा हैं कुछ जुड़ रहा है । आदतन अपने हर प्रश्न की तरह इस प्रश्न के साथ भी माँ के पास जाकर मेरा अबोध मन पूँछ उठा ” माँ ये कौन सा बाजा बज रहा है ,एक साथ ख़ुशी और दुःख दोनों महसूस हो रहा है । तब माँ ने सर पर हाथ फेर कर कहा था ” ये शहनाई है। अंजू दीदी की विदाई हो रही है ना । इसलिए बज रही है । अब अंजू दीदी यहाँ नहीं रहेंगी अपने ससुराल में अपने पति के साथ रहेंगी । क्यों माँ आंटी -अंकल ऐसा क्यों कर रहे है क्यों अपनी बेटी को दूसरे के घर भेज रहे हैं । क्या सब बेटियां दूसरों के घर भेजी जाती हैं ? क्या मुझे भी आप दूसरे के घर भेज देंगी । माँ की आँखें नम हो गयी । हां बिटिया ! हर लड़की की विदाई होती है

फीलिंग लॉस्ट - क्या करें जब लगे सब खत्म हो गया है


आज मैं लिखने जा रही हूँ उन तमाम निराश हताश लोगों के बारे में जो जीवन में किसी मोड़ पर चलते – चलते अचानक से रुक गए हैं | जिन्हें गंभीर अकेलेपन ने घेर लिया है और जिन्हें लगता है की जिंदगी यहीं पर खत्म हो गयी है |सारे सपने , सारे रिश्ते , सारी संभावनाएं खत्म हो गयीं | यही वो समय है जब बेहद अकेलापन महसूस होता है | ऐसे ही कुछ चेहरे शब्दों और भावों के साथ मेरी आँखों के आगे तैर रहे हैं , जहाँ जिन्दगी अचानक से अटक गयी थी और उसका कोई दूसरा छोर नज़र ही नहीं आ रहा था ……..
* निशा जी , दो बच्चों की माँ , जब उसके सामने पति का दूसरा प्रेम प्रसंग सामने आया तो उसे लगा जैसे सब कुछ खत्म हो गया है | अपनी सारी त्याग , तपस्या प्रेम सब कुछ बेमानी लगने लगा | उस पर समाज का ताना ,” पति को सँभालने का हुनर नहीं आता , वर्ना क्यों वो दूसरी के पास जाता ” , जले पर नमक छिडकने के लिए पर्याप्त था | मृत्यु ही विकल्प दिखती , पर उसे जीना था , अपनी लाश से खुद ही नकालकर … अपने बच्चों के लिए |

श्राद्ध पक्ष - लकीर न पीटीये , पर श्रद्धा तो रखिये




कल यूँहीं सहेलियों से मिलना हुआ | उनमें से एक सहेली ने श्राद्ध पक्ष की अमावस्या के लिए अपने पति के साथ सभी पितरों का आह्वान करके श्राद्ध करने की बात शुरू कर दी | बातों ही बातों में खर्चे की बात करने लगी | फिर बोली की क्या किया जाये महंगाई चाहे जितनी हो खर्च तो करना ही पड़ेगा , पता नहीं कौन सा पितर नाराज़ बैठा हो और ,और भी रुष्ट हो जाए | उनको भय था की पितरों के रुष्ट हो जाने से उनके इहलोक के सारे काम बिगड़ने लगेंगे | उनके द्वारा सम्पादित श्राद्ध कर्म में श्रद्धा से ज्यादा भय था | किसी अनजाने अहित का भय |
वहीँ मेरी दूसरी सहेली , श्राद्ध पक्ष में अपनी सासू माँ की श्राद्ध पर किसी अनाथ आश्रम में जा कर खाना व् कपडे बाँट देती हैं | व् पितरों का आह्वान कर जल अर्पित कर देती है | ऐसा करने से उसको संतोष मिलता है | उसका कहना है की जो चले गए वो तो अब वापस नहीं आ सकते पर उनके नाम का स्मरण कर चाहे ब्राह्मणों को खिलाओ या अनाथ बच्चों को , या कौओ को …. क्या फर्क पड़ता है |

रक्षा बंधन : भाई बहन के प्यार पर हावी बाज़ार


मेरे भैया मेरे चंदा मरे अनमोल रतन
तेरे बदले मैं ज़माने की कोई चीज न लूँ

रेडियो पर बहुत ही भावनात्मक मधुर गीत बज रहा है | गीत को सुन कर बहुत सारी भावनाऐ मन में उमड़ आई | वो बचपन का प्यार ,लड़ना –झगड़ना ,रूठना मानना | भाई –बहन का प्यार ऐसा ही होता है |इस एक रिश्ते में न जाने कितने रिश्ते समाये हैं ,बहन ,बहन तो है ही ,माँ भी है और दोस्त भी | तभी तो खट्टी –मीठी कितनी सारी यादें लेकर बहने ससुराल विदा होते समय भाइयों से ये वादा लेना नहीं भूलती कि “भैया साल भर मौका मिले न मिले पर रक्षा बंधन के दिन मुझसे मिलने जरूर आना , और भाई भी अश्रुपूरित नेत्रों से हामी बहर कर बहन को विदा कर देता | दूर –दूर रहते हुए भी निश्छल प्रेम की एक सरस्वती दोनों के बीच बहती रहती ,और ये पावन रिश्ता सदा हरा भरा रहता है |
अपने बचपन को याद करती हूँ तो माँ साल भर रक्षा बंधन का इंतज़ार किया करती थी | फिर खुद ही रेशमी धागों से कुछ कपड़ों की कतरनों से काट –काटकर सुन्दर राखियाँ तैयार किया करती थी | हमें भी वो ये पकड़ा देती और हम भी ग्लेज़ पेपर , ग्रीटिंग कार्ड से निकाले गए सितारे व् धागों से राखियाँ बनाते

भाषा को समृद्ध करने का अभिप्राय साहित्य विरोध से नहीं


बचपन की बात है …. मैं एटलस में गंगा की धारा कहाँ -कहाँ जाती है बड़े ध्यान से देख रही थी | गोमुख से निकलने के बाद शुरू शरू में कुछ पतली धाराएं गंगा में मिली उन पर तो मैंने ध्यान नहीं दिया पर जब प्रयाग में गंगा जमुना और सरवती के संगम के बाद भी उसे गंगा ही नाम दिया गया | तब मन में स्वाभाविक से प्रश्न उठे …..अब ये गंगा कहाँ रही … अब तो इसका नाम जंगा या गंग्जमुना होना चाहिए | मैं अपना प्रश्न लेकर पिताजी के पास गयी | तब उन्होंने मुझे समझाया जो दूसरों को अपनाता चलता है उसका अस्तित्व कभी खत्म नहीं होता अपितु और विशाल विराट होता जाता है| चाहे यह बात परिवार की हो ,समाज की सम्प्रदाय की या पूरी मानव प्रजाति की संकीर्ण दायरा विनाश का प्रतीक है और विविधता को अपनाना विकास का | आज हिंदी दिवस पर यही बात मुझे रह -रह कर याद आ रही है | विश्व हिंदी सम्मेलन के बाद कुछ लोगों में रोष है पर भाषा को नए -नए शब्दों से लैस ,तकनीकी रूप से उन्नत बनाने का अभिप्राय साहित्य विरोध से कदापि नहीं है | एक तरफ तो हम वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा से भी आगे निकलकर अन्तरिक्ष के अन्य ग्रहों और उपग्रहों में मानव बस्तियाँ बसाने के सपने देख रहे हैं दूसरी तरफ हम अपनी भाषा को तकनीकी रूप से

हिंसक होता प्रेम - क्या यही प्यार है ?






वंदना बाजपेयी
अगर आप अखबार पढ़ते हैं तो आप ने विगत दो -तीन दिन में दिल्ली में घटी इन घटनाओं पर ध्यान अवश्य दिया होगा | पढ़ कर सिहरन तो जरूर हुई होगी | क्योंकि हत्या और मारपीट कर जख्मी कर देने की ये वारदातें दो दुश्मनों के बीच नहीं वरन दो प्यार करने वालों के बीच हुई हैं | जिन्होंने अखबार नहीं पढ़ा हैं उन्हें in प्रेमी जोड़ों के बीच घटी घटनाओं के बारे में संक्षिप्त रूप से बताना चाहूंगी | घटनाएं इस प्रकार हैं …
* प्रेमी ने प्रेमिका की सरेआम कैंची से गोदकर हत्या की …….. कम्प्यूटर कोर्स कराने वाला ३४ साल का प्रेमी अपनी २२ साल प्रेमिका ( पता नहीं प्रेमिका कहे या एक तरफ़ा प्यार ) के इनकार से क्रोधित हो चलती सड़क पर सरेआम उसकी कैंची से गोद कर हत्या कर देता है | भीड़ तमाशाई बन कर देखती रहती है |
* एक अन्य युवक अपनी प्रेमिका को बिल्डिंग के तीसरे माले से धक्का दे देता है | जिससे उसकी हड्डियाँ टूट जाती हैं | कारण था प्रेमिका द्वारा किसी बत पर खफा हो कर बातचीत बंद कर देना |
* तीसरा युवक घरेलू झगड़े में आपा खोकर अपने ससुर, साले और साढू की हत्या व् अन्य दो को जख्मी कर देता है |

ये सब घटनाएं पढ़ कर आप भी मेरी तरह ही सोंच रहे होंगे ,” क्या यही प्यार है ?” किशोरावस्था में जब माता – पिता और परिवार के अतरिक्त प्यार शब्द किसी अनजाने साथी के लिए ह्रदय में प्रवेश करता है तो न जाने मन के शांत समुन्द्र में कितनी मीठी लहरे उत्त्पन्न हो जाती हैं | जहाँ खुद

शनिवार, 14 मई 2016

घर का कबाड़ बढाता है अवसाद


 घर का कबाड़ बढाता है अवसाद
क्या आप का घर अक्सर बहुत बेतरतीब रहता है ? क्या आप अपना पुराना सामान मोहवश फेंक नहीं पाते ?क्या आप को पता होता है कि उपयुक्त चीज आपके पास है पर आप उसे सही समय पर ढूढ़ नहीं पाते ? अगर ऐसा है तो जरा अपने स्वाभाव पर गौर करिए ………. आप कार ड्राइव करते समय किसी कि बाइक या सायकिल के छू जाने पर बेतहाशा उत्तेजित हो जाते हैं ,मार-पीट पर ऊतारू हो जाते हैं अकसर आप सड़क ,भीड़ और लोगों पर गुर्राते हैं ?या आप बात बेबात पर अपने बच्चों को पीट देती है ,घर कि काम वाली से झगड़ पड़ती है । तो जरा धयान से पढ़िए…………श्रीमती जुनेजा की कि भी स्तिथि कुछ -कुछ ऐसी ही थी। …. लेकिन जब गुस्सा बहुत बढ़ गया और घर में भी अक्सर कलह पूर्ण वातावरण ही रहने लगा तो उन्होंने मनोचिकित्सक को दिखाने में ही भलाई समझी मनोचिकित्सक के पास जा कर वो लगभग रो पडी ।”मैं इतना बुरी इंसान नहीं हूँ ,पर पता नहीं क्यों मुझे आजकल हर समय इतना गुस्सा क्यों आता है मनोचिकित्सक ने उनकी बात बड़े धैर्य से सुनी और कई बैठकों में उनकी रोजमर्रा कि जिंदगी के बारे में जान कर एक सलाह दी “आप रोज सुबह आधा घंटे जल्दी उठा करिए और अपना बिस्तर कमरा संभालिये और ऑफिस जाने से पहले देख लीजिये कि आप की रसोई ,बाथरूम ,कपड़ों की अलमारी आदि ठीक से है या नहीं,इसके बाद ही ऑफिस जाया करिए । श्रीमती जुनेजा इसके बाद घर चली गयी ,और एक महीने बाद उन्होंने पाया कि वो ज्यादा शांत रहने लगी हैं ।

ये ख़ुशी आखिर छिपी है कहाँ

 

हम से रूठी रहोगी
कब तक न हंसोगी
देखोजी किरण सी लहराई
आई रे आई रे हंसी आई
आज पुरानी फिल्म का ये गाना याद आ रहा है….. गाने की शुरुआत में गुड़ियाँ रूठी होती है पर अंत तक खुश हो कर हंसने लगती है …आखिर कोई कितनी देर नाराज या दुखी रह सकता है दरसल खुश रहना मनुष्य का जन्मजात स्वाभाव होता है . आखिर एक छोटा बच्चा अक्सर खुश क्यों रहता है ? बिलकुल अपने में मस्त ,बस भूख ,प्यास के लिए थोडा रोया ,कुंकुनाया फिर हँसने खेलने में मगन। क्यों हम कहते हैं कि “बचपन के दिन भी क्या दिन थे “…बचपन राजमहल में बीते या झोपड़े में वो इंसान की जिंदगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा होता है। खुश रहना मनुष्य का जन्मगत स्वाभाव होता है जैसे -जैसे हम बड़े होते हैं हमारा समाज ,हमारा ,वातावरण हमारे अन्दर विकृतियाँ बढाने लगता हैं ,और हम अपनी सदा खुश रहने की आदत भूल जाते हैं और तो और हममे से कई सदा दुखी रहने का रोग पाल लेते हैं ,जीवन बस काटने के लिए जिया जाने लगता है.पर कुछ लोग अपनी प्राकृतिक विरासत बचाए रखते हैं और सदा खुश रहते हैं.… प्रश्न उठता है क्या उनको

सेहत के जूनून की हद : एन्जिलिना जोली सिंड्रोम


 सेहत के जूनून की  हद : एंजिलिना जोली सिंड्रोम

एक आम घर का दृश्य देखिये | पूरा परिवार खाने की मेज पर बैठा है | सब्जी रायता , चपाती , गाज़र का हलवा और टी .वी हाज़िर है | कौर तोड़ने ही जा रहे हैं कि टी वी पर ऐड आना शुरू होता है बिपाशा बसु नो शुगर कहती नज़र आती हैं | परिवार की १७ वर्षीय बेटी हलवा खाने से मना कर देती है | माँ के मनुहार पर झगड़ कर दूसरे कमरे में चल देती है | वहीँ बेटा विज्ञापन देख कर ६ पैक एब्स बनाने के लिए जिम कि तगड़ी फीस की जिद कर रहा है | सासू माँ अपने तमाम टेस्ट करवाने का फरमान जारी कर देती हैं|परिवार का एकमात्र कमाऊ सदस्य अपनी लाचारी जाहिर करता है तो एक अच्छा खासा माहौल तनाव ग्रस्त हो जाता है |

इम्पोस्टर सिंड्रोम : अपनी प्रतिभा पर संदेह

इम्पोस्टर सिंड्रोम  : अपनी प्रतिभा पर संदेह


इम्पोस्टर सिंड्रोम शब्द को पहली बार क्लिनिकल साईं कोलोजिस्ट डॉ . पौलिने न क्लेन ने १९७८ में इस्तेमाल किया था | अगर इम्पोस्टर के शाब्दिक अर्थ पर जाए तो सीधा सदा मतलब है धोखेबाज | सिंड्रोम का शाब्दिक अर्थ है लक्षणों का एक सेट | कोई हमें धोखा दे उसे धोखेबाज़ कहना स्वाभाविक है | पर यहाँ व्यक्ति खुद को धोखेबाज समझता है | इस तरह यहाँ धोखा किसी दूसरे को नहीं खुद को दिया जा रहा है | दरसल इम्पोस्टर सिंड्रोम एक विचित्र मानसिक बीमारी है | जिसमें प्रतिभाशाली व्यक्ति को अपनी प्रतिभा पर ही भरोसा नहीं होता है | ऐसे व्यक्ति बहुत सफल होने के बाद भी इस भावना के शिकार रहते हैं की उन्हें सफलता भाग्य की वजह से मिली है | बहुत अधिक सफलता के प्रमाणों के बावजूद उन्हें लगता है की वो इस लायक बिलकुल नहीं हैं | वो दुनिया को धोखा दे रहे हैं | एक न एक दिन वो पकडे जायेंगे | इस कारण वो लागातार भय में जीते हैं | यह ज्यादातर सार्वजानिक क्षेत्रों में काम करने वालों को होता है | महिलाएं इसकी शिकार ज्यादा होती हैं |
इम्पोस्टर सिंड्रोम से ग्रस्त प्रसिद्द महिलाएं

बदलता बचपन

 बदलता बचपन
बचपन ………… एक ऐसा शब्द जिसे बोलते ही मिश्री की सी मिठास मुँह में घुल जाती है ,याद आने लगती है वो कागज़ की नाव ,वो बारिश का पानी,वो मिटटी से सने कपडे ,और वो नानी की कहानियाँ। बचपन……. यानी उम्र का सबसे खूबसूरत दौर ………माता –पिता का भरपूर प्यार ,न कमाने की चिंता न खाने की ,दिन भर खेलकूद …विष –अमृत ,पो शम्पा , छुआ –छुआई ,छुपन –छुपाई।या यूँ कह सकते हैं…… बचपन है सूरज की वो पहली किरण जो धूप बनेगी ,या वो कली जिसे पत्तियों ने ढककर रखा है प्रतीक्षारत है फूल बन कर खिलने की ,या समय की मुट्ठी में बंद एक नन्हा सा दीप जिसे जगमग करना है कल। कवि कल्पनाओं से इतर…… बच्चे जो भले ही बड़ों का छोटा प्रतिरूप लगते हों पर उन पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है क्योकि वो ही बीज है सामाजिक परिवर्तन के, कर्णधार है देश के भविष्य के।
वैसे परिवर्तन समाज का नियम है…जो कल था आज नहीं है जो

अन्तराष्ट्रीय पुरुष दिवस : एक मजाक या आज के समय की जरूरत

 अंतर्राष्ट्रीय पुरुष  दिवस : एक मजाक या आज के समय की जरूरत
कल व्हाट्स एप्प पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक खूबसूरत गीत के साथ अन्तराष्ट्रीय पुरुष दिवस मानाने की अपील की गयी थी ……………गीत के बोल कुछ इस तरह से थे “ मेन्स डे पर ही क्यों सन्नाटा एवेरीवेयर , सो नॉट फेयर-२ “ … पूरे गीत में उन कामों का वर्णन था जो पुरुष घर परिवार के लिए करता है , फिर भी उसके कामों को कोई श्रेय नहीं मिलता है | जाहिर है उसे देख कर कुछ पल मुस्कुराने के बाद एक प्रश्न दिमाग में उठा “ मेन्स डे “ ? ये क्या है ? तुरंत विकिपिडिया पर सर्च किया | जी हां गाना सही था | १९ नवम्बर को इंटरनेशनल मेन्स डे होता है | यह लगातार १९९२ से मनाया जा रहा है | पहले पहल इसे ७ फरवरी को मनाया गया | फिर १९९९ में इसे दोबारा त्रिनिदाद और टुबैगो में शुरू किया गया | अब पूरे विश्व भर में पुरुषों द्वारा किये गए कामों को मुख्य रूप से घर में , शादी को बनाये रखने में , बच्चों की परवरिश में , या समाज में निभाई जाने वाली भूमिका के लिए सम्मान की मांग उठी है |

हत्यारा प्रेम

 हत्यारा प्रेम

आज जब वैलेंटाइन वीक में प्रेम हवाओं में तैर रहा है लोग बांहों में बांहे डाले जीवन भर प्यार निभाने की कसमें खा रहे हैं | एक दूसरे को गिफ्ट दे रहे हैं | वही दिल्ली की आरजू को उस प्रेमी ने जिसके साथ उसने प्यार की कसमें खायी थी , तोहफे में मौत दी | यह कहानी दिल्ली के मॉडल टाउन इलाके की है . इसी मोहल्ले में घर आरजू और एक नवीन खत्री का घर था . आरजू डी यू के लक्ष्मी बाई कॉलेज के फाइनल ईयर की स्टूडेंट थी . जबकि नवीन पढ़ाई छोड़ प्रॉपर्टी डीलिंग के धंधे में उतर गया था. दोनों की मुलाकात होती है, फिर प्यार | उसके बाद दोनों शादी करने की इक्षा जताते हैं |परन्तु गांव के गोत्र के हिसाब से लड़के वालों को दोनों की शादी से एतराज था. मगर रिश्ता अधूरा छूट जाने के बाद भी आरजू और नवीन मिलते रहते हैं . यहां तक कि नवीन की शादी कहीं और तय होने के बाद भी .

आज गंगा स्नान की नहीं , गंगा को स्नान करने की जरूरत है ... तो पीछे क्यों हटें ?

 आज गंगा स्नान की नहीं , गंगा को स्नान करने की जरूरत है … तो पीछे क्यों हटे ?


गंगा … पतित पावनी गंगा … विष्णु के कमंडल से निकली , शिव जी की जटाओ में समाते हुए भागीरथ
प्रयास के द्वारा धरती पर उतरी | गगा शब्द कहते ही हम भारतीयों को ममता का एक गहरा अहसास होता है | और क्यों न हो माँ की तरह हम भारतवासियों को पालती जो रही है गंगा | मैं उन भाग्यशाली लोगों में हूँ जिनका बचपन गंगा के तट पर बसे शहरों में बीता | अपने बचपन के बारे में जब भी कुछ सोचती हूँ तो कानपुर में बहती गंगा और बिठूर याद आ जाता है | छोटे बड़े हर आयोजन में बिठूर जाने की पारिवारिक परंपरा रही है | हम उत्साह से जाते | कल -कल बहती धारा के अप्रतिम सौंदर्य को पुन : पुन : देखने की इच्छा तो थी ही , साथ ही बड़ों द्वरा अवचेतन मन पर अंकित किया हुआ किसी अज्ञात पुन्य को पाने का लोभ भी था | जाने कितनी स्मृतियाँ मानस पटल पर अंकित हैं | पर निर्मल पावन गंगा प्रदूषण का दंश भी झेल रही है | इसका अहसास जब हुआ तब उम्र में समझदारी नहीं थी पर मासूम मन इतना तो समझता ही था की माँ कह कर माँ को अपमानित करना एक निकृष्ट काम है | अपने बचपन के बारे में जब भी कुछ सोचती हूँ तो कानपुर में बहती गंगा और बिठूर याद आ जाता है | छोटे बड़े हर आयोजन में बिठूर जाने की पारिवारिक परंपरा रही है | हम उत्साह से जाते | कल -कल बहती धारा के अप्रतिम सौंदर्य को पुन : पुन : देखने की इच्छा तो थी ही , साथ ही बड़ों द्वरा अवचेतन मन पर अंकित किया हुआ किसी अज्ञात पुन्य को पाने का लोभ भी था | ऐसा ही एक समय था जब बड़ी बुआ हम बच्चों को अंजुरी में गंगा जल भर कर आचमन करना सिखा रही थी | बुआ ने जैसे ही अंजुरी में गंगा जल भरा , समीप में स्नान कर रहे व्यक्ति का थूक उनके हाथों में आ गया | हम सब थोडा पीछे हट गए | थूकने वाले सज्जन उतनी ही सहजता से जय गंगा मैया का उच्चारण भी करते जा रहे थे | माँ भी कहना और थूकना भी , हम बच्चों के लिए ये रिश्तों की एक अजीब ही परिभाषा थी |
यह विरोधाभासी परिभाषा बड़े तक मानस पटल पर और भी प्रश्न चिन्ह बनाती गयी | हमारे पूर्वजों नें गंगा को मैया कहना शायद इसलिए सिखाया होगा की हम उसके महत्व को समझ सकें | और उसी प्रकार उसकी सुरक्षा का ध्यान दें जैसे अपनी माँ का देते हैं | गंगा के अमृत सामान जल का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सके इस लिए पुन्य लाभ से जोड़ा गया | पर हम पुन्य पाने की लालसा में कितने पाप कर गए | फूल , पत्ती , धूप दीप , तो छोड़ो , मल मूत्र , कारखानों के अवशिष्ट पदार्थ , सब कुछ बिना ये सोचे मिलाते गए की माँ के स्वास्थ्य पर ही कोख में पल रहे बच्चों का भविष्य टिका है |
इस लापरवाही का ही नतीजा है की आज गंगा इतनी दूषित व प्रदूषित हो चुकी है कि पीना तो दूर, इस पानी से नियमित नहाने पर लोगों को कैंसर जैसी बीमारियां होने का खतरा बढ़ गया है। गंगाजल में ई-कोलाई जैसे कई घातक बैक्टीरिया पैदा हो रहे हैं, जिनका नाश करना असंभव हो गया है। इसी तरह गंगा में हर रोज 19,65,900 किलोग्राम प्रदूषित पदार्थ छोड़े जाते हैं। इनमें से 10,900 किलोग्राम उत्तर प्रदेश से छोड़े जाते हैं। कानपुर शहर के 345 कारखानों और 10 सूती कपड़ा उद्योगों से जल प्रवाह में घातक केमिकल छोड़े जा रहे हैं। 1400 मिलियन लीटर प्रदूषित पानी और 2000 मिलियन लीटर औद्योगिक दूषित जल हर रोज गंगा के प्रवाह में छोड़ा जाता है। कानपुर सहित इलाहाबाद, वाराणसी जैसे शहरों के औद्योगिक कचरे और सीवर की गंदगी गंगा में सीधे डाल देने से इसका पानी पीने, नहाने तथा सिंचाई के लिए इस्तेमाल योग्य नहीं रह गया है। गंगा में घातक रसायन और धातुओं का स्तर तयशुदा सीमा से काफी अधिक पाया गया है। गंगा में हर साल 3000 से अधिक मानव शव और 6000 से अधिक जानवरों के शव बहाए जाते हैं।इसी तरह 35000 से अधिक मूर्तियां हर साल विसर्जित की जाती हैं। धार्मिक महत्व के चलते कुंभ-मेला, आस्था विसर्जन आदि कर्मकांडों के कारण गंगा नदी बड़ी मात्रा में प्रदूषित हो चुकी है। स्तिथि इतनी विस्फोटक है की अगर व्यक्ति नदी किनारे सब्जी उगाए तो लोग प्रदूषित सब्जियां खाकर ज्यादा बीमार होंगे।
इन आकड़ों को देने का अभिप्राय डराना नहीं सचेत करना है | यह सच है की गंगा की सफाई के अभियान में कई सरकारी योजनायें बनी हैं | अरबों रुपये खर्च हुए फिर भी स्तिथि वहीँ की वहीँ है | पर्यावरणीय मानकों के मुताबिक नदी जल के बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड (B.O.D )का स्तर अधिकतम 3 मि.ली. ग्राम प्रति लीटर होना चाहिए। सफाई के तमाम दावों के बावजूद वाराणसी के डाउनस्ट्रीम (निचले छोर) पर बीओडी स्तर 16.3 मि.ग्रा. प्रति ली. के बेहद खतरनाक स्तर में पाया गया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट दर्शाती है कि गंगा के प्रदूषण स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है। शायद सरकारी योजनायें कागजों पर ही बनती हैं | और उन कागजों में धन का बहाव गंगा के बहाव से भी ज्यादा तेज है | धन तो प्रबल वेग से बह जाता है | पर गंगा अपने आँचल में हमारे ही द्वारा डाली गयी गंदगी समेटे वहीँ की वहीँ रह जाती है |
अब सवाल ये उठता है की क्या हम इन सरकारी योजनाओं के भरोसे ( जिनका निष्क्रिय स्वरूप हमने अपनी आँखों से देखा है ) अपनी माँ को छोड़ दें | या माँ को माँ कहना छोड़ दें ? बहुत हो गया पुन्य का लोभ , पीढ़ियाँ बीत गयी गंगा में स्नान करते – करते | अब जब गंगा को स्वयं स्नान की आवश्यकता है तो हम पीछे क्यों हटे | इस का हल भी यही है आगे हमी को आना होगा | जब करोंड़ों हाथ एक साथ जुट जायेंगे तो कोई भी काम असंभव नहीं है | हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए गंगा को बचा कर रखा है | अब हमारा उत्तरदायित्व है की हम अपने बच्चों वही पतित पावनी निर्मल पावन गंगा को सौपे वही गंगा जिसके बारे कहा जाता रहा है की एक घड़े पानी में १० बूँद गंगा जल मिला दो तो वह शुद्ध हो जाता है |बहुत पहले पढ़ी किसी कवि कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं ………
फूल मत डालो
कागज़ की तरी मत तैराओ
खेल में तुमको पुलक उन्मेष होता है
लहर उठने में सलिल को क्लेश होता है
हालाँकि यह पक्तियां दार्शनिक सन्दर्भ में हैं पर आज गंगा की स्तिथि को देखते हुए खरी उतरती हैं | फैसला आप पर है |
जय गंगा मैया

नयी सुबह : जब दुल्हन ने लौटाई बारात

 नयी सुबह :  दुलहन ने लौटाई बारात- शराबी के संग मैं न जाऊ रे डोली  पिछवाड़े रख दो

कहने को तो आज के अखबार की तमाम बड़ी ख़बरों के बीच में दुबकी एक छोटी सी खबर थी | पर मेरी निगाह उस खबर पर अटक गयी |खबर कुछ यूँ थी …. शहर के ग्रामीण इलाके महाराजपुर के दीपपुर गांव में एक दुल्हन ने मंडप से बरात इसलिए लौटा दी क्योंकि दूल्हा उससे उम्र में बड़ा था और दूल्हे के मुंह से शराब की बू आ रही थी। इस मामले में दोनों पक्षों में हंगामा हुआ। बाद में पुलिस ने बीच बचाव कर मामला शांत कराया और दूल्हा बारात लेकर बैरंग अपने घर चला गया। पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि पालपुर गांव के लालाराम के पुत्र धीरेंद्र की बारात शुक्रवार को दीपपुर आई थी। जयमाल का कार्यक्रम शुरू हुआ और दूल्हा स्टेज पर चढ़ा तो करीब 26 साल की दुल्हन को लड़का उम्र में काफी बड़ा लगा। उसे लड़के के मुंह से शराब की बू भी आई। इस पर दुल्हन ने जयमाल फेंक दी और शादी करने से इनकार कर दिया। समझने -समझाने के लम्बे दौर के बाद दूल्हा अपनी बारात लेकर बैरंग वापस चला गया।

लप्रेक - कॉफ़ी

अरे ! तुम लखनऊ में रहती हो ? एक अप्रत्याशित सा प्रश्न सुन कर सब्जी खरीदते हुए नीला के हाथ थम गए | मुड कर देखा , चश्मा ठीक करते हुए अजनबी को पहचानने की कोशिश करते हुए नीता की आँखों में चमक आ गयी | मुस्कुराते हुए बोली , सुरेश तुम , इतने वर्षों बाद अचानक यहाँ ? हां , बेटी के लिए लड़का देखने आया था | यहीं लखनऊ में, २१ की हो गयी है , बेटा आर्मी में हैं | इस समय गोवा में पोस्टिंग हैं | उसकी माँ कहती है बेटी की शादी हो जाए फिर हम भी गोवा में रहेंगे |बेटे के साथ | अकेले उसे अच्छा नहीं लगता | पर मेरी तो नौकरी है , उसे कैसे छोड़ दूँ | ये औरतें भी न पुत्र मोह में | और तुम ,क्या करती हो , कितने बच्चे हैं , घर कहाँ हैं , तुम्हारे पति ? एक सांस में सुरेश इतना सब कुछ बोल गया | नीता मुस्कुराते हुए बोली , उफ़ ! पहले की तरह नॉन स्टॉप … फिर थोडा रुक कर धीरे से बोली , मैं टीचर हूँ और मैंने शादी नहीं करी सुरेश |

देश पी एल वी ( पुरूस्कार लौटाओ वायरस ) की चपेट में



 देश पी.  एल . वी ( पुरुस्कार लौटाओ वायरस )की चपेट में


सच का हौसला की विशेष रिपोर्ट
सर्दी का मौसम दस्तक दे चूका है पर अभी भी देश का राजनैतिक तापमान बहुत गर्म है | हमारे विशेष संवाददाता के अनुसार ये जो पुरूस्कार लौटाने का नया चलन चला है | उसने सबको अपनी चपेट में ले लिया है | रोज़ -रोज़ पुरूस्कार लौटाने की ख़बरों से देश के अलग -अलग वर्गों के लोगों पर क्या असर पड़ा है | यह देखने के लिए राष्ट्रीय दैनिक समाचार पात्र “सच का हौसला” की टीम ने देश के हर उम्र , वर्ग के लोगों से बातचीत की | नतीजे चौकाने वाले हैं | आइये आप को भी इस अभूतपूर्व सर्वे की जानकारी दे दे |
सबसे पहले सच का हौसला की टीम बच्चों के स्कूल में गयी | अधिकतर छोटे बच्चे रोते नज़र आये | बच्चों को टॉफ़ी चोकलेट से बहला कर पूंछा तो बच्चे बोले , ” आंटी ये पुरूस्कार लौटने वाले लोग अच्छे नहीं हैं | क्यों के उत्तर में बच्चे सुबकते हुए बोले ,” पहले तो हमें केवल उन्ही लोगों के नाम याद करने पड़ते थे जिन्हें पुरूस्कार मिला था अब उनके भी रटने पड़ेंगे जिन्होंने लौटाए |

अप्रैल फूल : मूर्खता दिवस पर अक्लमंदी भरी बात


 मुर्खता दिवस पर अकलमंदी भरी बात


वैसे तो आज मूर्खता दिवस है पर लोग एक दूसरे को शुभकामनायें देने से बाज नहीं आ रहे |क्योकि हमें तो दिवस मानाने से मतलब कोई भी दिवस हो हम मना ही लेते हैं ….. वैसे ये आयातित दिवस हैं …. पर हम भारतीय इसे ख़ुशी -ख़ुशी मनाते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि भले ही इस दिवस का आविष्कार हमने न किया हो पर मूर्ख बनने का तजुर्बा हमे ज्यादा है …. तभी तो हमारे नेता हमें हर बार गरीबी मिटाओ के नारे के साथ हमे मूर्ख बना कर अपनी गरीबी मिटाते हैं और हम ख़ुशी -ख़ुशी हर ५ साल बाद मूर्ख बनने को तैयार हो जाते हैं खैर ये लेख राजनीतिक ,धर्मिक ,अध्यात्मिक लोगो द्वारा मूर्ख बनाने के ऊपर नहीं है |

मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

कला






तुम्हारा क्या  ... दिन भर घर में रहती हो ... कोई काम धंधा तो है नहीं ... यहाँ बक बक वहां बक बक ... आराम ही आराम है ... बस पड़े पड़े समय काटो । एक हम हैं दिन भर गधे की तरह काम करते रहते हैं ।
ये कहते हुए  श्रीनाथ जी ऑफिस के लिए निकल गए ।

अनन्या आँखों में आंसू लिए खड़ी रही । ज्यादा पढ़ी लिखी वो है नहीं ... घर के कामों के अलावा उसके पास जो भी समय होता कभी टीवी चला लेती कभी किसी को  फ़ोन मिला लेती ... आखिर समय तो काटना ही था ।

पर पति पढ़ा लिखा पुरुष है .... ऊंची पदवी , नाम , उसके पास समय का सर्वथा अभाव रहता है । जो थोडा  बहुत समय मिलता भी है वह  आने जाने वाले खा  जाते हैं ।

अनन्या के हिस्से में पति का समय तो नहीं आता पर शिकायत करने पर ताने जरूर आ जाते हैं ।